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कांग्रेस नेताओं की मेहनत हुई 'सिफर', नाउम्मीदी में बदली हर उम्मीद - लखनऊ खबर

उत्तर प्रदेश की सात विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे सबके सामने हैं. सात सीटों में से 6 सीट भाजपा के खाते में तो एक जौनपुर की मल्हनी सीट सपा के खाते में आई. कांग्रेस एक भी सीट बचाने में नाकाम रही. उपचुनाव में जीत के बाद जहां भारतीय जनता पार्टी कार्यालय पर जश्न का माहौल रहा वहीं कांग्रेस पार्टी कार्यालय पर सन्नाटा था.

कांग्रेस को नहीं मिली एक भी सीट
कांग्रेस को नहीं मिली एक भी सीट
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Published : Nov 11, 2020, 7:49 AM IST

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आ चुके हैं. इन नतीजों से कांग्रेस की जो भी उम्मीद थीं वह भी धूमिल हो गईं. कांग्रेस पार्टी के नेताओं को सबसे ज्यादा उम्मीद बांगरमऊ सीट से थी. इसके अलावा घाटमपुर में भी पार्टी अच्छे प्रदर्शन के साथ ही जीत की उम्मीद की गारंटी दे रही थी. लेकिन ये दोनों ही सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में गईं और कांग्रेस शून्य पर ही अटकी रह गई. समाजवादी पार्टी इस मामले में कांग्रेस पर जरूर भारी पड़ी. कम से कम समाजवादी पार्टी का मल्हनी सीट जीतकर खाता खुल गया. उपचुनाव में जीत के बाद जहां भारतीय जनता पार्टी कार्यालय पर जश्न का माहौल रहा वहीं कांग्रेस पार्टी कार्यालय पर सन्नाटा पसर गया.

कांग्रेस को नहीं मिली एक भी सीट
खिसकती ही जा रही कांग्रेस की जमीन

भले ही कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बन गई हों, लगातार प्रदेश सरकार को हर मुद्दे पर जनता को कांग्रेस के साथ जोड़ने का प्रयास कर रही हों, लेकिन इसका जनता पर कोई असर नजर नहीं आ रहा है. कांग्रेस पार्टी की उत्तर प्रदेश में जमीन तैयार होती नहीं दिख रही है. उपचुनावों के नतीजे इस बात की गवाही देते हैं. कांग्रेस ने सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में छह सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. आगरा की टूंडला सीट पर पार्टी के प्रत्याशी का पर्चा खारिज हो गया था. इन सभी छह सीटों में से दो सीटों पर कांग्रेस जीत का दावा कर रही थी, लेकिन यहां पार्टी की जमीन खिसक गई. हाथ का जोर यहां नहीं चला और कमल का फूल खिल गया. पार्टी की इस हार से कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में मायूसी छा गई है.

नहीं जीत पाई एक भी सीट

यूपी में कांग्रेस पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को हर चुनाव से पार्टी की जीत की उम्मीद लगी रहती है, लेकिन हर बार उनकी यह उम्मीद नाउम्मीदी में ही बदल जाती है. पहले 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी की स्थिति खराब हुई. इसके बाद उम्मीद थी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी अपनी उस हार का बदला ले लेगी और स्थिति में सुधार होगा, लेकिन यहां पर भी कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं को मायूसी ही हाथ लगी. 2020 में अब जब महज सात सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हुआ, यहां पर पार्टी ने प्रदेश के बड़े नेताओं को लगाकर पूरी ताकत जो झोंकी, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. कांग्रेस शून्य से आगे जा ही नहीं पा रही है.

गिरता जा रहा है पार्टी का ग्राफ

विधानसभा उपचुनाव के नतीजे के बाद कांग्रेस की स्थिति बद से बदतर ही होती जा रही है. बांगरमऊ सीट को छोड़ दिया जाए तो अन्य जगहों पर कांग्रेस पार्टी का मत प्रतिशत बढ़ने के बजाय घटता ही गया. कई जगह पार्टी चौथे स्थान पर फिसल गई. ऐसे में अब कांग्रेस नेताओं को एक बार फिर सोचना होगा कि आखिर किस तरह संगठन को मजबूती देकर 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को टक्कर दे सकें.

'करेंगे बेहतर प्रदर्शन'

कांग्रेस नेता पंकज तिवारी का कहना है कि उपचुनाव हमेशा सत्ता पक्ष के होते हैं. सत्ता पक्ष की मशीनरी ही उपचुनाव लड़ती है. जनता भी सोचती है कि एक डेढ़ साल शेष बचा है, इसलिए अब सत्ताधारी पार्टी को ही मौका दिया जाए. लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में हम बहुत बेहतर प्रदर्शन करेंगे और इसकी तैयारी भी शुरू हो गई है.

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आ चुके हैं. इन नतीजों से कांग्रेस की जो भी उम्मीद थीं वह भी धूमिल हो गईं. कांग्रेस पार्टी के नेताओं को सबसे ज्यादा उम्मीद बांगरमऊ सीट से थी. इसके अलावा घाटमपुर में भी पार्टी अच्छे प्रदर्शन के साथ ही जीत की उम्मीद की गारंटी दे रही थी. लेकिन ये दोनों ही सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में गईं और कांग्रेस शून्य पर ही अटकी रह गई. समाजवादी पार्टी इस मामले में कांग्रेस पर जरूर भारी पड़ी. कम से कम समाजवादी पार्टी का मल्हनी सीट जीतकर खाता खुल गया. उपचुनाव में जीत के बाद जहां भारतीय जनता पार्टी कार्यालय पर जश्न का माहौल रहा वहीं कांग्रेस पार्टी कार्यालय पर सन्नाटा पसर गया.

कांग्रेस को नहीं मिली एक भी सीट
खिसकती ही जा रही कांग्रेस की जमीन

भले ही कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की प्रभारी बन गई हों, लगातार प्रदेश सरकार को हर मुद्दे पर जनता को कांग्रेस के साथ जोड़ने का प्रयास कर रही हों, लेकिन इसका जनता पर कोई असर नजर नहीं आ रहा है. कांग्रेस पार्टी की उत्तर प्रदेश में जमीन तैयार होती नहीं दिख रही है. उपचुनावों के नतीजे इस बात की गवाही देते हैं. कांग्रेस ने सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में छह सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. आगरा की टूंडला सीट पर पार्टी के प्रत्याशी का पर्चा खारिज हो गया था. इन सभी छह सीटों में से दो सीटों पर कांग्रेस जीत का दावा कर रही थी, लेकिन यहां पार्टी की जमीन खिसक गई. हाथ का जोर यहां नहीं चला और कमल का फूल खिल गया. पार्टी की इस हार से कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में मायूसी छा गई है.

नहीं जीत पाई एक भी सीट

यूपी में कांग्रेस पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को हर चुनाव से पार्टी की जीत की उम्मीद लगी रहती है, लेकिन हर बार उनकी यह उम्मीद नाउम्मीदी में ही बदल जाती है. पहले 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी की स्थिति खराब हुई. इसके बाद उम्मीद थी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी अपनी उस हार का बदला ले लेगी और स्थिति में सुधार होगा, लेकिन यहां पर भी कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं को मायूसी ही हाथ लगी. 2020 में अब जब महज सात सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हुआ, यहां पर पार्टी ने प्रदेश के बड़े नेताओं को लगाकर पूरी ताकत जो झोंकी, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. कांग्रेस शून्य से आगे जा ही नहीं पा रही है.

गिरता जा रहा है पार्टी का ग्राफ

विधानसभा उपचुनाव के नतीजे के बाद कांग्रेस की स्थिति बद से बदतर ही होती जा रही है. बांगरमऊ सीट को छोड़ दिया जाए तो अन्य जगहों पर कांग्रेस पार्टी का मत प्रतिशत बढ़ने के बजाय घटता ही गया. कई जगह पार्टी चौथे स्थान पर फिसल गई. ऐसे में अब कांग्रेस नेताओं को एक बार फिर सोचना होगा कि आखिर किस तरह संगठन को मजबूती देकर 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को टक्कर दे सकें.

'करेंगे बेहतर प्रदर्शन'

कांग्रेस नेता पंकज तिवारी का कहना है कि उपचुनाव हमेशा सत्ता पक्ष के होते हैं. सत्ता पक्ष की मशीनरी ही उपचुनाव लड़ती है. जनता भी सोचती है कि एक डेढ़ साल शेष बचा है, इसलिए अब सत्ताधारी पार्टी को ही मौका दिया जाए. लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में हम बहुत बेहतर प्रदर्शन करेंगे और इसकी तैयारी भी शुरू हो गई है.

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