लखनऊ : स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर, मरीजों को ठीक करने का योग्यता तो रखते हैं, मगर खुद की निदेशालय स्तर की 'बीमारी' को नहीं ठीक नहीं कर पा रहे हैं. डॉक्टरों की समयबद्ध प्रोन्नति का प्रावधान है, लचीली कार्यप्रणाली की वजह से समस्या नासूर बन गई है. विभाग में तमाम चिकित्सक हैं, जो दशकों तक नौकरी करने के बाद भी उसी पद से रिटायर हो रहे हैं या 34-35 साल की नौकरी में एक या दो प्रोन्नति ही पाए हैं. इन्होंने नई वरिष्ठता सूची में खुद को नए इस फरवरी में ही सेवानिवृत्त होने वाले करीब डेढ़ दर्जन डॉक्टरों में चार डॉक्टर हैं, जिन्हें पूरी नौकरी में केवल एक प्रमोशन ही मिला है. एक डॉक्टर विशेषज्ञ डॉक्टरों से कमतर रखने का विरोध शुरू कर दिया है, जो बिना प्रमोशन के ज्वॉइनिंग पद से ही रिटायर होंगे. इसके अलावा चार डॉक्टर हैं, जिन्हें मात्र दो प्रमोशन मिले हैं, कुछ को तीन मिले हैं.
इसी तरह मार्च माह में भी पांच डॉक्टर 36 साल में केवल दो प्रमोशन प्राप्त कर रिटायर होंगे. अप्रैल व मई माह में तीन डॉक्टर बिना प्रोन्नति रिटायर होने वाले हैं. हालांकि इस संबन्ध में स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. लिली सिंह का कहना है कि पुराने मामले हैं. इसलिए वह कुछ स्पष्ट बताने की स्थिति में नहीं हैं. समस्या बिना प्रमोशन रिटायर होना ही नहीं है, बल्कि तैयार हो रही नई वरिष्ठता सूची में भी होगी, क्योंकि ये बाद के डॉक्टरों से जूनियर नहीं रहना चाहते हैं. वर्ष 2020 में नई सेवा नियमावली के अंतर्गत लेवल टू से बतौर विशेषज्ञ ज्वॉइन करने वाले डॉक्टर, पुराने डॉक्टरों पर ड्यूटी स्थल पर भारी पड़ रहे हैं. पुराने डॉक्टरों आपति भी जता रहे हैं.
प्रशासक स्वास्थ्य विभाग के निदेशक डॉ. राजा गणपति ने कहा कि नई वरिष्ठता सूची में शामिल डॉक्टरों से 15 फरवरी तक आपत्तियां मांगी गई थी. सभी को क्रमबद्ध किया जा रहा है, 20 फरवरी तक आपत्तियों का अवलोकन कर, सूची शासन को भेज दी जाएगी. प्रथमदृष्टया आपत्तियां गलत नाम व जन्मतिथि को लेकर आई है. इनसे नई वरिष्ठता सूची प्रभावित होने की संभावना नहीं है. उप्र प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग के सचिव डॉ. अमित सिंह ने कहा कि डॉक्टरों के प्रमोशन न होने की दो वजहें है डॉक्टर ने सेवाए न दी हो, कोई जांच चल रही हो. हम लोग हमेशा मांग करते आए हैं कि जो सेवाएं नहीं दे रहे हैं, उन्हें हटा दिया जाए और समय से प्रमोशन दिया जाए. मगर अधिकारियों ने कभी निर्णय नहीं लिया. समस्या विकराल रूप में सामने आ गई है
नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस के मानक पर इन अस्पतालों को मिला प्रथम स्थान : नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस के मानक पर प्रदेश के जिला अस्पतालों को पहला स्थान प्राप्त हुआ. यह प्रमाण पत्र नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस के स्टैंडर्ड मानकों के आधार पर तीन राउंड की कठिन प्रक्रिया के बाद दिया किया जाता है. वहीं सरकारी अस्पतालों के सेवाओं में सुधार कर क्वालिटी ट्रीटमेंट को बढ़ाने के इरादे से पांच हजार स्वास्थ्य कर्मियों को स्किल्ड बर्थ अटेंडेंट का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से उत्तर प्रदेश के जिला अस्पतालों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं देने पर 46 जिलों की 81 अस्पताल इकाइयों को नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस प्रमाणपत्र दिया गया है. इनमें 43 जिला स्तरीय, 16 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 22 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शामिल हैं. प्रदेश के अन्य चिकित्सा इकाइयों को एनक्यूए प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए योगी सरकार की ओर विभिन्न आवश्यक दिशा निर्देश दिए गए हैं. इन चिकित्सा इकाइयों में विभिन्न सुधार के लिए बजट भी दिया गया है. ताकि प्रदेश की सभी चिकित्सा इकाइयां नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैंडर्ड मानकों पर खरा सकें. सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक बैठक में उच्च अधिकारियों को प्रदेश की 25 करोड़ आबादी को सरकारी अस्पतालों में गुणवत्तापरक इलाज के साथ जीरो पॉकेट खर्च पर काम करने के निर्देश दिया है.