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ये जिम्मेदारी नहीं है आसान: वॉलिंटियर्स की मदद से हो रही सोशल मीडिया की निगरानी

राजधानी में यूपी पुलिस के पास सोशल मीडिया पर निगरानी के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है. इसके चलते सोशल मीडिया की निगरानी करना काफी कठिन बना हुआ है.

अभय मिश्रा,सीओ
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Published : Nov 25, 2019, 8:10 PM IST

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में कमलेश तिवारी की हत्या और फिर नवंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या विवाद पर फैसले को लेकर सोशल मीडिया पर निगरानी की आवश्यकता महसूस की गई. इसको लेकर यूपी पुलिस ने खूब दावे किए, लेकिन तमाम दावों के बावजूद भी सोशल मीडिया पर निगरानी करना जिम्मेदार अधिकारियों के लिए आसान नहीं है. यूपी पुलिस के पास सोशल मीडिया पर निगरानी के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है, जिसके चलते सोशल मीडिया की निगरानी करना काफी कठिन बना हुआ है.

चुनौतियों भरा है सोशल मीडिया पर निगरानी करना.
साइबर सेल की मदद से सोशल मीडिया पर निगरानी रखी जा रही है
लखनऊ पुलिस में तैनात कई अधिकारियों से जब सोशल मीडिया पर बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर निगरानी के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं. कोई उपकरण (टूल्स) उपलब्ध न होने के चलते सोशल मीडिया निगरानी को व्यापक स्तर पर करना संभव प्रतीत नहीं हो रहा है.

हालांकि, पुलिस अपने स्तर से प्रयास कर रही है और साइबर सेल की मदद से सोशल मीडिया पर निगरानी रखी जा रही है. यह निगरानी काफी सीमित है, जबकि सोशल मीडिया इतना व्यापक हो गया है कि हर स्तर पर निगरानी रख पाना पुलिस के लिए संभव नहीं हो पा रहा है.

ज्यादातर सोशल वीडियो प्लेटफार्म विदेश से संचालित होते हैं

सोशल मीडिया पर निगरानी कर पाना यूपी पुलिस के लिए इसलिए भी कठिन बना हुआ है, क्योंकि ज्यादातर सोशल वीडियो प्लेटफार्म विदेश से संचालित होते हैं. इन पर अमेरिका के निजता का हनन कानून लागू होता है, जिसके चलते सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश पुलिस का कोई हस्तक्षेप नहीं रहता है. ऐसे में तमाम बार जानकारी मांगने पर भी सोशल मीडिया को संचालित करने वाली कंपनी जानकारी नहीं उपलब्ध कराती हैं.

हालांकि, जब पुलिस की ओर से कंपनियों को किसी आपत्तिजनक पोस्ट या घटना के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जाती है तो फिर वह उसको अपने प्लेटफार्म से हटाकर पुलिस की मदद जरूर करती हैं, लेकिन सोशल मीडिया संचालित करने वाली कंपनियां अकाउंट फोल्डर के बारे में कोई अन्य जानकारी उपलब्ध नहीं कराते हैं.

सीओ अभय मिश्रा ने दी जानकारी
सोशल मीडिया पर निगरानी रखने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. हमने वॉलिंटियर्स तैयार किए हैं जो कि विभिन्न फेसबुक पेज, व्हाट्सएप ग्रुप में ऐड हैं. जब इन ग्रुप को सोशल मीडिया पर किसी तरह की आपत्तिजनक पोस्ट किए जाते हैं तो फिर वह तुरंत हमें सूचना करते हैं और हमारी टीम ऐसे लोगों को खोजकर उनके ऊपर कार्रवाई करती है. लोगों को जागरूक करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, जिसके लिए भारी संख्या में पंपलेट छपवाए गए हैं जो लोगों में वितरित किए जाएंगे.

इसे भी पढ़ें-सहारनपुर: सोनिया गांधी के नाम जमीयत का लेटर वायरल, उलेमाओं ने बताया फर्जी

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में कमलेश तिवारी की हत्या और फिर नवंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या विवाद पर फैसले को लेकर सोशल मीडिया पर निगरानी की आवश्यकता महसूस की गई. इसको लेकर यूपी पुलिस ने खूब दावे किए, लेकिन तमाम दावों के बावजूद भी सोशल मीडिया पर निगरानी करना जिम्मेदार अधिकारियों के लिए आसान नहीं है. यूपी पुलिस के पास सोशल मीडिया पर निगरानी के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है, जिसके चलते सोशल मीडिया की निगरानी करना काफी कठिन बना हुआ है.

चुनौतियों भरा है सोशल मीडिया पर निगरानी करना.
साइबर सेल की मदद से सोशल मीडिया पर निगरानी रखी जा रही हैलखनऊ पुलिस में तैनात कई अधिकारियों से जब सोशल मीडिया पर बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर निगरानी के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं. कोई उपकरण (टूल्स) उपलब्ध न होने के चलते सोशल मीडिया निगरानी को व्यापक स्तर पर करना संभव प्रतीत नहीं हो रहा है.

हालांकि, पुलिस अपने स्तर से प्रयास कर रही है और साइबर सेल की मदद से सोशल मीडिया पर निगरानी रखी जा रही है. यह निगरानी काफी सीमित है, जबकि सोशल मीडिया इतना व्यापक हो गया है कि हर स्तर पर निगरानी रख पाना पुलिस के लिए संभव नहीं हो पा रहा है.

ज्यादातर सोशल वीडियो प्लेटफार्म विदेश से संचालित होते हैं

सोशल मीडिया पर निगरानी कर पाना यूपी पुलिस के लिए इसलिए भी कठिन बना हुआ है, क्योंकि ज्यादातर सोशल वीडियो प्लेटफार्म विदेश से संचालित होते हैं. इन पर अमेरिका के निजता का हनन कानून लागू होता है, जिसके चलते सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश पुलिस का कोई हस्तक्षेप नहीं रहता है. ऐसे में तमाम बार जानकारी मांगने पर भी सोशल मीडिया को संचालित करने वाली कंपनी जानकारी नहीं उपलब्ध कराती हैं.

हालांकि, जब पुलिस की ओर से कंपनियों को किसी आपत्तिजनक पोस्ट या घटना के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जाती है तो फिर वह उसको अपने प्लेटफार्म से हटाकर पुलिस की मदद जरूर करती हैं, लेकिन सोशल मीडिया संचालित करने वाली कंपनियां अकाउंट फोल्डर के बारे में कोई अन्य जानकारी उपलब्ध नहीं कराते हैं.

सीओ अभय मिश्रा ने दी जानकारी
सोशल मीडिया पर निगरानी रखने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. हमने वॉलिंटियर्स तैयार किए हैं जो कि विभिन्न फेसबुक पेज, व्हाट्सएप ग्रुप में ऐड हैं. जब इन ग्रुप को सोशल मीडिया पर किसी तरह की आपत्तिजनक पोस्ट किए जाते हैं तो फिर वह तुरंत हमें सूचना करते हैं और हमारी टीम ऐसे लोगों को खोजकर उनके ऊपर कार्रवाई करती है. लोगों को जागरूक करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, जिसके लिए भारी संख्या में पंपलेट छपवाए गए हैं जो लोगों में वितरित किए जाएंगे.

इसे भी पढ़ें-सहारनपुर: सोनिया गांधी के नाम जमीयत का लेटर वायरल, उलेमाओं ने बताया फर्जी

Intro:नोट- सीओ अभय मिश्रा की बाइट में आवाज काफी धीमी आई है अगर संभव हो तो उनकी आवाज को थोड़ा सा बड़ा लिया जाए

एंकर

लखनऊ। राजधानी लखनऊ में कमलेश तिवारी की हत्या और फिर उसके बाद नवंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या विवाद पर फैसले को लेकर सोशल मीडिया निगरानी की आवश्यकता महसूस की गई। जिसको लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस ने खूब दावे किए लेकिन तमाम दावों के बावजूद भी सोशल मीडिया पर निगरानी करना जिम्मेदार अधिकारियों के लिए आसान नहीं है। उत्तर प्रदेश पुलिस के पास सोशल मीडिया पर निगरानी के लिए कोई तंत्र मौजूद नहीं है जिसके चलते सोशल मीडिया निगरानी करना काफी कठिन बना हुआ है।




Body:वियो

लखनऊ पुलिस में तैनात कई अधिकारियों से जब सोशल मीडिया पर बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर निगरानी के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन कोई उपकरण( टूल्स) उपलब्ध न होने के चलते सोशल मीडिया निगरानी को व्यापक स्तर पर करना संभव प्रतीत नहीं हो रहा है। हालाकी, पुलिस अपने स्तर से प्रयास कर रही है और साइबर सेल की मदद से सोशल मीडिया पर निगरानी रखी जा रही है। लेकिन यह निगरानी काफी सीमित है। जबकि सोशल मीडिया इतना व्यापक हो गया है कि हर स्तर पर निगरानी रख पाना पुलिस के लिए संभव नहीं हो पा रहा है।


सोशल मीडिया पर निगरानी कर पाना उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए इसलिए भी कठिन बना हुआ है क्योंकि ज्यादातर सोशल वीडियो प्लेटफार्म विदेश से संचालित होते हैं, और इन पर अमेरिका का निजता का हनन कानून लागू होता है। जिसके चलते सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश पुलिस का कोई हस्तक्षेप नहीं रहता है। ऐसे में तमाम बार जानकारी मांगने पर भी सोशल मीडिया को संचालित करने वाली कंपनी जानकारी नहीं उपलब्ध कराती हैं। हालांकि, जब पुलिस की ओर से किसी आपत्तिजनक पोस्ट या घटना के बारे में जानकारी कंपनियों को उपलब्ध कराई जाती है तो फिर वह उसको अपने प्लेटफार्म से हटाकर पुलिस की मदद जरूर करती हैं। लेकिन सोशल मीडिया संचालित करने वाली कंपनियां अकाउंट फोल्डर के बारे में कोई अन्य जानकारी उपलब्ध नहीं कराते हैं।

बाइट

सीओ हजरतगंज अभय मिश्रा ने जानकारी देते हुए बताया कि सोशल मीडिया पर निगरानी रखने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। हमने वॉलिंटियर्स तैयार किए हैं जो कि विभिन्न फेसबुक पेज, व्हाट्सएप ग्रुप में ऐड हैं। जब इन ग्रुप को सोशल मीडिया पर किसी तरह की आपत्तिजनक पोस्ट किए जाते हैं तो फिर वह तुरंत हमें सूचना करते हैं और हमारी टीम ऐसे लोगों को खोजकर उनके ऊपर कार्यवाही करती है। लोगों को जागरूक करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं जिसके लिए भारी संख्या में पंपलेट छपवाए गए हैं जो लोगों में वितरित किए जाएंगे।





Conclusion:बाइक- सीईओ अभय मिश्रा

(संवाददाता प्रशांत मिश्रा 90 2639 25 26)
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