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कूल्ड रेडियोफ्रिक्वेंसी एब्लेशन थेरेपी से दर्द में मिलेगी 'डबल' राहत - कूल्ड रेडियोफ्रिक्वेंसी एब्लेशन थेरेपी

राजधानी लखनऊ स्थित लोहिया अयुर्विज्ञान संस्थान में मरीजों के कमर दर्द और घुटने के दर्द का कूल्ड रेडियोफ्रिक्वेंसी एब्लेशन थेरेपी से इलाज होगा. यह प्रदेश के सरकारी अस्पताल में दूसरी मशीन होगी.

लोहिया अयुर्विज्ञान संस्थान
लोहिया अयुर्विज्ञान संस्थान
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Published : Oct 28, 2021, 2:41 PM IST

लखनऊ: मरीजों में कमर दर्द, घुटने के दर्द की समस्या बढ़ रही है. इसका लोहिया अयुर्विज्ञान संस्थान में आधुनिक विधि से इलाज होगा. अब कूल्ड रेडियोफ्रिक्वेंसी एब्लेशन थेरेपी के जरिए मरीजों को दर्द में डबल राहत मिलेगी. यानी कि पहले जहां इलाज से दो साल तक राहत मिलती थी, अब चार से पांच साल तक मरीजों को दर्द से छुटकारा मिल सकेगा. यह प्रदेश के सरकारी अस्पताल में दूसरी मशीन होगी.

लोहिया अयुर्विज्ञान संस्थान के एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष डॉ. दीपक मालवीय के मुताबिक, कूल्ड रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन मशीन जल्द ही लगेगी. इसके लिए छह अक्टूबर को टेंडर जारी कर दिया गया है. यह मशीन विभाग के पेन मेडिसिन यूनिट में लगेगी. वहीं, यूनिट के इंचार्ज डॉ अनुराग अग्रवाल के मुताबिक अभी रेडियोफ्रिक्वेंसी मशीन से मरीजों को दर्द से राहत दिलाई जाती है. इस मशीन से उपचार में मरीजों को दो साल तक दर्द से राहत मिलती है. वहीं, कूल्ड रेडियोफ्रिक्वेंसी एब्लेशन मशीन के जरिए चार से पांच साल तक मरीज को दर्द से राहत मिलने की उम्मीद है.

जानकारी देते डॉ. अनुराग अग्रवाल.

डॉ. अनुराग अग्रवाल के मुताबिक, कूल्ड रेडियोफ्रिक्वेंसी एब्लेशन मशीन राज्य के सरकारी अस्पतालों में अभी एसजीपीजीआई में है. लोहिया संस्थान में दूसरी मशीन होगी. इसके अलावा एम्स में भी मशीन लगी हैं. इस मशीन की किट महंगी होती है. ऐसे में बीमारी के लिहाज से 25 से 80 हजार में इलाज मुमकिन होगा. वहीं, प्राइवेट में इलाज के लिए 3 से 4 लाख रुपये खर्च होता है. इस विधि से कमर दर्द, घुटने, हिप, फ्रोजन शोल्डर, सियाटिका, स्लिप डिस्क, गठिया, आस्टियोपोरोसिस और उसके फ्रैक्चर, कैंसर दर्द, सर्वाइकल पेन, ट्राइजेमाइनल न्यूरेल्जियम आदि का इलाज मुमकिन है.

यह भी पढ़ें: कर्मचारियों को सीएम योगी का तोहफा, 1 नवंबर से पहले बोनस और बढ़े हुए महंगाई भत्ते के भुगतान का निर्देश

डॉ. अनुराग अग्रवाल के मुताबिक, मरीज का इलाज मिनमली इंवेजिव पेन एंड स्पाइन फिजीशियन (मिप्सी) तकनीक से किया जाता है. मरीज में की-होल (छेद) करते हैं. इसी में इंडोस्कोप पोर्ट डालते हैं. इसी के जरिए कैमरा, लाइट सोर्स व अन्य उपकरण इंटर करते हैं. कुछ ही समय में मरीज का उपचार हो जाता है. यह उसी दिन डिस्चार्ज भी कर दिए जाते हैं. इस मशीन से कैनुला के अंदर वाटर चैनल चलता है. यह वाटर रेडियोफ्रिक्वेंसी कैनुला में सर्कुकेट होता रहता है. इससे रेडियोफ्रिक्वेंसी का ट्रीटमेंट एरिया बड़ा हो जाता है. इसके इलाज का प्रभाव बढ़ जाता है.

लखनऊ: मरीजों में कमर दर्द, घुटने के दर्द की समस्या बढ़ रही है. इसका लोहिया अयुर्विज्ञान संस्थान में आधुनिक विधि से इलाज होगा. अब कूल्ड रेडियोफ्रिक्वेंसी एब्लेशन थेरेपी के जरिए मरीजों को दर्द में डबल राहत मिलेगी. यानी कि पहले जहां इलाज से दो साल तक राहत मिलती थी, अब चार से पांच साल तक मरीजों को दर्द से छुटकारा मिल सकेगा. यह प्रदेश के सरकारी अस्पताल में दूसरी मशीन होगी.

लोहिया अयुर्विज्ञान संस्थान के एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष डॉ. दीपक मालवीय के मुताबिक, कूल्ड रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन मशीन जल्द ही लगेगी. इसके लिए छह अक्टूबर को टेंडर जारी कर दिया गया है. यह मशीन विभाग के पेन मेडिसिन यूनिट में लगेगी. वहीं, यूनिट के इंचार्ज डॉ अनुराग अग्रवाल के मुताबिक अभी रेडियोफ्रिक्वेंसी मशीन से मरीजों को दर्द से राहत दिलाई जाती है. इस मशीन से उपचार में मरीजों को दो साल तक दर्द से राहत मिलती है. वहीं, कूल्ड रेडियोफ्रिक्वेंसी एब्लेशन मशीन के जरिए चार से पांच साल तक मरीज को दर्द से राहत मिलने की उम्मीद है.

जानकारी देते डॉ. अनुराग अग्रवाल.

डॉ. अनुराग अग्रवाल के मुताबिक, कूल्ड रेडियोफ्रिक्वेंसी एब्लेशन मशीन राज्य के सरकारी अस्पतालों में अभी एसजीपीजीआई में है. लोहिया संस्थान में दूसरी मशीन होगी. इसके अलावा एम्स में भी मशीन लगी हैं. इस मशीन की किट महंगी होती है. ऐसे में बीमारी के लिहाज से 25 से 80 हजार में इलाज मुमकिन होगा. वहीं, प्राइवेट में इलाज के लिए 3 से 4 लाख रुपये खर्च होता है. इस विधि से कमर दर्द, घुटने, हिप, फ्रोजन शोल्डर, सियाटिका, स्लिप डिस्क, गठिया, आस्टियोपोरोसिस और उसके फ्रैक्चर, कैंसर दर्द, सर्वाइकल पेन, ट्राइजेमाइनल न्यूरेल्जियम आदि का इलाज मुमकिन है.

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डॉ. अनुराग अग्रवाल के मुताबिक, मरीज का इलाज मिनमली इंवेजिव पेन एंड स्पाइन फिजीशियन (मिप्सी) तकनीक से किया जाता है. मरीज में की-होल (छेद) करते हैं. इसी में इंडोस्कोप पोर्ट डालते हैं. इसी के जरिए कैमरा, लाइट सोर्स व अन्य उपकरण इंटर करते हैं. कुछ ही समय में मरीज का उपचार हो जाता है. यह उसी दिन डिस्चार्ज भी कर दिए जाते हैं. इस मशीन से कैनुला के अंदर वाटर चैनल चलता है. यह वाटर रेडियोफ्रिक्वेंसी कैनुला में सर्कुकेट होता रहता है. इससे रेडियोफ्रिक्वेंसी का ट्रीटमेंट एरिया बड़ा हो जाता है. इसके इलाज का प्रभाव बढ़ जाता है.

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