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यूपी में शिक्षक भर्ती को लेकर विवाद शुरू, तदर्थ शिक्षकों को शामिल न करने पर भड़के अभ्यर्थी - शिक्षक भर्ती विवाद

यूपी के सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में टीजीटी और पीजीटी भर्ती प्रक्रिया में विवाद शुरू हो गया है. तदर्थ शिक्षकों को भी इस भर्ती में शामिल किए जाने की मांग की जा रही है. इसके लिए सोशल मीडिया पर अभियान शुरू हो गया है.

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शिक्षक भर्ती विवाद
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Published : Jul 11, 2022, 1:42 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में प्रशिक्षित स्नातक (टीजीटी) और प्रवक्ता (पीजीटी) भर्ती के लिए आवेदन लिए जा रहे हैं. आवेदन के दौरान ही अब इस भर्ती को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. इस भर्ती प्रक्रिया के जरिए करीब 4163 पदों पर नियुक्तियां होनी है. अभ्यर्थियों की मांग है कि सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के तदर्थ शिक्षकों के पद भी इस भर्ती में शामिल किए जाएं. इसको लेकर बाकायदा सोशल मीडिया पर अभियान चलाया जा रहा है.

गौरतलब है कि एडेड विद्यालयों में प्रशिक्षित स्नातक (टीजीटी) के 3539 और प्रवक्ता (पीजीटी) के 624, कुल 4163 पदों पर आवेदन लिए जा रहे हैं. 16 जुलाई तक ऑनलाइन आवेदन किए जा सकते हैं. पिछली भर्ती में चयन बोर्ड की तरफ से तदर्थ शिक्षकों से आवेदन मांग गए थे. इसमें, तदर्थ शिक्षकों को प्रति वर्ष 1.50 अंकों और 30 वर्ष की सेवा पर अधिकतम 30 अंकों का भारांक दिए जाने का प्रावधान था. इसके बावजूद सिर्फ 12 तदर्थ शिक्षक ही चयनित हो सके थे.

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अभ्यर्थी का ट्वीट

अभ्यर्थियों का दावा है कि तदर्थ शिक्षकों के करीब 22 हजार पद हैं. वो इन्हें भी 4163 टीजीटी-पीजीटी भर्ती प्रक्रिया में शामिल करने की मांग कर रहे हैं. इससे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में शिक्षकों के नियमित पदों पर भर्ती हो सकेगी. युवा मंच के अध्यक्ष अनिल सिंह का आरोप है कि प्रबंधकों और जिला विद्यालय निरीक्षकों की मिलीभगत के कारण तदर्थ शिक्षकों के पदों पर नियमित भर्ती नहीं हो पा रही है. इसको लेकर सोशल मीडिया पर अभियान चलाया जा रहा है.

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अभ्यर्थियों के ट्वीट्स

यह भी पढ़ें- प्रतापगढ़ में फर्जी टीईटी प्रमाण पत्र से 9 शिक्षिकओं ने पाई नौकरी, बीएसए ने किया बर्खास्त

बता दें कि सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में भी आयोग की तरफ से नियमित शिक्षकों की नियुक्ति का प्रावधान है. लेकिन जिस विषय में शिक्षक की तैनाती नहीं हो पाती थी, उस विषय में प्रबंधन की तरफ से तदर्थ शिक्षक की नियुक्ति कर ली जाती थी. इन्हें नियमित शिक्षकों की भांति वेतन और भत्ते भी मिलते हैं. इसमें नियम है कि आयोग से शिक्षक की तैनाती हो जाने के बाद तदर्थ शिक्षक की नौकरी स्वत: समाप्त हो जाएगी.

यह व्यवस्था साल 2000 में शासन ने खत्म कर दी थी. साथ ही नियुक्त हुए शिक्षकों को नियमित कर दिया था. लेकिन इसके बाद भी माध्यमिक विद्यालयों में तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति का सिलसिला चलता रहा. ऐसे में सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में भारी संख्या में तदर्थ शिक्षक तैनात हैं और स्थाई नियुक्ति की मांग कर रहे हैं.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में प्रशिक्षित स्नातक (टीजीटी) और प्रवक्ता (पीजीटी) भर्ती के लिए आवेदन लिए जा रहे हैं. आवेदन के दौरान ही अब इस भर्ती को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. इस भर्ती प्रक्रिया के जरिए करीब 4163 पदों पर नियुक्तियां होनी है. अभ्यर्थियों की मांग है कि सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के तदर्थ शिक्षकों के पद भी इस भर्ती में शामिल किए जाएं. इसको लेकर बाकायदा सोशल मीडिया पर अभियान चलाया जा रहा है.

गौरतलब है कि एडेड विद्यालयों में प्रशिक्षित स्नातक (टीजीटी) के 3539 और प्रवक्ता (पीजीटी) के 624, कुल 4163 पदों पर आवेदन लिए जा रहे हैं. 16 जुलाई तक ऑनलाइन आवेदन किए जा सकते हैं. पिछली भर्ती में चयन बोर्ड की तरफ से तदर्थ शिक्षकों से आवेदन मांग गए थे. इसमें, तदर्थ शिक्षकों को प्रति वर्ष 1.50 अंकों और 30 वर्ष की सेवा पर अधिकतम 30 अंकों का भारांक दिए जाने का प्रावधान था. इसके बावजूद सिर्फ 12 तदर्थ शिक्षक ही चयनित हो सके थे.

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अभ्यर्थियों का दावा है कि तदर्थ शिक्षकों के करीब 22 हजार पद हैं. वो इन्हें भी 4163 टीजीटी-पीजीटी भर्ती प्रक्रिया में शामिल करने की मांग कर रहे हैं. इससे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में शिक्षकों के नियमित पदों पर भर्ती हो सकेगी. युवा मंच के अध्यक्ष अनिल सिंह का आरोप है कि प्रबंधकों और जिला विद्यालय निरीक्षकों की मिलीभगत के कारण तदर्थ शिक्षकों के पदों पर नियमित भर्ती नहीं हो पा रही है. इसको लेकर सोशल मीडिया पर अभियान चलाया जा रहा है.

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बता दें कि सरकारी सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में भी आयोग की तरफ से नियमित शिक्षकों की नियुक्ति का प्रावधान है. लेकिन जिस विषय में शिक्षक की तैनाती नहीं हो पाती थी, उस विषय में प्रबंधन की तरफ से तदर्थ शिक्षक की नियुक्ति कर ली जाती थी. इन्हें नियमित शिक्षकों की भांति वेतन और भत्ते भी मिलते हैं. इसमें नियम है कि आयोग से शिक्षक की तैनाती हो जाने के बाद तदर्थ शिक्षक की नौकरी स्वत: समाप्त हो जाएगी.

यह व्यवस्था साल 2000 में शासन ने खत्म कर दी थी. साथ ही नियुक्त हुए शिक्षकों को नियमित कर दिया था. लेकिन इसके बाद भी माध्यमिक विद्यालयों में तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति का सिलसिला चलता रहा. ऐसे में सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में भारी संख्या में तदर्थ शिक्षक तैनात हैं और स्थाई नियुक्ति की मांग कर रहे हैं.

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