ETV Bharat / state

हॉर्न लाउडस्पीकरों और ईयरफोन से कम हो रही सुनने की क्षमता, बहरेपन का शिकार हो रहे युवा

हॉर्न व लाउडस्पीकरों का शोर शहर के लोगों का सुकून छीन रहा है. चार पहिया व दोपहिया वाहनों में लगे प्रेशर हॉर्न व मल्टी-ट्यून हॉर्न खतरनाक हैं. जो शहर में चारों ओर सड़क और गलियों में निकलते समय शोर से लोगों को दिमागी तौर पर बीमार बना रहे हैं. मानव कान 20 Hz से 20000 Hz तक सुनने के सक्षम हैं.

म
author img

By

Published : Nov 25, 2022, 5:31 PM IST

लखनऊ : हॉर्न व लाउडस्पीकरों का शोर शहर के लोगों का सुकून छीन रहा है. चार पहिया व दोपहिया वाहनों में लगे प्रेशर हॉर्न व मल्टी-ट्यून हॉर्न खतरनाक हैं. जो शहर में चारों ओर सड़क और गलियों में निकलते समय शोर से लोगों को दिमागी तौर पर बीमार बना रहे हैं. मानव कान 20 Hz से 20000 Hz तक सुनने के सक्षम हैं. वर्तमान में शहर के शोर और ईयरफोन इस तय दायरे को पार कर रखा है.

सिविल अस्पताल की ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. चारू तिवारी (ENT Specialist of Civil Hospital Dr. Charu Tiwari) ने कहा कि मौजूदा समय में ध्वनि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है. गाड़ियों के साउंड काफी ज्यादा तेज होते हैं. आप घर में हो या दफ्तर में हर जगह शोर है, वह भी मानक से अधिक. उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Uttar Pradesh Pollution Control Board) ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक लखनऊ में ध्वनि प्रदूषण मानकों से अधिक पाया गया है. लगातार शोर में रहने से सुनने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाती है. तनाव बढ़ने लगता और स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो जाता है. 15 से 50 साल की उम्र के लोगों में यह दिक्कत इस समय ज्यादा हो रही है. कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई के चलते लंबे समय तक बच्चे भी ईयर फोन का इस्तेमाल करने लगे थे. ओपीडी में रोजाना 4 से 5 के ऐसे आते हैं जो बहरेपन के शिकार हुए हैं जिसके पीछे का कारण ध्वनि प्रदूषण है.

जानकारी देतीं सिविल अस्पताल की ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. चारू तिवारी.
डॉ. चारू ने बताया कि अस्पताल में लगभग जितने भी मरीज आते हैं. सभी के लक्षण एक समान होते हैं. सभी यह बताते हैं कि अगर त्योहार में घर के आस-पास पटाखा बजाया जाता है तो वह कान में काफी ज्यादा दिक्कत करता है. कान कभी-कभी बहने लगता है. कभी-कभी कान में सी आवाज सुनाई देती है. ध्वनि प्रदूषण से लोगों में चिड़चिड़ाहट, गुस्सा, हृदय संचालन की गति तीव्र होना, खून में कोलस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ना, हृदय रोग की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. बढ़ता शोर स्नायविक बीमारी, नर्वस ब्रेक डाउन आदि को भी जन्म देता है.यह है नियम : मोटर व्हीकल एक्ट (Motor Vehicle Act) 1989 के तहत शोर की सतह 93 से 112 डेसिबल रखा गया है. प्रेशर हॉर्न से होने वाले शोर को वाहनों की हॉर्न की आवाज को कम करना चाहता है. मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 190 (2) के अनुसार तेज आवाज में बजाए जाने वाले हॉर्न वाले वाहन पर जुर्माना किए जाने का प्रावधान भी है. लेकिन केंद्र सरकार के इस नियम को कोई मानने वाला नहीं है. लोगों का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले लाउडस्पीकर पर जल्द पाबंदी लगा दी जाती है तो प्रेशर हार्न वालों को शिकंजा क्यों नहीं कसा जाता है.

यह भी पढ़ें : निकाय चुनाव की तैयारी के लिए कांग्रेस में मांगे सुझाव, पार्टी कार्यालय में प्रांतीय अध्यक्ष ने लगवाया बॉक्स

लखनऊ : हॉर्न व लाउडस्पीकरों का शोर शहर के लोगों का सुकून छीन रहा है. चार पहिया व दोपहिया वाहनों में लगे प्रेशर हॉर्न व मल्टी-ट्यून हॉर्न खतरनाक हैं. जो शहर में चारों ओर सड़क और गलियों में निकलते समय शोर से लोगों को दिमागी तौर पर बीमार बना रहे हैं. मानव कान 20 Hz से 20000 Hz तक सुनने के सक्षम हैं. वर्तमान में शहर के शोर और ईयरफोन इस तय दायरे को पार कर रखा है.

सिविल अस्पताल की ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. चारू तिवारी (ENT Specialist of Civil Hospital Dr. Charu Tiwari) ने कहा कि मौजूदा समय में ध्वनि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है. गाड़ियों के साउंड काफी ज्यादा तेज होते हैं. आप घर में हो या दफ्तर में हर जगह शोर है, वह भी मानक से अधिक. उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Uttar Pradesh Pollution Control Board) ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक लखनऊ में ध्वनि प्रदूषण मानकों से अधिक पाया गया है. लगातार शोर में रहने से सुनने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो जाती है. तनाव बढ़ने लगता और स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो जाता है. 15 से 50 साल की उम्र के लोगों में यह दिक्कत इस समय ज्यादा हो रही है. कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई के चलते लंबे समय तक बच्चे भी ईयर फोन का इस्तेमाल करने लगे थे. ओपीडी में रोजाना 4 से 5 के ऐसे आते हैं जो बहरेपन के शिकार हुए हैं जिसके पीछे का कारण ध्वनि प्रदूषण है.

जानकारी देतीं सिविल अस्पताल की ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. चारू तिवारी.
डॉ. चारू ने बताया कि अस्पताल में लगभग जितने भी मरीज आते हैं. सभी के लक्षण एक समान होते हैं. सभी यह बताते हैं कि अगर त्योहार में घर के आस-पास पटाखा बजाया जाता है तो वह कान में काफी ज्यादा दिक्कत करता है. कान कभी-कभी बहने लगता है. कभी-कभी कान में सी आवाज सुनाई देती है. ध्वनि प्रदूषण से लोगों में चिड़चिड़ाहट, गुस्सा, हृदय संचालन की गति तीव्र होना, खून में कोलस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ना, हृदय रोग की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. बढ़ता शोर स्नायविक बीमारी, नर्वस ब्रेक डाउन आदि को भी जन्म देता है.यह है नियम : मोटर व्हीकल एक्ट (Motor Vehicle Act) 1989 के तहत शोर की सतह 93 से 112 डेसिबल रखा गया है. प्रेशर हॉर्न से होने वाले शोर को वाहनों की हॉर्न की आवाज को कम करना चाहता है. मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 190 (2) के अनुसार तेज आवाज में बजाए जाने वाले हॉर्न वाले वाहन पर जुर्माना किए जाने का प्रावधान भी है. लेकिन केंद्र सरकार के इस नियम को कोई मानने वाला नहीं है. लोगों का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले लाउडस्पीकर पर जल्द पाबंदी लगा दी जाती है तो प्रेशर हार्न वालों को शिकंजा क्यों नहीं कसा जाता है.

यह भी पढ़ें : निकाय चुनाव की तैयारी के लिए कांग्रेस में मांगे सुझाव, पार्टी कार्यालय में प्रांतीय अध्यक्ष ने लगवाया बॉक्स

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.