लखनऊ : प्रयागराज में राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की हत्या के बाद उत्तरप्रदेश की राजनीति में अपराध चर्चा का विषय बन गया. राजनीति भी काफी गरम हुई. विधानसभा में सीएम योगी ने 'माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा' वाला बयान दिया. योगी आदित्यनाथ ने जब पूर्व सांसद अतीक अहमद का नाम समाजवादी पार्टी से जोड़ा तो अखिलेश यादव ने उसका नाता बीएसपी से जोड़ने की कोशिश की. फिर बसपा सुप्रीमो मायावती ने अतीक अहमद के बारे में बयान भी दिया. बयानबाजी के जरिये सपा और बसपा राजनीति के अपराधीकरण से अपने दामन को बचाने की कोशिश की.
प्रयागराज में उमेश पाल हत्याकांड के बाद पूर्व सांसद अतीक अहमद और उसका परिवार सुर्खियों में है. हालांकि सीएम योगी के आरोपों के बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी ने डिफेंसिव स्टैंड लिया है. जब योगी आदित्यनाथ ने अतीक अहमद का रिश्ता समाजवादी पार्टी से जोड़ा तो पार्टी के नेताओं ने अतीक अहमद से पल्ला झाड़ लिया. अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन अभी बसपा की सदस्य है और प्रयागराज से मेयर पद की घोषित प्रत्याशी है. कुछ माह पहले ही अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन और बेटे को बहुजन समाज पार्टी में शामिल किया गया है. इस कारण बहुजन समाजवादी की ओर से अंगुलियां उठने लगीं.
जब अतीक के परिवार को मायावती बसपा में शामिल कर रही थीं तो सवाल खड़े हुए थे कि आखिर इस परिवार को बसपा में जगह कैसे मिल सकती है? इस पर मायावती ने साफ तौर पर कहा था कि अपराधी का परिवार अपराधी नहीं होता. अभी भी अतीक अहमद के परिवार पर एफआईआर होने के बावजूद मायावती ने साफ किया है कि जांच में जब तक परिवार दोषी नहीं सिद्ध होता तब तक शाइस्ता परवीन को पार्टी से नहीं निकाला जाएगा. बसपा के विधायक सदन में कह रहे हैं कि हमारी पार्टी अपराधियों के साथ कभी खड़ी नहीं होती. इस मामले में भी बसपा सुप्रीमो जल्द कार्रवाई करेंगी.
यूपी की राजनीति में हमेशा से ही अपराधियों का बोलबाला रहा है. राजनीतिक दलों ने सत्ता हासिल करने के लिए अपराधियों को संरक्षण दिया. इस कारण अपराधियों के हौसले बुलंद हुए. अपराधियों का सहारा लेने में कोई भी पार्टी पीछे नहीं है. अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, धनंजय सिंह और ब्रजेश सिंह जैसे अपराधियों ने सपा, बसपा, जेडीयू, अपना दल, भाजपा और भाकपा जैसे दलों का सहारा लेकर राजनीति की. बसपा में भी ऐसे दागियों की फेहरिस्त लंबी है. इनमें से एक नाम है धनंजय सिंह.
बसपा में जाकर खूब फले-फूले धनंजय सिंह : धनंजय सिंह साल 2002 में रारी (अब मल्हनी) विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव जीते थे. वह दोबारा इसी सीट पर जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर चुनाव जीते. इसके बाद धनंजय सिंह बहुजन समाज पार्टी में शामिल हुए. साल 2009 में वह बसपा के टिकट पर जीत दर्ज कर जौनपुर से सांसद बने. बसपा में रहते हुए धनंजय सिंह ने बसपा सुप्रीमो मायावती को चैलेंज दे बैठे. इसके बाद मायावती ने 2011 में पार्टी से निष्कासित कर दिया था. बसपा से अलग होने के बावजूद धनंजय सिंह 2014 में जौनपुर से निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़े. हालांकि उन्हें जीत नहीं मिली. साल 2017 में निषाद पार्टी के बैनर से धनंजय सिंह विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन जीत हासिल नहीं हुई. कुल मिलाकर बहुजन समाज पार्टी में धनंजय सिंह को संरक्षण दिया था.
माया राज में मिली थी मुख्तार को जेड + सिक्युरिटी : माफिया मुख्तार अंसारी का उत्तर प्रदेश में अपराध की दुनिया में नाम चलता था. मुख्तार अंसारी ने भाई अफजाल अंसारी के सहारे राजनीतिक में पदार्पण किया. अफजाल ने साल 1985 में अपना पहला चुनाव लड़ा. 1996 में बहुजन समाज पार्टी के सिम्बल पर मुख्तार अंसारी ने चुनाव लड़ा और विधायक बने. इससे पहले मुख्तार अंसारी ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से राजनीति में कदम रखा. गाजीपुर सदर विधानसभा सीट पर मुख़्तार अंसारी ने जेल में रहते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के निशान पर चुनाव लड़ा था. हालांकि जीत कोसों दूर रही. चुनावों में हार मिलने के बाद मुख्तार अंसारी ने बहुजन समाज पार्टी में शामिल होने का फैसला लिया. 1995 में बीएसपी ने मुख्तार को गाजीपुर का जिलाध्यक्ष बनाया था. तत्कालीन बीएसपी सरकार ने मुख्तार को ज़ेड प्लस सिक्योरिटी भी उपलब्ध कराई थी. माफिया अतीक अहमद तो बसपा में तो नहीं रहा, लेकिन वर्तमान में अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन और बेटा हाथी पर सवार है. बसपा सुप्रीमो मायावती शाइस्ता को प्रयागराज से मेयर प्रत्याशी तक घोषित कर चुकी हैं. बसपा को लगता है कि उत्तर प्रदेश में उसकी स्थिति ठीक नहीं है, मुसलमान भी बसपा से किनारा कर रहे हैं. लिहाजा, प्रयागराज में अतीक के परिवार को राजनीति में फिर से वापसी कराने पर बसपा का फायदा हो सकता है. अतीक के परिवार के जरिये मुसलमानों को बसपा के साथ जोड़ा जा सकता है.
सपा से सांसद बना था अतीक अहमद : अतीक अहमद ने साल 1989 से राजनीति की शुरूआत की थी. इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से पहली बार निर्दल उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरा और विधायक बन गया. अतीक ने इसी सीट से 1991 और 1993 का चुनाव भी निर्दलीय जीता. इसके बाद अतीक समाजवादी पार्टी में शामिल हुए और साल 1996 में चौथी बार विधायक बनने में कामयाब हुआ. साल 1999 में अतीक अहमद सपा का साथ छोड़कर सोनलाल पटेल की पार्टी अपना दल में शामिल हो गया. प्रतापगढ़ से चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. 2002 में अपना दल ने अतीक को उनकी इलाहाबाद पश्चिमी से उतारा तो फिर से अतीक विधायक बना. साल 2003 में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी तो अतीक अहमद एक बार फिर सपा में शामिल हो गया. साल 2004 के लोकसभा चुनाव में जीत के साथ ही वह पहली बार संसद की दहलीज तक पहुंचा. साल 2014 में श्रावस्ती से चुनाव लड़ा, लेकिन हार हुई. अब अतीक जेल में है और राजनीतिक करियर अभी दांव पर लगा हुआ है. ऐसे में बहुजन समाज पार्टी ने अतीक परिवार की राजनीति को जिंदा रखने के लिए शाइस्ता परवीन को मेयर का प्रत्याशी बनाया है.
राजनीतिक विश्लेषक दिलीप अग्निहोत्री का कहना है कि करीब डेढ़ दशक तक उत्तर प्रदेश की राजनीति मे सपा और बसपा का वर्चस्व रहा. इस दौरान सरकारें बदलती रहीं, लेकिन व्यवस्था यथावत रही. माफिया का महिमा मंडन होता रहा. कानून व्यवस्था को चुनौती मिलती रही. छह वर्ष पहले सपा बसपा से बेहाल मतदाताओं ने भाजपा को जनादेश दिया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकार के साथ व्यवस्था में बदलाव का संकल्प लिया. कानून व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता रही. बुलडोजर माफियाओं को मिट्टी में मिलाने का प्रतीक बन गया. व्यवस्था में व्यापक सुधार हुआ. पिछले विधानसभा चुनाव मे मतदाताओं ने दोबारा जनादेश दिया. मतलब साफ था. प्रदेश के लोग के लोग दोबारा सपा बसपा दौर की वापसी नहीं चाहते. पढ़ें : Umesh Pal Murder Case: एक और आरोपी गिरफ्तार, अखिलेश यादव के साथ वायरल हो रही फोटो