लखनऊ: केंद्र व प्रदेश सरकार लगातार बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का नारा देकर बेटियों में बेटों में समानता लाने की बात कर रही है, पर समाज में आज भी बेटियों को अभिशाप माना जाता है. यही कारण है कि बेटियों के जन्म के बाद बहुत से लोग उन्हें सुनसान स्थलों व कूड़े के ढेर में फेंक देते हैं. इसके पीछे कभी सामाजिक लोक लाज कभी आर्थिक संकट तो कभी कई अन्य कारण भी होते हैं.
वहीं लड़कियों के कूड़े में फेंके जाने के सवाल पर बाल आयोग की सदस्य डॉ सुचिता चतुर्वेदी का कहना है कि जिन बच्चों को कूड़े के ढेर में फेंक दिया जाता है उनके माता-पिता को ढूंढने में काफी दिक्कत भी होती है और यदि इनके माता-पिता मिल भी जाते हैं तो उन्हें सिद्ध करने में भी एक लंबी प्रक्रिया के तहत गुजरना होता है और कई बार यह सिद्ध भी नहीं हो पाता है.
बताते चलें कि देश में बेटियों में बेटों में सरकार व लोगों की जागरूकता के बावजूद भी अंतर रखा जाता है और यही कारण है कि आज बड़ी संख्या में बेटियां या तो मां के गर्भ में मार दी जाती हैं या जन्म लेने के बाद उन्हें कूड़े के ढेर में फेंक दिया जाता है. इसके लिए सरकार व समाज दोनों को मिलकर आगे आना होगा तभी इस पर रोक लग सकेगी.