लखनऊ: भूगर्भ जल के अन्धाधुन्ध दोहन के परिणाम स्वरूप उत्तर प्रदेश देश में भूजल दोहन के लिहाज से टॉप पर है, वहीं प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में राजधानी लखनऊ में भूजल संसाधनों का सर्वाधिक दोहन किया जा रहा है. आज विश्व जल दिवस है. ऐसे में इस बार की थीम 'ग्राउंडवाटर: मेकिंग द इंविजिबल विजिबल'(Groundwater: Making the invisible visible) रखा गया है. आज लोगों के पास ऑप्शन बहुत हैं. सप्लाई का पानी अच्छा नहीं आ रहा है या समय पर नहीं आ रहा है, ऐसे में लोग समरसेबल लगवाते हैं. लखनऊ की खाली धरती की गगरी को भरने के प्रयास सिर्फ कागजों पर ही दिख रहे हैं. वर्षा जल बचाने के लिए नगर निगम में लगा संयंत्र ही सूख गया है. ऐसे ही हालात दस शहरों में भी दिख रहे हैं और उन्हें अति जल दोहन करने वाले शहरों की सूची में शामिल किया गया है.
शहर में नही बचे नलकूप और कुंए
भूजल विशेषज्ञ डॉ. आरएस सिन्हा बताते हैं कि प्रदेश के 653 स्थानीय निकायों में से 622 में पेयजल की आपूर्ति पूरी तरह से भूजल पर ही निर्भर है. यह हाल है उन शहरों का, जहां हर साल धरती की गगरी से पानी कम हो रहा है. सूखते नलकूप और पोखर पानी के इस दर्द की कहानी खुद बयां कर रहे हैं. अगर शहरी क्षेत्रों पर ही नजर डालें तो पानी के संभावित संकट को लेकर तस्वीर डरावनी सी लगती है. लखनऊ, कानपुर नगर, आगरा, गाजियाबाद, नोएडा, अलीगढ़, मेरठ में बीते 10 से 15 वर्षों में भूजल स्तर में दस से बारह मीटर की गिरावट आई है. लखनऊ, कानपुर नगर, आगरा, गाजियाबाद, नोएडा, अलीगढ़, मेरठ में बीते 10 से 15 वर्षों में भूजल स्तर में दस से बारह मीटर की गिरावट आई है.
लखनऊ में भू-जल दोहन से बढ़ी मुश्किल
प्रदेश स्तर पर लखनऊ की स्थिति सबसे भयावह है. यहां जल का दोहन प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में हर दिन करीब 40 लाख लीटर हो रहा है. जलकल महकमा नलकूपों से 35.6 करोड़ लीटर पानी की आपूर्ति प्रतिदिन कर रहा है. इसके अलावा बहुमंजिला भवन, होटल, अस्पताल, औद्योगिकी क्षेत्र, सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों, रेलवे और घरों में लगे करीब एक लाख सबमर्सिबल पंपों व गहरी बोरिंग से सौ करोड़ लीटर पानी निकाला जाता है. लखनऊ में बिना बेरोक- टोक के करीब 140 करोड़ लीटर भूजल का दोहन हो रहा है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
डॉ. सिन्हा ने बताया कि प्रमुख सचिव को जल संरक्षित करने के लिए साथ ही जल के दोहन को रोकने के लिए पत्र लिखा है. उन्होंने बताया कि फसल आधारित जल उपयोग (crop water use), औद्योगिक पेयजल, इन्फ्रास्ट्रक्चरल व्यवसायिक व अन्य बढ़ती जल मांगों को देखें तो क्षेत्र की वास्तविक स्थिति के आधार पर किय गए एक आंकलन के अनुसार प्रदेश में भूगर्भ जल दोहन की मात्रा प्रतिवर्ष लगभग 55 से 60 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पहुंच चुकी है, जिसमें निरन्तर वृद्धि हो रही है.
उधर केन्द्रीय भूजल बोर्ड/भूगर्भ जल विभाग के आंकलन के अनुसार प्रदेश में भूजल दोहन की मात्रा अपेक्षाकृत कम रिपोर्टेड मात्र 45.88 बिलियन क्यूबिक मीटर ही आगणित की गई है, जिसमें केवल सिंचाई एवं पेयजल क्षेत्र में ही आकलित भूजल दोहन की मात्रा सम्मिलित है. वह भी जीईसी-2015 के अन्तर्गत तदर्थ मानकों पर आधरित है. समग्र रूप से यदि अवलोकन किया जाए तो प्रदेश में भूजल दोहन का आंकड़ा रिपोर्टटेड आंकडे के सापेक्ष बहुत अधिक होगा. यदि भूजल दोहन पर व्यापक दृष्टि डाली जाये तो उपलब्ध डायनमिक भूजल संसाधनों की दोहन योग्य मात्रा के सापेक्ष प्रदेश में दोहन की दर (Stage of Ground Water Extraction) अनुमानतः 85 से 90 प्रतिशत तक पहुंच गयी है.
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डॉ. सिन्हा ने बताया कि एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 1997 में फैसला सुनाया था कि भारत सरकार का भूजल बोर्ड एक भूजल प्राधिकरण गठित करे. जिसके बाद केंद्र सरकार के स्तर पर 1997 में भूजल प्राधिकरण गठित किया गया था, जिसका दायित्व था कि वह राज्यों से तालमेल कर समस्या समाधान के लिए एक तंत्र विकसित करे, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली. इसके बाद केंद्र सरकार ने कई बार राज्यों से कहा कि वह अपना प्रथक कानून बनाएं, लेकिन राज्यों ने इसका कोई संज्ञान नहीं लिया. 2011 में एक बार एक्ट बनाकर कोशिश जरूर हुई. इसके बाद भी सरकारी स्तर पर इसकी स्वीकृति नहीं मिल पाई. हालांकि इसमें कोई परेशानी नहीं थी. केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के ढांचे को राज्य में भी स्वीकृति दी जा सकती है. इस प्राधिकरण के पास अनेक शक्तियां हैं, लेकिन सरकारें इसे लेकर कतई चिंतित नहीं हैं.