लखनऊ : राजधानी से करीब 28 किलोमीटर दूर मोहनलालगंज के रहने वाले व्यापारी दिलीप गुप्ता से ऑनलाइन शॉपिंग के नाम पर सात लाख की साइबर ठगी हो गई. दिलीप स्थानीय थाने पहुंचे जहां से उन्हें हजरतगंज स्थित साइबर सेल भेज दिया गया. बंथरा के रहने वाले विकास शुक्ला के साथ लॉन एप के नाम पर ठगी हुई. शिकायत करने थाने पहुंचे जहां से उन्हें साइबर सेल जाने की सलाह दी गई. दोनों ही पीड़ित साइबर सेल कार्यालय से 25 किलोमीटर दूर के रहने वाले थे और उनके स्थानीय थाने में साइबर हेल्प डेस्क थी. बावजूद इसके उन्हें यह जानते हुए भी कि जल्द से जल्द साइबर हेल्प मिलने पर उनका पैसा वापस दिलाया जा सकता है, उन्हें साइबर सेल भेज दिया गया.
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थानों में सुनवाई न होने से बढ़ता है बोझ : साइबर सेल में तैनात अधिकारी कहते हैं कि एक साइबर फ्रॉड को ट्रेस करने, उसके बैंक खातों को खंगालने और फिर उन्हें पकड़ने के लिए कई दिन का समय लगता है. जब तक एक शिकायत पर काम होता है. कर्माचारी के पास अन्य शिकायतों की वेटिंग हो जाती है. जिससे पीड़ित का पैसा वापस मिलने की संभावनाएं कम हो जाती हैं. ऐसे में यदि थानों में साइबर हेल्प डेस्क बनवाई गई है तो वहां बैठे कर्मचारियों को पीड़ितों की मदद करनी चाहिए. इसके लिए उन्हें बकायदा प्रशिक्षित किया गया है. थानों में साइबर फ्रॉड की शिकायतें न सुने जाने से साइबर सेल पर बोझ बढ़ता है.
दो घंटे पीड़ित का पैसा दिलाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण : यूपी पुलिस के साइबर सलाहकार राहुल मिश्रा कहते हैं कि साइबर ठगी होने के बाद यदि 1930 को कॉल करने से लेकर बैंक व पुलिस को ठगी होने के अगले दो घंटों में जानकारी साझा कर दे देते हैं तो पीड़ित को पैसे वापस मिलने की सम्भावना मजबूत हो जाती है. समय से जानकारी मिलने पर साइबर पुलिस अपनी कार्रवाई जल्द से जल्द शुरू कर देती है और जालसाजों को ट्रेस करने का समय मिल जाता है. राहुल कहते हैं यदि सुदूर इलाकों के पीड़ितों की मदद थानों में यदि नहीं होगी तो फिर उन्हें साइबर सेल में पहुंचते पहुंचते जरूरी समय तो खत्म हो ही जाएगा.