लखनऊ: राजधानी लखनऊ में कमलेश तिवारी की हत्या और फिर नवंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या विवाद पर फैसले को लेकर सोशल मीडिया पर निगरानी की आवश्यकता महसूस की गई. इसको लेकर यूपी पुलिस ने खूब दावे किए, लेकिन तमाम दावों के बावजूद भी सोशल मीडिया पर निगरानी करना जिम्मेदार अधिकारियों के लिए आसान नहीं है. यूपी पुलिस के पास सोशल मीडिया पर निगरानी के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है, जिसके चलते सोशल मीडिया की निगरानी करना काफी कठिन बना हुआ है.
हालांकि, पुलिस अपने स्तर से प्रयास कर रही है और साइबर सेल की मदद से सोशल मीडिया पर निगरानी रखी जा रही है. यह निगरानी काफी सीमित है, जबकि सोशल मीडिया इतना व्यापक हो गया है कि हर स्तर पर निगरानी रख पाना पुलिस के लिए संभव नहीं हो पा रहा है.
ज्यादातर सोशल वीडियो प्लेटफार्म विदेश से संचालित होते हैं
सोशल मीडिया पर निगरानी कर पाना यूपी पुलिस के लिए इसलिए भी कठिन बना हुआ है, क्योंकि ज्यादातर सोशल वीडियो प्लेटफार्म विदेश से संचालित होते हैं. इन पर अमेरिका के निजता का हनन कानून लागू होता है, जिसके चलते सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश पुलिस का कोई हस्तक्षेप नहीं रहता है. ऐसे में तमाम बार जानकारी मांगने पर भी सोशल मीडिया को संचालित करने वाली कंपनी जानकारी नहीं उपलब्ध कराती हैं.
हालांकि, जब पुलिस की ओर से कंपनियों को किसी आपत्तिजनक पोस्ट या घटना के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जाती है तो फिर वह उसको अपने प्लेटफार्म से हटाकर पुलिस की मदद जरूर करती हैं, लेकिन सोशल मीडिया संचालित करने वाली कंपनियां अकाउंट फोल्डर के बारे में कोई अन्य जानकारी उपलब्ध नहीं कराते हैं.
सीओ अभय मिश्रा ने दी जानकारी
सोशल मीडिया पर निगरानी रखने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. हमने वॉलिंटियर्स तैयार किए हैं जो कि विभिन्न फेसबुक पेज, व्हाट्सएप ग्रुप में ऐड हैं. जब इन ग्रुप को सोशल मीडिया पर किसी तरह की आपत्तिजनक पोस्ट किए जाते हैं तो फिर वह तुरंत हमें सूचना करते हैं और हमारी टीम ऐसे लोगों को खोजकर उनके ऊपर कार्रवाई करती है. लोगों को जागरूक करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, जिसके लिए भारी संख्या में पंपलेट छपवाए गए हैं जो लोगों में वितरित किए जाएंगे.
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