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भूगर्भीय संरचनाओं से छेड़छाड़ बढ़ा रही भूकंप से नुकसान का खतरा, नियंत्रित करना होगा भूगर्भ जल का दोहन

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 7, 2023, 2:08 PM IST

Updated : Nov 7, 2023, 3:26 PM IST

भूकंप से धरती के साथ जीवन को भी बड़ा खतरा है, लेकिन यह खतरा विकास की अधाधुंध दौड़ में हमने ही मोल लिया है. भूगर्भ जल दोहन के अलावा धरती की कोख से खनिज निकालने की होड़ से भूगर्भीय संरचनाओं का प्राकृतिक तालमेल लगातार बिगड़ रहा है. यही कारण है कि आने वाले भूकंपों की तीव्रता बढ़ती जा रही है. देखें खास रिपोर्ट...

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भूकंप के खतरों और समाधान की जानकारी देते भूगर्भ विशेषज्ञ डॉ. आरएस सिन्हा.

लखनऊ : पिछले लगभग एक माह में उत्तर प्रदेश और एनसीआर में तीन बार भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं. इन झटकों की तीव्रता पूर्व के वर्षों की अपेक्षा ज्यादा देखी गई है. भूगर्भ जल के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि विगत दो-तीन दशकों में ग्राउंड वाटर का दोहन पहले के मुकाबले कई गुना ज्यादा हो गया है. विशेषज्ञ बताते हैं कि 70-80 के दशक में आने वाले भूकंपों की तीव्रता उत्तर प्रदेश और खास तौर पर लखनऊ में बहुत कम होती थी. हालांकि 2015 और उसके बाद के भूकंपों में इसकी तीव्रता काफी ज्यादा महसूस की गई है. यह एक तरह के खतरे का संकेत है. यदि इसके बावजूद लोगों ने सबक नहीं लिया तो यह भविष्य में और संकट खड़ा करेगा. चिंता का विषय यह है कि सरकार इस संबंध में बिल्कुल गंभीर नहीं है. भूगर्भ जल का प्रयोग कम करने के बजाय इस पर निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है.


भूगर्भ जल दोहन से बढ़ रहा खतरा.
भूगर्भ जल दोहन से बढ़ रहा खतरा.




भूगर्भ विशेषज्ञ डॉ. आरएस सिन्हा कहते हैं कि यदि हम भू वैज्ञानिक के दृष्टिकोण से बात करें तो यह माना जाता है कि हमारा गंगा बेसिन मिट्टी की मोटी सतह पर बसा हुआ है. इसलिए जब भी भूकंप आते हैं, तो हमें उसकी तीव्रता ज्यादा महसूस नहीं होती है. इस तरह का कोई खतरा नहीं रहता है. ज्यादा नुकसान भी नहीं होता है. इसका कारण यही है कि गंगा बेसिन में जिसे हम एल्युवियल कहते हैं, भूगर्भ विज्ञान की भाषा में, वह एक बहुत मोटी मिट्टी की तह है. इसकी मोटाई करीब एक किलोमीटर है. यह तह भूकंपीय झटकों को नियंत्रित कर लेती है. इस कारण हमें भूकंप की तीव्रता ज्यादा महसूस नहीं होती है. हालांकि पिछले 20-25 साल में इसकी तीव्रता लखनऊ और आसपास के जिलों में बढ़ी है. इससे पहले 70-80 के दशक में जो भूकंप आते थे, तब बहुत मामूली झटके महसूस होते थे. वर्ष 2015 में जब काठमांडू (नेपाल) में तीव्र गति का भूकंप आया था, तब प्रदेश के लोगों में उसकी तीव्रता महसूस की थी. यहां तक कि सड़क पर चलते हुए लोगों ने भी भूकंप का कंपन महसूस किया था.

भूगर्भ जल दोहन से बढ़ रहा खतरा.
भूगर्भ जल दोहन से बढ़ रहा खतरा.




भूगर्भ विज्ञानी डॉ. आरएस सिन्हा के मुताबिक इसे लेकर हम लोगों ने प्रारंभिक अध्ययन किया है. चूंकि हम ग्राउंड वाटर के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं, इसलिए हम लोगों ने पता करने की कोशिश की कि इसका जलस्तर पर क्या प्रभाव पड़ा. जमीन के नीचे जो मिट्टी है पानी भी उसी का हिस्सा है. हमने पिछले 20-25 साल में भूगर्भ जल को बहुत तेजी से निकालना शुरू किया. अब पानी भूगर्भ से बहुत तेजी से निकाला जा रहा है. इससे जमीन के नीचे जो भूगर्भीय संरचनाएं हैं, जो मिट्टी है, उसके प्राकृतिक स्वरूप में बदलाव आ रहे हैं. ऐसा हमारे अध्ययन में निकल कर आया है. भूगर्भ में पानी निकल जाने के कारण जो मिट्टी ढीली हुई है, वह अब भुरभुरी हो गई है. इसके अलावा भूगर्भ में जो चिकनी मिट्टी की मोटी सतह है उसका लचीलापन भी खत्म हो रहा है और वह मिट्टी अब सख्त होती जा रही है. यह संकेत भू धंसाव की ओर इशारा करते हैं. अब भूकंप के समय जो कंपन ज्यादा महसूस हो रहा है, उसका कारण भी यही है.





जानें देश के भूकंप जोन
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यह भी पढ़ें : लखनऊ, बहराइच समेत कई हिस्सों में भूकंप के झटके, रिक्टर पैमाने पर 5.2 रही तीव्रता

बीते 11 महीनों में लखनऊ सहित यूपी में छह बार से अधिक आया Earthquake, इन बातों का रखें ध्यान

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लखनऊ : पिछले लगभग एक माह में उत्तर प्रदेश और एनसीआर में तीन बार भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं. इन झटकों की तीव्रता पूर्व के वर्षों की अपेक्षा ज्यादा देखी गई है. भूगर्भ जल के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि विगत दो-तीन दशकों में ग्राउंड वाटर का दोहन पहले के मुकाबले कई गुना ज्यादा हो गया है. विशेषज्ञ बताते हैं कि 70-80 के दशक में आने वाले भूकंपों की तीव्रता उत्तर प्रदेश और खास तौर पर लखनऊ में बहुत कम होती थी. हालांकि 2015 और उसके बाद के भूकंपों में इसकी तीव्रता काफी ज्यादा महसूस की गई है. यह एक तरह के खतरे का संकेत है. यदि इसके बावजूद लोगों ने सबक नहीं लिया तो यह भविष्य में और संकट खड़ा करेगा. चिंता का विषय यह है कि सरकार इस संबंध में बिल्कुल गंभीर नहीं है. भूगर्भ जल का प्रयोग कम करने के बजाय इस पर निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है.


भूगर्भ जल दोहन से बढ़ रहा खतरा.
भूगर्भ जल दोहन से बढ़ रहा खतरा.




भूगर्भ विशेषज्ञ डॉ. आरएस सिन्हा कहते हैं कि यदि हम भू वैज्ञानिक के दृष्टिकोण से बात करें तो यह माना जाता है कि हमारा गंगा बेसिन मिट्टी की मोटी सतह पर बसा हुआ है. इसलिए जब भी भूकंप आते हैं, तो हमें उसकी तीव्रता ज्यादा महसूस नहीं होती है. इस तरह का कोई खतरा नहीं रहता है. ज्यादा नुकसान भी नहीं होता है. इसका कारण यही है कि गंगा बेसिन में जिसे हम एल्युवियल कहते हैं, भूगर्भ विज्ञान की भाषा में, वह एक बहुत मोटी मिट्टी की तह है. इसकी मोटाई करीब एक किलोमीटर है. यह तह भूकंपीय झटकों को नियंत्रित कर लेती है. इस कारण हमें भूकंप की तीव्रता ज्यादा महसूस नहीं होती है. हालांकि पिछले 20-25 साल में इसकी तीव्रता लखनऊ और आसपास के जिलों में बढ़ी है. इससे पहले 70-80 के दशक में जो भूकंप आते थे, तब बहुत मामूली झटके महसूस होते थे. वर्ष 2015 में जब काठमांडू (नेपाल) में तीव्र गति का भूकंप आया था, तब प्रदेश के लोगों में उसकी तीव्रता महसूस की थी. यहां तक कि सड़क पर चलते हुए लोगों ने भी भूकंप का कंपन महसूस किया था.

भूगर्भ जल दोहन से बढ़ रहा खतरा.
भूगर्भ जल दोहन से बढ़ रहा खतरा.




भूगर्भ विज्ञानी डॉ. आरएस सिन्हा के मुताबिक इसे लेकर हम लोगों ने प्रारंभिक अध्ययन किया है. चूंकि हम ग्राउंड वाटर के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं, इसलिए हम लोगों ने पता करने की कोशिश की कि इसका जलस्तर पर क्या प्रभाव पड़ा. जमीन के नीचे जो मिट्टी है पानी भी उसी का हिस्सा है. हमने पिछले 20-25 साल में भूगर्भ जल को बहुत तेजी से निकालना शुरू किया. अब पानी भूगर्भ से बहुत तेजी से निकाला जा रहा है. इससे जमीन के नीचे जो भूगर्भीय संरचनाएं हैं, जो मिट्टी है, उसके प्राकृतिक स्वरूप में बदलाव आ रहे हैं. ऐसा हमारे अध्ययन में निकल कर आया है. भूगर्भ में पानी निकल जाने के कारण जो मिट्टी ढीली हुई है, वह अब भुरभुरी हो गई है. इसके अलावा भूगर्भ में जो चिकनी मिट्टी की मोटी सतह है उसका लचीलापन भी खत्म हो रहा है और वह मिट्टी अब सख्त होती जा रही है. यह संकेत भू धंसाव की ओर इशारा करते हैं. अब भूकंप के समय जो कंपन ज्यादा महसूस हो रहा है, उसका कारण भी यही है.





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Last Updated : Nov 7, 2023, 3:26 PM IST
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