लखनऊः उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बहुत सी बसें पुरानी हो चुकी हैं. इसकी वजह से राह चलते ही बसें ब्रेकडाउन हो जाती हैं, जिससे यात्रियों को सफर में असुविधा होती है. इन पुरानी बसों को नई बसों से बदलने की जरूरत है और इसके लिए रोडवेज प्रशासन को भारी-भरकम बजट चाहिए जो मिल नहीं पा रहा है, जिससे पुरानी बसों को ही प्रदेश के विभिन्न जनपदों के अलग-अलग रूटों पर दौड़ाया जा रहा है.
यूपीएसआरटीसी की 9405 बसें, 1100 कंडम
यूपीएसआरटीसी के बस बेड़े में जो 12000 बसें संचालित होती हैं, उनमें से परिवहन निगम की 9405 बसे हैं. इनमें से 1100 बसें पूरी तरह कंडम हो चुकी हैं जो नीलामी के लिए तैयार हैं. वहीं छह साल से 10 साल के बीच वाली बसों की संख्या लगभग 50 प्रतिशत के करीब हैं. ऐसे में यह बसें भी अपनी आयु पूरी करने की तरफ बढ़ने लगी हैं. 5000 के करीब पुरानी बसें अभी सड़क पर दौड़ रही हैं. अब इन बसों को भी नई बसों से बदलने की आवश्यकता पड़ेगी. इन बसों में ज्यादातर बसें आएदिन रूट पर खराब भी हो जाती हैं, जो यात्रियों के लिए सफर में मुसीबत पैदा करती हैं.
इस श्रेणी की हैं बसें
उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की कुल 9405 बसों में से साधारण बसों के फ्लीट 8757 है. 339 एसी जनरथ 2×2 और 259 एसी जनरथ 3×2 शामिल हैं.
रोडवेज को तत्काल चाहिए 1300 बसें
1100 बसें नीलामी को तैयार हैं तो हर रोज लगभग पांच फीसद बसें ब्रेकडाउन हो रही हैं. यानी 9405 बसों में से 450 बसें रोज खराब हो जाती हैं. इसलिए परिवहन निगम को वर्तमान में तत्काल 1300 नई बसों की जरूरत हैं, लेकिन इस बार कोरोना के कारण वित्तीय वर्ष में एक भी बस नहीं खरीदी गई है.
शासन से मांगे 390 करोड़
मुख्य प्रधान प्रबंधक पीआर बेलवरियार ने बताया कि 1300 नई बसों को खरीदने के लिए परिवहन निगम प्रशासन की तरफ से शासन को 390 करोड़ रुपये का प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है, लेकिन अब तक इस प्रस्ताव पर शासन की मुहर नहीं लगी है. जिससे एक भी नई बस रोडवेज बस बेड़े में शामिल हो पाना मुश्किल ही लग रहा है. जब सरकार यूपीएसआरटीसी को बजट उपलब्ध कराएगी तभी नई बसें खरीदी जा पाएंगी.
यह है बसों का मानक
उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम ने अपनी बसों के लिए मानक निर्धारित किए हैं. इनमें बस की आयु 10 साल और 11 लाख किलोमीटर है. इनमें से जो भी पहले पूरा होता है इसके बाद बस को फ्लीट से बाहर कर दिया जाता है. वर्तमान में 1100 बसें इसी दायरे में हैं. ये फ्लीट से बाहर ऑक्सन के लिए तैयार हैं.
2627 प्राइवेट बसों का 10 साल का अनुबंध
रोडवेज प्रशासन प्राइवेट बसों का 10 साल के लिए अनुबंध करता है. आठ लाख किलोमीटर बस संचालन का मानक तय कर रखा है, लेकिन यह बसें 10 साल आयु पूरी कर लेती हैं, लेकिन इनका किलोमीटर पूरा नहीं होता है. अब 10 साल के बाद प्राइवेट बसों का दोबारा अनुबंध भी नहीं होता है. इन बसों में भी 10 साल की आयु पूरी करने वाली तकरीबन एक हजार के करीब बसें हो गई हैं. ऐसे में यह बसें भी बस बेड़े से कुछ साल में बाहर हो जाएंगी.
बसों की कमी से बढ़ रही डग्गेमारी
रोडवेज बसों की कमी के कारण ही प्रदेश भर में प्राइवेट बसें धड़ल्ले से दौड़ रही हैं. यह निर्धारित रूट से हटकर अन्य मार्गों पर भी संचालित हो रही हैं. तकरीबन 14000 ऐसी बसें हैं जो डग्गेमारी कर रही हैं. रोडवेज अगर इन प्राइवेट बसों के बजाय अपनी बसें चलाकर यात्रियों को सुविधा दे तो कम से कम 14000 से 15000 नई बसों की जरूरत पड़ेगी. फिलहाल इसके लिए रोडवेज के पास बिल्कुल भी बजट नहीं है.
प्राइवेट ऑपरेटर को देना चाहिए मौका
उत्तर प्रदेश अनुबंधित बस ऑनर्स एसोसिएशन के महामंत्री ने अजीत सिंह ने कहा कि अगर सभी यात्रियों को रोडवेज बस की सेवा उपलब्ध करानी है तो लगभग 14000 बसें परिवहन निगम को चाहिए होंगी. रोडवेज के पास नई बसें खरीदने के लिए पैसा नहीं है. ऐसे में प्राइवेट ऑपरेटर को मौका दें. इसमें उनका बजट भी नहीं लगेगा. सिर्फ कंडक्टर उपलब्ध कराना होगा और यात्रियों को सुविधा भी मिल जाएगी.
बस में इतनी आती है लागत
ऑटोमोबाइल सेक्टर के एक्सपर्ट हसन ने बताया कि साधारण बस तकरीबन 30 लाख रुपये में बनकर तैयार होती है. एसी बस के लिए 45 लाख रुपये खर्च होते हैं. अच्छी क्वालिटी के लिए 50 से 55 लाख खर्च होते हैं. स्कैनिया बस के लिए सवा करोड़ रुपए की लागत आती है.