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लखनऊ: प्राइवेट हॉस्टल संचालकों के लिए मुसीबत बना कोरोना वायरस

राजधानी लखनऊ में कोरोना वायरस प्राइवेट हॉस्टल संचालकों के लिए मुसीबत बनाता जा रहा है. हॉस्टल संचालकों का कहना है कि 3 महीने बीत चुके हैं इस दौरान घर चलाना भी मुश्किल होता जा रहा है.

प्राइवेट हॉस्टल
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Published : Jul 16, 2020, 10:32 PM IST

लखनऊ: राजधानी में प्राइवेट हॉस्टल संचालकों के लिए दिन पर दिन मुसीबत बढ़ती जा रही है, जिस दिन से भारत में कोरोना वायरस की शुरुआत हुई है, उसके बाद से सरकार ने देश में लॉकडाउन का आदेश दिया था. 3 महीने बीत चुके हैं. इस दौरान लखनऊ के जितने भी प्राइवेट हॉस्टल हैं, उन सबको घर के खर्चे चलाना मुश्किल हो गया है.

प्राइवेट हॉस्टल संचालकों के लिए मुसीबत बना कोरोना.

बच्चों ने खाली किए हॉस्टल
हॉस्टल संचालकों का कहना है कि राजधानी लखनऊ में जितने भी हॉस्टल बने हुए हैं, उनमें जितने भी लोग हैं वह वही लोग हैं जो पढ़ने-लिखने वाले हैं और दूसरे शहरों से आकर अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी करते हैं. उन्होंने बताया कि हम लोग भी अपने हॉस्टल के रूम को रेंट पर देते थे, जिससे कि वह अपना घर का खर्च चलाते थे और बच्चों को पालते थे. उन्होंने बताया कि उनकी कमाई का साधन सिर्फ हॉस्टल के रूम को रेंट पर देकर ही होता था, लेकिन जब से कोरोना वायरस पूरे देश में फैलता जा रहा है, उसके बाद से सभी स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए हैं. इस दौरान पढ़ाई-लिखाई करने वाले जितने भी बच्चे हैं वह अपने घर वापस लौट गए हैं और सभी ने हॉस्टल के रूम खाली कर दिए हैं.

मध्यमवर्गीय परिवारवालों के लिए मुसीबत बना लॉकडाउन
बच्चों के पेरेंट्स का कहना है कि कोरोना वायरस कब तक चलेगा इसका कोई समय नहीं है और हम अपने बच्चों को अब वापस शहर नहीं भेजेंगे, जब तक यह कोरोना वायरस पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता. उन्होंने बताया कि सरकार के लॉकडाउन का फैसला जनता के हित के लिए है पर मध्यमवर्गीय परिवारवालों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार से उम्मीद है कि इस कोरोना वायरस से निजात मिले और हम लोगों की जिंदगी फिर से पटरी पर वापस लौट आए. अगर इसी तरह से सब कुछ चलता रहा तो मध्यमवर्गीय परिवारवालों के लिए भी खाने-कमाने और घर परिवार को चलाना मुश्किल हो जाएगा.

लखनऊ: राजधानी में प्राइवेट हॉस्टल संचालकों के लिए दिन पर दिन मुसीबत बढ़ती जा रही है, जिस दिन से भारत में कोरोना वायरस की शुरुआत हुई है, उसके बाद से सरकार ने देश में लॉकडाउन का आदेश दिया था. 3 महीने बीत चुके हैं. इस दौरान लखनऊ के जितने भी प्राइवेट हॉस्टल हैं, उन सबको घर के खर्चे चलाना मुश्किल हो गया है.

प्राइवेट हॉस्टल संचालकों के लिए मुसीबत बना कोरोना.

बच्चों ने खाली किए हॉस्टल
हॉस्टल संचालकों का कहना है कि राजधानी लखनऊ में जितने भी हॉस्टल बने हुए हैं, उनमें जितने भी लोग हैं वह वही लोग हैं जो पढ़ने-लिखने वाले हैं और दूसरे शहरों से आकर अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी करते हैं. उन्होंने बताया कि हम लोग भी अपने हॉस्टल के रूम को रेंट पर देते थे, जिससे कि वह अपना घर का खर्च चलाते थे और बच्चों को पालते थे. उन्होंने बताया कि उनकी कमाई का साधन सिर्फ हॉस्टल के रूम को रेंट पर देकर ही होता था, लेकिन जब से कोरोना वायरस पूरे देश में फैलता जा रहा है, उसके बाद से सभी स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए हैं. इस दौरान पढ़ाई-लिखाई करने वाले जितने भी बच्चे हैं वह अपने घर वापस लौट गए हैं और सभी ने हॉस्टल के रूम खाली कर दिए हैं.

मध्यमवर्गीय परिवारवालों के लिए मुसीबत बना लॉकडाउन
बच्चों के पेरेंट्स का कहना है कि कोरोना वायरस कब तक चलेगा इसका कोई समय नहीं है और हम अपने बच्चों को अब वापस शहर नहीं भेजेंगे, जब तक यह कोरोना वायरस पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता. उन्होंने बताया कि सरकार के लॉकडाउन का फैसला जनता के हित के लिए है पर मध्यमवर्गीय परिवारवालों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार से उम्मीद है कि इस कोरोना वायरस से निजात मिले और हम लोगों की जिंदगी फिर से पटरी पर वापस लौट आए. अगर इसी तरह से सब कुछ चलता रहा तो मध्यमवर्गीय परिवारवालों के लिए भी खाने-कमाने और घर परिवार को चलाना मुश्किल हो जाएगा.

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