लखनऊ: राजधानी में बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल में बनाए गए स्मारक (अंबेडकर पार्क) में काम करने वाल कर्मचारियों पर संकट है. लगातार बजट जारी होने के बावजूद बीते 6 साल से 4500 कर्मचारियों को सातवें वेतनमान की स्वीकृति नहीं की जा रही है, जबकि कर्मचारियों के वेतन का बजट शासन बहुत पहले ही पास कर चुका है. इसके बावजूद फाइल पर अनुमोदन न होने से कर्मचारियों को छठा वेतनमान ही मिल रहा है. अब स्मारक के कर्मचारियों को कहना है कि वह बड़ा आंदोलन करेंगे. लोकसभा चुनाव के लिए सूची बनाने में बीएलओ का काम स्मारक के सैकड़ों कर्मचारियों को मिला है. वह अब इसे बंद कर देंगे.
दरअसल, बसपा काल में बनाए गए इन स्मारकों पर छाया सन्नाटा जस के तस बना हुआ. इन स्मारकों को बनाने के लिए तत्कालीन सरकार ने करीब 5 हजार करोड़ रुपये खर्च किया था. लेकिन, यहां काम करने वाले कर्मचारी सातवां वेतनमान न मिलने से नाराज हैं. उन्हें अभी तक छठा वेतनमान ही मिल रहा है. कर्मचारियों का कहना है कि वह न नेशनल पेंशन स्कीम के दायरे में आ रहे हैं और न ही उनको मेडिक्लेम जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं. सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद इन पर मृतक आश्रित की व्यवस्था भी लागू नहीं की जा रही है.
3 साल पहले जारी किया गया था बजटः गौरतलब है कि इन कर्मचारियों के उत्थान के लिए 80 करोड़ का बजट इनके पुनरीक्षित वेतनमान के तौर पर शासन ने करीब 3 साल पहले जारी किया था. मगर, वेतन बढ़ोतरी का शासनादेश न होने की वजह से यह बजट हर साल वापस चला जाता है. इसके अलावा कर्मचारियों का सीपीएफ भी उनके खातों से कट रहा है. मगर कहां जा रहा है, इसकी जानकारी किसी को नहीं है. किसी भी कर्मचारी का व्यक्तिगत पीएफ खाता नहीं खोला गया है. हाल ही में कर्मचारियों के पीएफ खातों से की गई एफडी में 10 करोड़ रुपये का घोटाला भी हो चुका है. हालांकि, इसमें कुछ अधिकारियों को जेल भी भेजा गया था. बावजूद इसके कर्मचारियों की मांगों पर गौर नहीं किया जा रहा है.
कर्मचारी हैं परेशानः डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल गोमती नगर में कार्यरत कर्मचारी वीर प्रताप दुबे ने कहा, 'रिवाइज वेतन को लागू करने के साथ ही अन्य सुविधाएं दी जानी चाहिए. महंगाई के इस दौर में कम से कम सातवां वेतन आयोग तो हमें मिलना ही चाहिए.' एक अन्य कर्मचारी महेंद्र पाण्डेय ने कहा, 'सातवां वेतन आयोग न मिलने की वजह से ज्यादातर चतुर्थ क्लास के कर्मचारियों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ये कर्मचारी किराए का कमरा लेकर लखनऊ में रहते हैं.'
पीएफ का नहीं कोई हिसाब किताबः कर्मचारी शेक्सपियर दुबे ने कहा, 'हमको हर हाल में कम से कम पीएफ खातों की तो जानकारी दे दी जाए. साथ ही प्रत्येक कर्मचारी का व्यक्तिगत पीएफ अकाउंट भी बनाया जाए. नौकरी के पहले दिन से ही पीएफ कटना शुरू हो गया था. उसी धन में घोटाले भी हो गए. इसके बावजूद पीएफ का कोई हिसाब किताब नहीं पता लग रहा.' महिला कर्मचारी उषा मौर्य ने बताया कि जब लखनऊ में नौकरी करने आए थे, तो सोचा था बच्चों को अच्छी शिक्षा देंगे. मगर इतने कम वेतन में तो रोटी के लाले लग गए हैं. शिक्षा देने की तो बात ही दूर की है.
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