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जोशीमठ में संकट के प्रति भू वैज्ञानिकों ने पहले ही किया था सतर्क, शोध के बाद सुझाए थे उपाय - Geologist Prof Opinion of Vibhuti Rai

उत्तराखंड का जोशीमठ लैंडस्लाइड के मलबे पर बसा है. ऐसे में जोशामठ का विशाल क्षेत्र कभी भी अलकनंदा नदी की आगोश में समा सकता है. लखनऊ विश्वविद्यालय के भू वैज्ञानिकों ने यह दावा चंबा भरमौर में लैंडस्लाइड से हुई तबाही के बाद शोध के परिणामों के बाद किया है. भू वैज्ञानिकों का दावा है कि भारतीय प्लेट के 5 सेमी/वर्ष की दर से गतिशील होने तथा इसका यूरेशियन प्लेट से अभिसरण जारी होने के चलते जोशी मठ व चंबा भरमौर के अस्तित्व पर संकट बना ही रहेगा.

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Published : Jan 10, 2023, 10:57 PM IST

जानकारी देते भू वैज्ञानिक.

लखनऊ : उत्तराखंड के जोशीमठ को लेकर जिस तरह से स्थिति सामने आई है. यह हिमालयन प्लेट्स में बसे क्षेत्रों के लिए कोई नई बात नहीं है. जोशी मठ बसने के समय भी उतना ही खतरनाक था, जितना की आज है. यहां का पूरा इलाका प्राकृतिक मलबे का ढेर है. यह मलबा लैंडस्लाइड का है. इस पर ही जोशी मठ बसा है. आज नहीं तो कल धीरे धीरे जोशी मठ का एक बड़ा इलाका अलकनंदा में समा सकता है. यह दावा भू-वैज्ञानिक और लखनऊ विश्वविद्यालय (Research of Lucknow University on Joshimath) के भूगर्भ विभाग के प्रोफेसर अजय कुमार आर्या का है. भू-विज्ञान विभाग के प्रोफेसर ने बताया कि केवल जोशीमठ ही नहीं हिमालय के पहाड़ों में बसे कई इलाकों (Geologists' opinion on Joshimath) में यह समस्या है. वर्ष 2018 में चंबा भरमौर क्षेत्र में समस्या सामने आ चुकी है. यह एरिया भी जोशीमठ के ही जैसा है. उस एरिया में भी रह रहे लोगों को कुछ इसी तरह के आपदाओं का सामना करना पर रहा था.


70 किमी के एरिया का पूरा शोध कर रिपोर्ट तैयार किया : लखनऊ विश्वविद्यालय के भू-वैज्ञानिक के प्रोफेसर का कहना है कि जोशी मठ के साथ हो ऐसा होना ही था. यह कोई नई बात नहीं है. उनका कहना है कि हैलांग से लेकर जोशी मठ के पास से होता है. मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) गुजरता है. लिहाजा उस इलाके की चट्टानें कमजोर हो जाती हैं. यही वजह है कि चमोली से लेकर जोशी मठ के पूरे इलाके में कभी भी लैंड स्लाइड (भूस्खलन) नहीं रुका. वर्ष 2018 हिमाचल प्रदेश के चंबा भरमौर क्षेत्र में इसी तरह की लैंडस्लाइड वह घरों में दरारें देखने को मिल रही थीं. इसके बाद एक टीम के साथ इस पूरे क्षेत्र का दौरा कर रिपोर्ट तैयार किया गया था. वर्ष 2021 में उनकी शोध छात्रा डॉ. कामिनी सिंह के शोध पेपर जिओ एनवायरमेंट स्टडीज विद स्पेशल रेफरेंस टू लैंडस्लाइड हजार्ड इन द पार्ट ऑफ चंबा हिमाचल प्रदेश इसके कारणों पर विस्तार से जानकारी दी गई है. वर्ष 2018 में जब यहां लैंडस्लाइड के मामले अधिक बढ़ने लगे तो उनकी पूरी टीम ने क्षेत्र का दौरा किया और करीब 70 किलोमीटर तक
पैदल चलने के बाद एक एक पहाड़ चट्टानों वह मिट्टी के नमूने इकट्ठा कर अपना रिपोर्ट तैयार की. जोशीमठ के एरिया के जैसा ही है यह उसी मैन सेंट्रल थ्रस्ट पर स्थित है जिस पर जोशीमठ स्थित है.

डाउन तरफ न होकर ऊपर की तरफ निर्माण कराया जाना चाहिए : प्रोफेसर आर्या ने बताया कि चम्बा-भरमार में जोशीमठ जैसी ही समस्या आई थी. अब इस पूरे क्षेत्र का शोध कर जो रिपोर्ट हमने तैयार की. उसमें हमने सरकार से कहा था कि अर्बनाइजेशन एक्टिविटी जो भी क्षेत्र में हो रही है. वह पहाड़ के ढलान या नदी के ढलान की तरफ ना होकर उसे ऊपर की तरफ किया जाना चाहिए. जहां पर क्रैक व जॉइंट मिल रहे हों जिसे (लिनीयामेंट) या कमजोर क्षेत्र कहते हैं. उन क्षेत्र में इस तरह की कोई भी निर्माण गतिविधि को पूरी तरह से रोका जाए. उत्तराखंड सरकार को भी इसी तरह से जोशीमठ के क्षेत्र में कमजोर क्षेत्रों की पहचान कर उसकी मैपिंग करानी चाहिए. अगर इस क्षेत्र में निर्माण जरूरी है तो पहले कमजोर क्षेत्रों पहचान करने के लिए मैपिंग कराएं. ये होने के बाद उन्हें सीमेंट, लोहे, रॉड या नट-बोल्ट से उस एरिया को पहले मजबूती प्रदान करनी होगी. साथ ही ऐसे क्षेत्रों में वह जगहों जो रोड से जुड़े हुए हों वहां आरसीसी की दीवार बनाकर नालियों के माध्यम से पानी को पहाड़ में रिसने के बजाए उन्हें पाइपों के माध्यम से नदियों में भेज देना चाहिए. जिससे वहां की जमीन की नमी खत्म हो और मिट्टी जल्दी सूखे.

सीवर के सोख पीट भी जोशी मठ के लिए खतरा : भू वैज्ञानिक प्रो. विभूती राय (Geologist Prof. Opinion of Vibhuti Rai) ने बताया कि लोगों ने अपने सीवर के निस्तराण के लिए सोख पीट बनाए. इसकी वजह से नीचे की चट्टानों में पानी भर गया, फिर यह लिक्वी फैक्सन में बदल गया और नीचे की मिट्टी, पानी और चट्टानों के टुकड़े कीचड़ बनकर बह रहे हैं. ऊपर दरारें पैदा हो रही हैं. उनका कहना है कि जोशी मठ का बड़ा इलाका अलकनंदा और धौली गंगा की ढालन पर बसा है. मकान व होटल पिलर पर बनाए गए हैं. यह पिलर नदी की तरफ हैं. नदीं हमेशा प्राकृतिक रूप से नीचे की ओर कटान करती है. पिलर बनने से कटान और आसानी से होने लगी. कमजोर इलाके पर ऊंचे ऊंचे होटल बनाना समझ के परे है. समझ में नहीं आता है कि किसने इसकी अनुमति दी. यह भी आपदा की बड़ी वजह हैं. सुरई सोटा की तरफ गरम पानी का सोत्र है. वह इलाका भी कमजोर है. यह क्षेत्र भी कभी ध्वस्त हो सकता है.


मेन सेंट्रल थ्रस्ट के गुजरने से जोशी मठ व चंबा भरमौर के अस्तित्व पर संकट : भू-वैज्ञानिकों का दावा है कि चम्बा भरमौर और जोशी मठ के अस्तित्व को लेकर इन वैज्ञानिकों का कहना है कि हैलांग से लेकर जोशी मठ का इलाका मेन सेंट्रल थ्रस्ट से होकर गुजरते हुए अफगानिस्तान तक चला जाता है. हिमालयी क्षेत्र में मेन सेंट्रल थ्रस्ट बड़े एवं लघु हिमालय के मध्य मेन बाउन्ड्री थ्रस्ट लघु एवं शिवालिक हिमालय के मध्य है तथा हिमालयन फ्रंट फाल्ट शिवालिक तथा विशाल मैदान के मध्य स्थित है. इन भ्रंशों की हिमालय में उपस्थिति के कारण विनाशकारी भूकंप उत्पन्न होते हैं. हिमालयी क्षेत्र भूगर्भिक संरचना के दृष्टिकोण से एक नवीन क्षेत्र है, जहां चट्टानें अभी स्थिर अवस्था को प्राप्त नहीं हुई हैं. वर्तमान में भी भारतीय प्लेट 5 सेमी/वर्ष की दर से गतिशील है तथा इसका यूरेशियन प्लेट से अभिसरण जारी है. यही वजह है कि चमोली से लेकर जोशी मठ के पूरे इलाके में कभी भी लैंडस्लाइड नहीं रुका.

यह भी पढ़ें : अखिलेश ने कहा, भाजपा को आम आदमी की चिंता नहीं, अब जनता को देने जा रहे महंगी बिजली का झटका

जानकारी देते भू वैज्ञानिक.

लखनऊ : उत्तराखंड के जोशीमठ को लेकर जिस तरह से स्थिति सामने आई है. यह हिमालयन प्लेट्स में बसे क्षेत्रों के लिए कोई नई बात नहीं है. जोशी मठ बसने के समय भी उतना ही खतरनाक था, जितना की आज है. यहां का पूरा इलाका प्राकृतिक मलबे का ढेर है. यह मलबा लैंडस्लाइड का है. इस पर ही जोशी मठ बसा है. आज नहीं तो कल धीरे धीरे जोशी मठ का एक बड़ा इलाका अलकनंदा में समा सकता है. यह दावा भू-वैज्ञानिक और लखनऊ विश्वविद्यालय (Research of Lucknow University on Joshimath) के भूगर्भ विभाग के प्रोफेसर अजय कुमार आर्या का है. भू-विज्ञान विभाग के प्रोफेसर ने बताया कि केवल जोशीमठ ही नहीं हिमालय के पहाड़ों में बसे कई इलाकों (Geologists' opinion on Joshimath) में यह समस्या है. वर्ष 2018 में चंबा भरमौर क्षेत्र में समस्या सामने आ चुकी है. यह एरिया भी जोशीमठ के ही जैसा है. उस एरिया में भी रह रहे लोगों को कुछ इसी तरह के आपदाओं का सामना करना पर रहा था.


70 किमी के एरिया का पूरा शोध कर रिपोर्ट तैयार किया : लखनऊ विश्वविद्यालय के भू-वैज्ञानिक के प्रोफेसर का कहना है कि जोशी मठ के साथ हो ऐसा होना ही था. यह कोई नई बात नहीं है. उनका कहना है कि हैलांग से लेकर जोशी मठ के पास से होता है. मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) गुजरता है. लिहाजा उस इलाके की चट्टानें कमजोर हो जाती हैं. यही वजह है कि चमोली से लेकर जोशी मठ के पूरे इलाके में कभी भी लैंड स्लाइड (भूस्खलन) नहीं रुका. वर्ष 2018 हिमाचल प्रदेश के चंबा भरमौर क्षेत्र में इसी तरह की लैंडस्लाइड वह घरों में दरारें देखने को मिल रही थीं. इसके बाद एक टीम के साथ इस पूरे क्षेत्र का दौरा कर रिपोर्ट तैयार किया गया था. वर्ष 2021 में उनकी शोध छात्रा डॉ. कामिनी सिंह के शोध पेपर जिओ एनवायरमेंट स्टडीज विद स्पेशल रेफरेंस टू लैंडस्लाइड हजार्ड इन द पार्ट ऑफ चंबा हिमाचल प्रदेश इसके कारणों पर विस्तार से जानकारी दी गई है. वर्ष 2018 में जब यहां लैंडस्लाइड के मामले अधिक बढ़ने लगे तो उनकी पूरी टीम ने क्षेत्र का दौरा किया और करीब 70 किलोमीटर तक
पैदल चलने के बाद एक एक पहाड़ चट्टानों वह मिट्टी के नमूने इकट्ठा कर अपना रिपोर्ट तैयार की. जोशीमठ के एरिया के जैसा ही है यह उसी मैन सेंट्रल थ्रस्ट पर स्थित है जिस पर जोशीमठ स्थित है.

डाउन तरफ न होकर ऊपर की तरफ निर्माण कराया जाना चाहिए : प्रोफेसर आर्या ने बताया कि चम्बा-भरमार में जोशीमठ जैसी ही समस्या आई थी. अब इस पूरे क्षेत्र का शोध कर जो रिपोर्ट हमने तैयार की. उसमें हमने सरकार से कहा था कि अर्बनाइजेशन एक्टिविटी जो भी क्षेत्र में हो रही है. वह पहाड़ के ढलान या नदी के ढलान की तरफ ना होकर उसे ऊपर की तरफ किया जाना चाहिए. जहां पर क्रैक व जॉइंट मिल रहे हों जिसे (लिनीयामेंट) या कमजोर क्षेत्र कहते हैं. उन क्षेत्र में इस तरह की कोई भी निर्माण गतिविधि को पूरी तरह से रोका जाए. उत्तराखंड सरकार को भी इसी तरह से जोशीमठ के क्षेत्र में कमजोर क्षेत्रों की पहचान कर उसकी मैपिंग करानी चाहिए. अगर इस क्षेत्र में निर्माण जरूरी है तो पहले कमजोर क्षेत्रों पहचान करने के लिए मैपिंग कराएं. ये होने के बाद उन्हें सीमेंट, लोहे, रॉड या नट-बोल्ट से उस एरिया को पहले मजबूती प्रदान करनी होगी. साथ ही ऐसे क्षेत्रों में वह जगहों जो रोड से जुड़े हुए हों वहां आरसीसी की दीवार बनाकर नालियों के माध्यम से पानी को पहाड़ में रिसने के बजाए उन्हें पाइपों के माध्यम से नदियों में भेज देना चाहिए. जिससे वहां की जमीन की नमी खत्म हो और मिट्टी जल्दी सूखे.

सीवर के सोख पीट भी जोशी मठ के लिए खतरा : भू वैज्ञानिक प्रो. विभूती राय (Geologist Prof. Opinion of Vibhuti Rai) ने बताया कि लोगों ने अपने सीवर के निस्तराण के लिए सोख पीट बनाए. इसकी वजह से नीचे की चट्टानों में पानी भर गया, फिर यह लिक्वी फैक्सन में बदल गया और नीचे की मिट्टी, पानी और चट्टानों के टुकड़े कीचड़ बनकर बह रहे हैं. ऊपर दरारें पैदा हो रही हैं. उनका कहना है कि जोशी मठ का बड़ा इलाका अलकनंदा और धौली गंगा की ढालन पर बसा है. मकान व होटल पिलर पर बनाए गए हैं. यह पिलर नदी की तरफ हैं. नदीं हमेशा प्राकृतिक रूप से नीचे की ओर कटान करती है. पिलर बनने से कटान और आसानी से होने लगी. कमजोर इलाके पर ऊंचे ऊंचे होटल बनाना समझ के परे है. समझ में नहीं आता है कि किसने इसकी अनुमति दी. यह भी आपदा की बड़ी वजह हैं. सुरई सोटा की तरफ गरम पानी का सोत्र है. वह इलाका भी कमजोर है. यह क्षेत्र भी कभी ध्वस्त हो सकता है.


मेन सेंट्रल थ्रस्ट के गुजरने से जोशी मठ व चंबा भरमौर के अस्तित्व पर संकट : भू-वैज्ञानिकों का दावा है कि चम्बा भरमौर और जोशी मठ के अस्तित्व को लेकर इन वैज्ञानिकों का कहना है कि हैलांग से लेकर जोशी मठ का इलाका मेन सेंट्रल थ्रस्ट से होकर गुजरते हुए अफगानिस्तान तक चला जाता है. हिमालयी क्षेत्र में मेन सेंट्रल थ्रस्ट बड़े एवं लघु हिमालय के मध्य मेन बाउन्ड्री थ्रस्ट लघु एवं शिवालिक हिमालय के मध्य है तथा हिमालयन फ्रंट फाल्ट शिवालिक तथा विशाल मैदान के मध्य स्थित है. इन भ्रंशों की हिमालय में उपस्थिति के कारण विनाशकारी भूकंप उत्पन्न होते हैं. हिमालयी क्षेत्र भूगर्भिक संरचना के दृष्टिकोण से एक नवीन क्षेत्र है, जहां चट्टानें अभी स्थिर अवस्था को प्राप्त नहीं हुई हैं. वर्तमान में भी भारतीय प्लेट 5 सेमी/वर्ष की दर से गतिशील है तथा इसका यूरेशियन प्लेट से अभिसरण जारी है. यही वजह है कि चमोली से लेकर जोशी मठ के पूरे इलाके में कभी भी लैंडस्लाइड नहीं रुका.

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