लखनऊः जैन मंदिर आशियाना में रविवार को श्रद्धालुओं ने क्षमावाणी पर्व मनाया. इस मौके पर तीर्थांकर शांतिनाथ की प्रतिमा को पालकी में विराजमान करके भव्य यात्रा जैन मंदिर से महावीर चौक(पावर हाउस चौराहा) तक निकाली गई. यात्रा प्रवर्तन के बाद जैन मंदिर में भगवान का जलाभिषेक एवं शांतिधारा के साथ पूजन हुआ. पूजन के बाद सभी भक्तों ने परस्पर क्षमा याचना की.
सांगानेर से पधारे पंडित पीयूष जैन का सम्मान समिति द्वारा किया गया. पंडित पीयूष जैन ने कहा कि क्षमा करने से ही हम क्षमा किए जाते हैं. उप्र जैन विद्या शोध संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो. अभय कुमार जैन ने बताया कि प्राकृत भाषा की शास्त्रोक्तियों के अनुसार 'खामेमि सव्व जीवाणं, सव्वे जीवा खमन्तु मे, मित्ति मे सव्वभूएसु, वैरं मज्झं ण केण वि' अर्थात मैं संसार के सब जीवों (प्राणियो) को क्षमा करता हूं, सब जीव मुझे क्षमा करें. सभी जीवों से मेरा मैत्री भाव है, किसी से मेरा वैर भाव नहीं है. क्षमा भाव आत्मा का गुण है, जिसमें करुणा और परस्पर मैत्रीभाव का संदेश है. क्षमाभाव आत्मा में उत्पन्न निर्मल भावनाओं का प्रतीक है, क्षमाभाव जीव दया और करुणा का प्रतीक है.
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क्षमावाणी पर्व का महत्व
दस धर्मों एवं रत्नत्रय की आराधना से मन में कटुता समाप्त होकर निर्मलता आती है. क्षमाभाव आत्मा का स्वरूप है, जिसमें करुणा और परस्पर मैत्रीभाव का दर्शन होता है. जैन धर्म संस्कृति में क्षमा धर्म है. क्षमा मन की मलीनता को समाप्त कर परस्पर सहअस्तित्व के भाव जगाता है. क्षमाधर्म संसार के समस्त प्राणियों के प्रति सहानुभूति रखने का संदेश है.
दिगंबर, जैन, आम्नाय के श्रद्धालु अश्विन कृष्ण प्रतिपदा को क्षमा वाणी पर्व मनाते हैं. इस दिन मंदिर में क्षमावाणी पूजनोपरांत सभी परस्पर क्षमायाचना कर क्षमादान करते हैं. यही क्षमाधर्म दशलक्षण धर्म का वैशिष्ट्य है. प्राकृत भाषा में क्षमा पाने के लिए 'मिच्छामि दुक्कड़म्' का अर्थ है जाने अनजाने में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा परस्पर क्षमा याचना करना और दूसरों को क्षमा करना है.