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डॉक्टरों का दावा, अब कंडोम रोकेगा महिलाओं की ब्लीडिंग

पोस्टपार्टम हेमरेज (postpartum hemorrhage) की वजह से मातृ मृत्यु दर (maternal mortality rate) में भी वृद्धि होती है. यह एक गंभीर स्थिति है जो कि डिलीवरी के बाद पैदा होती है, जब डिलीवरी के बाद यूट्राइन एटॉनी की दिक्कतें होती हैं. पीपीएच(pph) से महिलाओं को बचाने के लिए कैथिटर और कंडोम का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि प्रसव के बाद महिला के गर्भाशय को आसानी से पहले वाले शेप में ला कर ब्लीडिंग को रोका जा सके.

कंडोम रोकेगा महिलाओं की ब्लीडिंग
कंडोम रोकेगा महिलाओं की ब्लीडिंग
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Published : Jul 3, 2021, 8:10 PM IST

लखनऊ: केजीएमयू के क्वीन मेरी अस्पताल(Queen Mary Hospital) के डॉक्टरों ने दावा किया है कि कंडोम (condom) और कैथिटर (catheter) के इस्तेमाल से प्रसव के बाद महिलाओं के रक्तस्राव को रोका जा सकता है. इसे (पीपीएच) पोस्टपार्टम हेमरेज(postpartum hemorrhage) कहा जाता है. देश में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के सीएचसी पीएचसी में तमाम गर्भवती महिलाओं की मौत अत्यधिक ब्लीडिंग होने के कारण होती है. दरअसल प्रसव के बाद बहुत सारी महिलाओं को अत्यधिक रक्तस्राव होता है. जिसके बाद प्रसूता के शरीर में खून की कमी हो जाती है. यही वजह है कि देश में मातृ मृत्यु दर बढ़ती जा रही है. क्वीन मैरी अस्पताल की डॉक्टर ज्यादातर प्रसूताओं की ब्लीडिंग को रोकने के लिए कैथिटर और कंडोम का इस्तेमाल करती हैं.

पोस्टपार्टम हेमरेज खतरनाक
क्वीन मेरी अस्पताल (Queen Mary Hospital) की मेडिकल सुपरिटेंडेंट प्रो. एसपी जायसवार बताती हैं कि पोस्टपार्टम हेमरेज (postpartum hemorrhage) महिलाओं के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक होता है. इसी की वजह से मातृ मृत्यु दर (maternal mortality rate) में भी वृद्धि होती है. यह एक गंभीर स्थिति है जो कि डिलीवरी के बाद पैदा होती है जब डिलीवरी के बाद यूट्राइन एटॉनी की दिक्कतें होती हैं. इसी के कारण महिलाओं की मौत हो जाती है. सुपरिटेंडेंट प्रो. एसपी जायसवार ने बताया कि अब हमारे अस्पताल में पीपीएच से महिलाओं को बचाने के लिए कैथिटर और कंडोम का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि प्रसव के बाद महिला के गर्भाशय को आसानी से पहले वाले शेप में ला कर ब्लीडिंग को रोका जा सके.

कंडोम रोकेगा महिलाओं की ब्लीडिंग.
आसानी से उपलब्ध कैथिटर और कंडोम
डॉ एसपी जायसवार ने बताया कि कैथिटर और कंडोम के इस्तेमाल से पीपीएच पीड़ित प्रसूता के ब्लीडिंग को 24 घंटे में ही रोका जा सकता है. किसी भी सरकारी अस्पताल में कैथिटर और कंडोम यानी निरोधक आसानी से उपलब्ध होता है. इसका कोई भी दुष्प्रभाव प्रसूता को नहीं होता है. ये महंगा भी नहीं है. इसी वजह से हम अधिकतर पीपीएच पीड़ित प्रसूता की ब्लीडिंग को रोकने में इसका इस्तेमाल करते हैं.
महिलाओं की ब्लीडिंग रोकने के लिए अपनाई जा रही  बैलून कैथिटर विधि.
महिलाओं की ब्लीडिंग रोकने के लिए अपनाई जा रही बैलून कैथिटर विधि.
अस्पताल में कर्मचारियों को भी दी जा रही ट्रेनिंग
डॉ एसपी जायसवार बताती हैं कि डॉक्टरी की पढ़ाई के दौरान हर डॉक्टर को इसकी ट्रेनिंग दी जाती है कि किस तरह से इसे इंजेक्ट करना होता है. ग्रामीण क्षेत्र के सीएचसी पीएचसी में आया, दाई, नर्स या कर्मचारी को इसकी जानकारी नहीं होती है. जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्र में प्रसूता की मौत अत्यधिक ब्लीडिंग के कारण हो जाती है, लेकिन अब सभी सीएचसी-पीएचसी में सभी को ट्रेनिंग दी जा रही है. लोगों को भी जागरूक होना जरूरी हैं. क्वीन मेरी अस्पताल में भी सभी हेल्थ वर्कर्स को शुक्रवार से ट्रेनिंग दी जा रही है. ताकि भविष्य में अगर अस्पताल में कोई डॉक्टर न रहे तो महिला की ब्लीडिंग को रोका जा सके.
बैलून कैथिटर
बैलून कैथिटर
पहले और अब की तकनीक
डॉ बताती हैं कि प्रसव के दौरान रक्त स्राव होना सामान्य बात है, परंतु जब यही रक्तस्राव अत्यधिक मात्रा में होने लगे और उपचार के बाद भी कोई लाभ न हो तो इससे मां की जान को खतरा हो सकता है. डिलीवरी के दौरान महिलाओं की इससे सबसे ज्यादा मौत होती है. देश में हर साल 8.7 मिलियन बार पोस्टपार्टम हेमरेज की घटनाएं होती हैं, इतना ही नहीं 44 हजार से अधिक प्रसूताओं की मौत हो जाती है. उन्होंने बताया कि पहले मिजोप्रोस्टॉल, ऑक्सीटोसिन, प्रोस्टाग्लेडिन, इंट्रावेनस फ्लूड, ब्लड ट्रांसफ्यूजन, गर्भाशय में बचे प्लेसेंटा के टुकड़ों का निकाल कर, गर्भाशय में रक्तस्राव के क्षेत्र को स्पंज और कॉटन से पैकेजिंग कर रक्तस्राव को रोका जाता था, लेकिन अब कैथिटर और कंडोम की मदद से ब्लड को रोका जाता है.


इसे भी पढ़ें- बच्चे के फेफड़े को ट्यूमर ने जकड़ा, ऑपरेशन कर बचाई जान



यह है विधि
फॉलिज कैथिटर के ऊपर कंडोम को बांधकर कर प्रसूता की बच्चेदानी में डालकर सलाइन भरा जाता है, ताकि कंडोम बैलून बन जाए. बच्चेदानी में जब बैलून फूलता है तो बैलून बच्चेदानी से चिपक जाता है. उसे 24 घंटे के लिए बच्चेदानी में ही छोड़ दिया जाता है. 24 घंटे बाद डॉक्टर गर्भाशय से सलाइन को धीरे-धीरे निकालते हैं. इसके बाद गर्भाशय का आकार जो प्रसव के बाद फैल जाता है वह अपने ओरिजिनल आकार में कैथिटर और कंडोम के सहायता से आ जाता है. जिससे ब्लीडिंग रुक जाती है. पहली बार इस विधि को छत्तीसगढ़ में एक डॉक्टर ने किया था. जिसकी वजह से इस विधि को छत्तीसगढ़ बैलून कैथिटर के नाम से भी से जाना जाता है.

लखनऊ: केजीएमयू के क्वीन मेरी अस्पताल(Queen Mary Hospital) के डॉक्टरों ने दावा किया है कि कंडोम (condom) और कैथिटर (catheter) के इस्तेमाल से प्रसव के बाद महिलाओं के रक्तस्राव को रोका जा सकता है. इसे (पीपीएच) पोस्टपार्टम हेमरेज(postpartum hemorrhage) कहा जाता है. देश में शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के सीएचसी पीएचसी में तमाम गर्भवती महिलाओं की मौत अत्यधिक ब्लीडिंग होने के कारण होती है. दरअसल प्रसव के बाद बहुत सारी महिलाओं को अत्यधिक रक्तस्राव होता है. जिसके बाद प्रसूता के शरीर में खून की कमी हो जाती है. यही वजह है कि देश में मातृ मृत्यु दर बढ़ती जा रही है. क्वीन मैरी अस्पताल की डॉक्टर ज्यादातर प्रसूताओं की ब्लीडिंग को रोकने के लिए कैथिटर और कंडोम का इस्तेमाल करती हैं.

पोस्टपार्टम हेमरेज खतरनाक
क्वीन मेरी अस्पताल (Queen Mary Hospital) की मेडिकल सुपरिटेंडेंट प्रो. एसपी जायसवार बताती हैं कि पोस्टपार्टम हेमरेज (postpartum hemorrhage) महिलाओं के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक होता है. इसी की वजह से मातृ मृत्यु दर (maternal mortality rate) में भी वृद्धि होती है. यह एक गंभीर स्थिति है जो कि डिलीवरी के बाद पैदा होती है जब डिलीवरी के बाद यूट्राइन एटॉनी की दिक्कतें होती हैं. इसी के कारण महिलाओं की मौत हो जाती है. सुपरिटेंडेंट प्रो. एसपी जायसवार ने बताया कि अब हमारे अस्पताल में पीपीएच से महिलाओं को बचाने के लिए कैथिटर और कंडोम का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि प्रसव के बाद महिला के गर्भाशय को आसानी से पहले वाले शेप में ला कर ब्लीडिंग को रोका जा सके.

कंडोम रोकेगा महिलाओं की ब्लीडिंग.
आसानी से उपलब्ध कैथिटर और कंडोम
डॉ एसपी जायसवार ने बताया कि कैथिटर और कंडोम के इस्तेमाल से पीपीएच पीड़ित प्रसूता के ब्लीडिंग को 24 घंटे में ही रोका जा सकता है. किसी भी सरकारी अस्पताल में कैथिटर और कंडोम यानी निरोधक आसानी से उपलब्ध होता है. इसका कोई भी दुष्प्रभाव प्रसूता को नहीं होता है. ये महंगा भी नहीं है. इसी वजह से हम अधिकतर पीपीएच पीड़ित प्रसूता की ब्लीडिंग को रोकने में इसका इस्तेमाल करते हैं.
महिलाओं की ब्लीडिंग रोकने के लिए अपनाई जा रही  बैलून कैथिटर विधि.
महिलाओं की ब्लीडिंग रोकने के लिए अपनाई जा रही बैलून कैथिटर विधि.
अस्पताल में कर्मचारियों को भी दी जा रही ट्रेनिंग
डॉ एसपी जायसवार बताती हैं कि डॉक्टरी की पढ़ाई के दौरान हर डॉक्टर को इसकी ट्रेनिंग दी जाती है कि किस तरह से इसे इंजेक्ट करना होता है. ग्रामीण क्षेत्र के सीएचसी पीएचसी में आया, दाई, नर्स या कर्मचारी को इसकी जानकारी नहीं होती है. जिसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्र में प्रसूता की मौत अत्यधिक ब्लीडिंग के कारण हो जाती है, लेकिन अब सभी सीएचसी-पीएचसी में सभी को ट्रेनिंग दी जा रही है. लोगों को भी जागरूक होना जरूरी हैं. क्वीन मेरी अस्पताल में भी सभी हेल्थ वर्कर्स को शुक्रवार से ट्रेनिंग दी जा रही है. ताकि भविष्य में अगर अस्पताल में कोई डॉक्टर न रहे तो महिला की ब्लीडिंग को रोका जा सके.
बैलून कैथिटर
बैलून कैथिटर
पहले और अब की तकनीक
डॉ बताती हैं कि प्रसव के दौरान रक्त स्राव होना सामान्य बात है, परंतु जब यही रक्तस्राव अत्यधिक मात्रा में होने लगे और उपचार के बाद भी कोई लाभ न हो तो इससे मां की जान को खतरा हो सकता है. डिलीवरी के दौरान महिलाओं की इससे सबसे ज्यादा मौत होती है. देश में हर साल 8.7 मिलियन बार पोस्टपार्टम हेमरेज की घटनाएं होती हैं, इतना ही नहीं 44 हजार से अधिक प्रसूताओं की मौत हो जाती है. उन्होंने बताया कि पहले मिजोप्रोस्टॉल, ऑक्सीटोसिन, प्रोस्टाग्लेडिन, इंट्रावेनस फ्लूड, ब्लड ट्रांसफ्यूजन, गर्भाशय में बचे प्लेसेंटा के टुकड़ों का निकाल कर, गर्भाशय में रक्तस्राव के क्षेत्र को स्पंज और कॉटन से पैकेजिंग कर रक्तस्राव को रोका जाता था, लेकिन अब कैथिटर और कंडोम की मदद से ब्लड को रोका जाता है.


इसे भी पढ़ें- बच्चे के फेफड़े को ट्यूमर ने जकड़ा, ऑपरेशन कर बचाई जान



यह है विधि
फॉलिज कैथिटर के ऊपर कंडोम को बांधकर कर प्रसूता की बच्चेदानी में डालकर सलाइन भरा जाता है, ताकि कंडोम बैलून बन जाए. बच्चेदानी में जब बैलून फूलता है तो बैलून बच्चेदानी से चिपक जाता है. उसे 24 घंटे के लिए बच्चेदानी में ही छोड़ दिया जाता है. 24 घंटे बाद डॉक्टर गर्भाशय से सलाइन को धीरे-धीरे निकालते हैं. इसके बाद गर्भाशय का आकार जो प्रसव के बाद फैल जाता है वह अपने ओरिजिनल आकार में कैथिटर और कंडोम के सहायता से आ जाता है. जिससे ब्लीडिंग रुक जाती है. पहली बार इस विधि को छत्तीसगढ़ में एक डॉक्टर ने किया था. जिसकी वजह से इस विधि को छत्तीसगढ़ बैलून कैथिटर के नाम से भी से जाना जाता है.

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