लखनऊ: आपने किसी से कोई जरूरी दस्तावेज कुरियर करवाया हो या फिर ऑनलाइन शॉपिंग से कुछ बुक किया हो और यदि वह आपको समय से पहले रिसीव करना हो तो आप क्या करते हैं? इंटरनेट पर गूगल खोलते हैं, कुरियर कंपनी का नंबर ढूंढकर उसे कॉल करते हैं और समय से पहले ही रिसीव करने के लिए रिक्वेस्ट करते हैं. बस यही एक कदम आपकी पूंजी के लिए खतरा बन सकता है. बीते दिनों ऐसे ही कई लोग साइबर ठगी का शिकार हुए, जो समय से पहले अपना कुरियर पाना चाहते थे. आइए जानते हैं कि आखिर साइबर अपराधी किस तरह ठगी कर रहे हैं.
केस 1
राजधानी में जीएसटी व सीमा शुल्क सहायक आयुक्त ने ऑनलाइन ऑर्डर किया था. इसकी डिलिवरी 18 सितंबर 2023 को होनी थी. हालांकि, उन्हें इस प्रोडक्ट की जरूरत एक दिन पहले थी. लिहाजा, उन्होंने कुरियर कंपनी की लखनऊ ब्रांच का गूगल में नंबर सर्च किया और फिर कॉल किया. कॉल करने पर उन्हें भरोसा दिलाया गया कि आपका कुरियर 17 सितंबर को ही डिलीवर कर दिया जाएगा. हालांकि, इसके लिए आपको 5 रुपये का भुगतान करना होगा. कॉल उठाने वाले ने पीड़ित सहायक आयुक्त को एनी डेस्क नाम की एप्लिकेशन डाउनलोड करवाई और फिर कुछ स्टेप फॉलो करवा दिए. इसके बाद 47,542 रुपये उनके अकाउंट से कट गए. उन्हें एहसास हो गया कि उनके साथ साइबर ठगी हुई है. उन्होंने साइबर हेल्पलाइन 1930 में कॉल करने के साथ ही गोमती नगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई.
केस 2
आलमबाग के रोहन अग्रवाल का 19 सितंबर को जॉब इंटरव्यू था. अचानक उन्हें याद आया कि उनके सभी स्टडी सर्टिफिकेट उनके बैंगलोर में रहने वाले रिश्तेदार के यहां छूट गए थे. रोहन ने उन्हें वहां से कुरियर करवा लिया. इसके साथ ही लखनऊ ब्रांच की कुरियर कंपनी को कॉल कर जैसे ही प्रोडक्ट आ जाए, तत्काल उन्हें डिलीवर करने के लिए रिक्वेस्ट की. कॉल उठाने वाले ने कहा कि प्रोसेस लंबा होता है, लिहाजा डिलिवरी समय से ही होगी. रोहन ने और रिक्वेस्ट की तो उनसे कहा गया कि आपको 5 रुपये ऑनलाइन पे करना होगा. इसके लिए वो एनी डेस्क एप्लीकेशन डाउनलोड कर लें. रोहन ने ऐसा ही किया और बताए गए प्रोसेस को फॉलो किया. कुछ देर में रोहन के अकाउंट से 35 हजार रुपये कट गए. रोहन ने तत्काल हजरतगंज में मौजूद साइबर सेल में शिकायत की.
फेक वेबसाइट को ओरिजनल से ऊपर लाते हैं और फिर करते हैं ठगी
साइबर सेल प्रभारी सतीश साहू बताते हैं कि साइबर क्रिमिनल्स ओरिजनल जैसी दिखने वाली हू-ब-हू फेक वेबसाइट्स बनाकर उन्हें इंटरनेट मीडिया में प्रचारित करते हैं. फेक वेबसाइट्स का नाम, कंपनी का लोगो सबकुछ ओरिजनल वेबसाइट्स में दिखने जैसा ही होता है. ऐसे में रोहन या फिर जीएसटी सहायक आयुक्त ने कुरियर कंपनी का नंबर निकालने के लिए गूगल में सर्च किया तो वह फेक वेबसाइट उन्हें दिखी और उससे साइबर ठगों के नंबर पर कॉल कर दी. सतीश साहू ने बताया कि जालसाज लोगों को ठगने के लिए अपनी फेक वेबसाइट का सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन (SEO) कराकर इंटरनेट के सर्च इंजन पर सबसे ऊपर ले आते हैं. ऐसे में जब यूजर कंपनी को सर्च करते हैं तो ओरिजनल से ऊपर फेक वेबसाइट आती है तो लोग उसे ही असली समझ लेते हैं.
इस तरह ठगी का शिकार होने से बचें
साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे कहते हैं कि साइबर अपराधी हू-ब-हू ओरिजनल जैसी दिखने वाली फेक वेबसाइट बनाते है। हालांकि आम आदमी भी ओरिजेनल और फेक वेबसाइट में अंतर पता कर सकता है. बस यदि इन फेक वेबसाइट से होने वाली जालसाजी से बचना है तो सबसे पहले साइबर फ्रॉड को लेकर जागरूक होना होगा. दरअसल, ओरिजनेल और फेक वेबसाइट का अंतर पता करने के लिए वेबसाइट की स्पेलिंग और बाकी डिटेल्स चेक की जा सकती है. इसके अलावा अधिकतर आप उसी वेबसाइट द्वारा ऑनलाइन पेमेंट करें, जिसके वेबसाइट एड्रेस या यूआरएल में https लगा हुआ हो. इतना ही नहीं एनी डेस्क, टीम व्यूवर, क्विक सपोर्ट जैसे रिमोट एप किसी भी अज्ञात व्यक्ति के कहने पर डाउनलोड न करें. ऐसा करने से साइबर ठग मोबाइल का एक्सिस ले लेते हैं.
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