लखनऊ : प्रदेश में नेताओं और नौकरशाहों में मतभेद एक बार फिर खुलकर सामने आए हैं. यह बात और है कि अपनी ही सरकार में सुनवाई न होने से आहत तमाम नेता खुलकर मीडिया के सामने कुछ भी कहने से बचते हैं. ऐसे समय में जब संसद का सत्र चल रहा है, कानपुर देहात से भाजपा सांसद देवेंद्र सिंह 'भोले' ने शासन को पत्र लिखकर पूर्व में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम में जिलाधिकारी नेहा जैन की मनमानी और भ्रष्टाचार की शिकायत की है, वहीं फतेहपुर की जहानाबाद सीट से भाजपा विधायक राजेंद्र सिंह पटेल ने भी जिले में आयोजित युवा महोत्सव में अधिकारियों की मनमानी पर नाराजगी व्यक्त करते हुए शिकायत करने की बात कही है. इन दोनों मामलों को छोड़ भी दें तो पहले भी अधिकारियों पर सुनवाई न करने और नेताओं की उपेक्षा के आरोप लगते रहे हैं, हालांकि सरकारी स्तर पर इसे गंभीरता से लिया गया हो ऐसा लगता नहीं है.
हाल के दिनों में चर्चा में रहीं कानपुर देहात की डीएम नेहा जैन एक बार फिर चर्चा में आई हैं. इस बार उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं सांसद देवेंद्र सिंह भोले ने. सांसद ने डीएम को पत्र लिखकर 18 बिंदुओं पर जानकारी मांगी है. भाजपा सांसद का पत्र वायरल होने के बाद राजनीतिक गलियारों में इसकी खूब चर्चा हो रही है. कहा यह भी जा रहा है कि यह पत्र मीडिया में खुद देवेंद्र सिंह भोले ने लीक किया है, क्योंकि राज्य में अधिकारियों के खिलाफ किसी भी तरह की सुनवाई कठिन बात है. गौरतलब है कि देवेंद्र सिंह भोले भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं. वह प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे हैं. वह दूसरी बार चुनकर लोकसभा पहुंचे हैं. इस पत्र के सार्वजनिक होने के बाद कयास लगाए जाने लगे हैं कि अब शायद डीएम पर कार्रवाई हो, क्योंकि ऐसी चिट्ठियां कहीं न कहीं सरकार के लिए भी हानिकारक हैं और सरकार में छवि भी खराब होती है.
दूसरा मामला फतेहपुर जिले का है. यहां की फतेहपुर की जहानाबाद सीट से भाजपा विधायक राजेंद्र सिंह पटेल ने अधिकारियों पर उपेक्षा और प्रोटोकॉल की अनदेखी का आरोप लगाते हुए शिकायत करने की बात कही है. जिले में आयोजित युवा महोत्सव 2023 के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे विधायक ने सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराजगी जाहिर करने में कोई कोताही नहीं की. साथ ही प्रदेश और भारत सरकार को लिखित शिकायत देने की बात ही मंच से अपने भाषण के दौरान कही. दरअसल, भाजपा विधायक दो मुख्य अतिथि बनाने और बैनर में अपना नाम न देखने से आहत थे. बैनर में सिर्फ अधिकारियों के नाम लिखे गए थे और नेताओं की अनदेखी की गई थी. स्वाभाविक है कि यह किसी भी जनप्रतिनिधि को अच्छा नहीं लगेगा. ऐसा लगता है कि विधायक की यह नाराजगी अचानक यूं ही नहीं थी. वह पहले से अधिकारियों की अनदेखी से परेशान थे और इसीलिए उन्होंने सार्वजनिक मंच से संदेश देना जरूरी समझा.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ एसटी मिश्र कहते हैं 'नौकरशाही और राजनेताओं में सामंजस्य और तालमेल जरूरी है. अधिकारियों को यह समझना चाहिए कि लोकतंत्र में विधायिका का उच्च स्थान है. नेता लाखों-करोड़ों लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनकी जनता के प्रति सीधी जवाबदेही भी है. इसलिए अधिकारियों को नेताओं को उचित सम्मान और प्रोटोकॉल तो देना ही पड़ेगा. यह बात और है कि नेता ही अफसरों पर निर्भर होकर उनके गलत आचरण की उपेक्षा करते हैं, वहीं कई बार सरकार के शीर्ष नेतृत्व अपने नेताओं को पर्याप्त समय नहीं देते और उनकी बातों पर गौर भी नहीं करते. यही कारण है कि अधिकारी बेअंदाज हो जाते हैं. यदि दोनों पक्ष अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझें तो यह नौबत नहीं आएगी.' डॉ मिश्रा कहते हैं कि 'दोनों ताजा प्रकरणों में कहीं न कहीं भाजपा को ही नुकसान होगा. आखिर नेता जनता के मुद्दों को लेकर ही तो अफसरों के पास जाते हैं. ऐसा लगता है कि देर-सबेर योगी सरकार ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी.'
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