लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने शुक्रवार को 30 साल पुराने दुराचार के एक मुकदमे में सत्र अदालत द्वारा दोष सिद्ध करार दिए जाने के फैसले को पलटकर अभियुक्त को बरी कर दिया है. अभियुक्त को सत्र अदालत ने 10 साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी. यह निर्णय न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की एकल पीठ ने दयानंद पांडेय की अपील पर पारित किया है.
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत के निर्णयों को जिक्र किया. जिसमें कहा गया है कि दुराचार के मामलों में पीड़िता द्वारा बताई गई कहानी संदेह के घेरे में है. इसके अलावा उसके बयान के सिर्फ एक हिस्से के आधार पर अभियुक्त को दोषी नहीं करार दिया जा सकता है. भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत दुराचार के मामलों में पीड़िता के बयान को एक घायल गवाह के बयान जैसा माना जाएगा. लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि उसके बयान को बिना अपवाद के सत्य मान लिया जाए. न्यायालय ने कहा कि दुराचार के मामले में यदि पीड़िता के बयानों में विरोधाभास है तो मात्र उसकी गवाही पर अभियुक्त को दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता है.
बता दें कि वर्ष 1992 में फैजाबाद जनपद के तारून थाने में पीड़िता के भाई ने अभियुक्त के खिलाफ एफआईआर लिखाई थी. जिसमें कहा गया था कि अभियुक्त व एक अन्य व्यक्ति उसकी 14 वर्षीय बहन को भगा ले गया. 5 जनवरी 1993 को पुलिस ने पीड़िता को बरामद किया. इसके बाद अभियुक्त के विरुद्ध दिए गए बयान के आधार पर अभियुक्त के खिलाफ अपहरण व दुराचार के आरोप में चार्जशीट दाखिल की गई. अभियुक्त की ओर से ट्रायल कोर्ट के समक्ष बाराबंकी की अदालत में पीड़िता द्वारा दाखिल परिवाद पत्र अपने बचाव में प्रस्तुत किया गया. जिसमें स्वयं पीड़िता ने अपने भाई व अन्य परिवारीजनों से जान का खतरा बताया था. साथ ही कहा था कि वह 19 वर्ष की है. वह अपनी मर्जी से दयानंद पांडेय के साथ शादी कर चुकी है.
यह भी पढ़ें- बच्चे से कुकर्म करने वाले आरोपियों को पोक्सो एक्ट कोर्ट ने किया तलब
यह भी पढ़ें- चोरी के मोबाइल को नेपाल में बेचने वाले गिरोह का भंडाफोड़, आरोपी गिरफ्तार