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लखनऊः लोहिया संस्थान के डॉक्टरों पर निजी अस्पताल में ट्रायल करने का आरोप

राजधानी लखनऊ के लोहिया संस्थान में काम कर रहे डॉक्टरों पर निजी संस्थान में ड्रग ट्रायल करने के आरोप लगे हैं. इस संबंध में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा को शिकायती पत्र भेजा गया है. वहीं लोहिया संस्थान प्रशासन मामले से पल्ला झाड़ रहा है.

लोहिया संस्थान
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Published : Jan 31, 2020, 11:57 AM IST

लखनऊः लोहिया संस्थान में काम करते हुए डॉक्टर निजी अस्पताल से जुड़कर दवाओं का ट्रायल कर रहे हैं. ऐसा मामला प्रकाश में आया है. इस संबंध में प्रमुख सचिव को शिकायती पत्र भेजा गया है. यह वही डॉक्टर हैं, जो संस्थान में पहले अस्थाई तौर पर तैनात रहे और अब इनका कार्य उत्तम होने का हवाला देकर स्थाई किया जा रहा है.

डॉक्टरों पर निजी अस्पताल में ट्रायल करने का आरोप.

4 चिकित्सकों को किया जा रहा स्थाई
लोहिया संस्थान में अस्थाई पद पर तैनात चार चिकित्सकों को स्थाई किया जा रहा है. संस्थान के डॉक्टर 2017 में चौक के मिर्जा मंडी स्थित निजी अस्पताल में भी सेवाएं देते रहे. सूत्रों की मानें तो डॉक्टरों ने निवेश कंपनी की दवाओं का ट्रायल किया है. 15 सितंबर और 17 सितंबर को ट्रायल के क्रमांक (सिटीआरआई 2017 00 9799) सहित पूरा विवरण दिया गया है.

इसके एवज में कंपनी ने करीब दो लाख का भुगतान भी किया है. पत्र में क्लीनिकल ट्रायल से जुड़े दस्तावेज भी भेजे गए हैं. कंपनी ने अपने दस्तावेज में डॉक्टर की क्लिनिकल ट्रायल का ब्यौरा और दिए गए भुगतान का जिक्र किया है.

निजी अस्पतालों में ट्रायल करने के आरोप
हालांकि बीते दिनों लोहिया संस्थान में वर्ष 2015 में कार्डियोलॉजी, न्यूरोलॉजी, न्यूरोलॉजी एवं रेडियोडायग्नोसिस विभाग में एक-एक प्रोफेसर को अस्थाई तौर पर नियुक्ति का मामला हाईकोर्ट पहुंचा था. अदालत के आदेश पर महानिदेशक चिकित्सा एवं शिक्षा डॉ. के. के गुप्ता ने जांच की थी. उन्होंने 26 जून 2019 को दी रिपोर्ट में लिखा था कि नियुक्तियां नियम के विपरीत हैं और संदेहास्पद तरीके से की गई थी.

इसके बाद मामले पर हाईकोर्ट ने तीन माह में निस्तारण का निर्देश दिया था. संस्थान की शासी निकाय की बैठक में अस्थाई पदों पर कार्य डॉक्टरों को स्थाई करने का प्रस्ताव पारित कर दिया. इसके बाद अब इन्हीं डॉक्टरों पर दवाइयों का ट्रायल निजी अस्पतालों में करने के आरोप लग रहे हैं. हालांकि लोहिया संस्थान के निदेशक एके त्रिपाठी ने फोन पर बातचीत में कहा है कि मामले में दोषी पाए जाने पर कार्रवाई की जाएगी.

ट्रायल की बात निराधार
संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. भुवन तिवारी ने बताया कि ड्रग ट्रायल की बात निराधार है. डॉक्टर ट्रायल करते हैं, जो डॉक्टर जहां काम करता है वहां ट्रायल करता है. हालांकि इस पूरे मामले से लोहिया संस्थान प्रशासन ने पल्ला झाड़ रहा है, लेकिन सवाल है कि हाईकोर्ट के निर्देश की अवहेलना के साथ इन डॉक्टरों द्वारा निजी अस्पतालों में दवाइयों का ट्रायल के मामले में भी लोहिया संस्थान प्रशासन इतनी लापरवाही क्यों बरत रहा है.

लखनऊः लोहिया संस्थान में काम करते हुए डॉक्टर निजी अस्पताल से जुड़कर दवाओं का ट्रायल कर रहे हैं. ऐसा मामला प्रकाश में आया है. इस संबंध में प्रमुख सचिव को शिकायती पत्र भेजा गया है. यह वही डॉक्टर हैं, जो संस्थान में पहले अस्थाई तौर पर तैनात रहे और अब इनका कार्य उत्तम होने का हवाला देकर स्थाई किया जा रहा है.

डॉक्टरों पर निजी अस्पताल में ट्रायल करने का आरोप.

4 चिकित्सकों को किया जा रहा स्थाई
लोहिया संस्थान में अस्थाई पद पर तैनात चार चिकित्सकों को स्थाई किया जा रहा है. संस्थान के डॉक्टर 2017 में चौक के मिर्जा मंडी स्थित निजी अस्पताल में भी सेवाएं देते रहे. सूत्रों की मानें तो डॉक्टरों ने निवेश कंपनी की दवाओं का ट्रायल किया है. 15 सितंबर और 17 सितंबर को ट्रायल के क्रमांक (सिटीआरआई 2017 00 9799) सहित पूरा विवरण दिया गया है.

इसके एवज में कंपनी ने करीब दो लाख का भुगतान भी किया है. पत्र में क्लीनिकल ट्रायल से जुड़े दस्तावेज भी भेजे गए हैं. कंपनी ने अपने दस्तावेज में डॉक्टर की क्लिनिकल ट्रायल का ब्यौरा और दिए गए भुगतान का जिक्र किया है.

निजी अस्पतालों में ट्रायल करने के आरोप
हालांकि बीते दिनों लोहिया संस्थान में वर्ष 2015 में कार्डियोलॉजी, न्यूरोलॉजी, न्यूरोलॉजी एवं रेडियोडायग्नोसिस विभाग में एक-एक प्रोफेसर को अस्थाई तौर पर नियुक्ति का मामला हाईकोर्ट पहुंचा था. अदालत के आदेश पर महानिदेशक चिकित्सा एवं शिक्षा डॉ. के. के गुप्ता ने जांच की थी. उन्होंने 26 जून 2019 को दी रिपोर्ट में लिखा था कि नियुक्तियां नियम के विपरीत हैं और संदेहास्पद तरीके से की गई थी.

इसके बाद मामले पर हाईकोर्ट ने तीन माह में निस्तारण का निर्देश दिया था. संस्थान की शासी निकाय की बैठक में अस्थाई पदों पर कार्य डॉक्टरों को स्थाई करने का प्रस्ताव पारित कर दिया. इसके बाद अब इन्हीं डॉक्टरों पर दवाइयों का ट्रायल निजी अस्पतालों में करने के आरोप लग रहे हैं. हालांकि लोहिया संस्थान के निदेशक एके त्रिपाठी ने फोन पर बातचीत में कहा है कि मामले में दोषी पाए जाने पर कार्रवाई की जाएगी.

ट्रायल की बात निराधार
संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. भुवन तिवारी ने बताया कि ड्रग ट्रायल की बात निराधार है. डॉक्टर ट्रायल करते हैं, जो डॉक्टर जहां काम करता है वहां ट्रायल करता है. हालांकि इस पूरे मामले से लोहिया संस्थान प्रशासन ने पल्ला झाड़ रहा है, लेकिन सवाल है कि हाईकोर्ट के निर्देश की अवहेलना के साथ इन डॉक्टरों द्वारा निजी अस्पतालों में दवाइयों का ट्रायल के मामले में भी लोहिया संस्थान प्रशासन इतनी लापरवाही क्यों बरत रहा है.

Intro:



लखनऊ के लोहिया संस्थान में काम कर रहे डॉक्टरों पर निजी संस्थान में जाकर के ट्राई करने के आरोप लगे हैं। ऐसा मामला प्रकाश मे आया है। इस संबंध में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा को शिकायती पत्र भेजा गया है।




Body:राजधानी लखनऊ के लोहिया संस्थान में काम करते हुए डॉक्टर निजी अस्पताल से जुड़कर दवाओं का ट्रायल कर रहे हैंम ऐसा मामला प्रकाश में आया है।इस संबंध में प्रमुख सचिव को शिकायती पत्र भेजा गया है।यह वही डॉक्टर है जो संस्थान में पहले अस्थाई तौर पर तैनात रहे और अब इनका कार्य उत्तम होने का हवाला देकर स्थाई किया जा रहा है।यहां अस्थाई पद पर तैनात चार चिकित्सकों को स्थाई किया जा रहा है।संस्थान के डॉक्टर 2017 में चौक के मिर्जा मंडी स्थित निजी अस्पताल में भी सेवाएं देते रहे। सूत्रों की मानें तो आरोप संबंधित डॉक्टर पर निवेश कंपनी की दवाओं का ट्रायल किया है, 15 सितंबर व 17 सितंबर को ट्राई के क्रमांक (सिटीआरआई 2017 00 9799) सहित पूरा विवरण दिया गया है।इसके एवज में कंपनी ने करीब ₹200000 का भुगतान भी किया है।डॉक्टर ने स्टंट बनाने वाली कंपनी से भी करार किया है।इसके एवज में लाखों मिले पत्र में क्लीनिकल ट्रायल से जुड़े दस्तावेज भी भेजे गए हैं। कंपनी ने अपने दस्तावेज में डॉक्टर की क्लिनिकल ट्रायल का ब्यौरा और दिए गए भुगतान का जिक्र किया है। हालांकि बीते दिनों लोहिया संस्थान में वर्ष 2015 में कार्डियोलॉजी ,न्यूरोलॉजी, न्यूरोलॉजी एवं रेडियोडायग्नोसिस विभाग में एक एक प्रोफेसर को अस्थाई तौर पर नियुक्ति का मामला हाईकोर्ट पहुंचा था।अदालत के आदेश पर महानिदेशक चिकित्सा एवं शिक्षा डॉ के के गुप्ता ने जांच की थी। उन्होंने 26 जून 2019 को दी रिपोर्ट में लिखा था कि नियुक्तियां नियम के विपरीत है और संदेहास्पद तरीके से की गई थी। इसके बाद मामले पर हाईकोर्ट ने 3 माह में निस्तारण का निर्देश दिया था। इसके बाद भी संस्थान की शासी निकाय की बैठक में अस्थाई पदों पर कार्य डॉक्टरों को स्थाई करने का प्रस्ताव पारित कर दिया।जिसके बाद अब इन्हीं डॉक्टरों पर दवाइयों का ट्रायल निजी अस्पतालों में करने के आरोप लग रहे हैं। हालांकि लोहिया संस्थान के निदेशक एके त्रिपाठी ले ने फोन पर बातचीत में कहा है कि मामले में दोषी पाए जाने पर कार्यवाही की जाएगी तो वही संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक डॉ भुवन तिवारी ने बताया कि मामला संज्ञान में और आरोप निराधार है।

बाइट- डॉ भुवन तिवारी, चिकित्सा अधीक्षक, लोहिया संस्थान




Conclusion:हालांकि इस पूरे मामले से लोहिया संस्थान प्रशासन द्वारा मामले से पल्ला झाड़ा जा रहा है।लेकिन सवाल है कि हाईकोर्ट के निर्देश की अवहेलना के साथ इन डॉक्टरों द्वारा निजी अस्पतालों में दवाइयों का ट्रायल के मामले मे भी लोहिया संस्थान प्रशासन इतनी लापरवाही क्यों बरत रहा है।

एन्ड पीटीसी
शुभम पाण्डेय
7054605976
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