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लखनऊ : मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रत्याशी अपना रहे नए-नए तरीके - पोस्टर

चुनाव आयोग प्रत्याशियों के खर्चों पर नजर रखने के लिए बेहद सतर्क है, तो प्रत्याशी भी मतदाताओं को प्रभावित करने के नए उपाय अपना रहे हैं. मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए प्रत्याशी अब होटल, भोजन और टैक्सी पर खर्चा कर रहे हैं.

प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने के लिए अपना रहे नए-नए तराके.
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Published : May 5, 2019, 8:48 PM IST

लखनऊ : चुनाव आयोग प्रत्याशियों के खर्चों पर नजर रखने के लिए बेहद सतर्क है, तो प्रत्याशी भी मतदाताओं को प्रभावित करने के नए तरीके अपना रहे हैं. मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए प्रत्याशी अब पोस्टर, बैनर, होर्डिंग जैसी प्रचार सामग्री पर कम खर्च कर रहे हैं. वहीं होटल, भोजन और टैक्सी पर खर्चा कई गुना बढ़ गया है. यही वजह है कि चुनाव आयोग ऐसे खर्चों की निगरानी करने में नाकाम साबित हो रहा है.

प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने के लिए अपना रहे नए-नए तराके.
  • देश के आम चुनाव में कभी पोस्टर, बैनर से प्रत्याशियों का चुनावी माहौल तैयार हुआ करता था.
  • चुनाव आयोग की ओर से ऐसे खर्चों पर कड़ी निगरानी किए जाने के बाद अब प्रचार सामग्री की दुकानें सूनी पड़ी हुई हैं.
  • राजधानी में राजनीतिक दलों के कार्यालयों के बाहर इस तरह की दुकानें हालांकि पूरे साल खुली रहती हैं.
  • इनका असली कारोबार चुनाव के माहौल में ही हुआ करता था.

पहले हुए चुनाव के मुकाबले उनका कारोबार इतना कम हो गया है कि सामान्य खर्च भी निकलना मुश्किल है इसकी वजह चुनाव आयोग की सख्ती है.

-संजय श्रीवास्तव, चुनाव प्रचार सामग्री, विक्रेता

राजनीतिक दल भी यह कह रहे हैं कि चुनाव का प्रचार संबंधित खर्च डिजिटल इंडिया ने कम कर दिया है प्रचार अब सोशल मीडिया के माध्यम से हो रहा है ऐसे में पारंपरिक तरीकों की जरूरत कम हो गई है.

-हरीश चंद्र श्रीवास्तव, प्रवक्ता, भाजपा

लखनऊ : चुनाव आयोग प्रत्याशियों के खर्चों पर नजर रखने के लिए बेहद सतर्क है, तो प्रत्याशी भी मतदाताओं को प्रभावित करने के नए तरीके अपना रहे हैं. मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए प्रत्याशी अब पोस्टर, बैनर, होर्डिंग जैसी प्रचार सामग्री पर कम खर्च कर रहे हैं. वहीं होटल, भोजन और टैक्सी पर खर्चा कई गुना बढ़ गया है. यही वजह है कि चुनाव आयोग ऐसे खर्चों की निगरानी करने में नाकाम साबित हो रहा है.

प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने के लिए अपना रहे नए-नए तराके.
  • देश के आम चुनाव में कभी पोस्टर, बैनर से प्रत्याशियों का चुनावी माहौल तैयार हुआ करता था.
  • चुनाव आयोग की ओर से ऐसे खर्चों पर कड़ी निगरानी किए जाने के बाद अब प्रचार सामग्री की दुकानें सूनी पड़ी हुई हैं.
  • राजधानी में राजनीतिक दलों के कार्यालयों के बाहर इस तरह की दुकानें हालांकि पूरे साल खुली रहती हैं.
  • इनका असली कारोबार चुनाव के माहौल में ही हुआ करता था.

पहले हुए चुनाव के मुकाबले उनका कारोबार इतना कम हो गया है कि सामान्य खर्च भी निकलना मुश्किल है इसकी वजह चुनाव आयोग की सख्ती है.

-संजय श्रीवास्तव, चुनाव प्रचार सामग्री, विक्रेता

राजनीतिक दल भी यह कह रहे हैं कि चुनाव का प्रचार संबंधित खर्च डिजिटल इंडिया ने कम कर दिया है प्रचार अब सोशल मीडिया के माध्यम से हो रहा है ऐसे में पारंपरिक तरीकों की जरूरत कम हो गई है.

-हरीश चंद्र श्रीवास्तव, प्रवक्ता, भाजपा

Intro:लखनऊ. चुनाव आयोग अगर प्रत्याशियों के खर्चों पर नजर रखने के लिए बेहद सतर्क है तो प्रत्याशी भी तू डाल डाल मैं पात पात की तर्ज पर मतदाताओं को प्रभावित करने के नए उपाय अपना रहे है। . मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए प्रत्याशी अब पोस्टर बैनर होर्डिंग जैसे प्रचार सामग्री पर कम खर्च कर रहे हैं जबकि होटल भोजन और टैक्सी पर खर्चा कई गुना बढ़ गया है यही वजह है कि चुनाव आयोग ऐसे खर्चों की निगरानी करने में नाकाम साबित हो रहा है.


Body:देश के आम चुनाव में कभी पोस्टर बैनर बिल्लू से प्रत्याशियों का चुनावी माहौल तैयार हुआ करता था लेकिन चुनाव आयोग की ओर से ऐसे खर्चों पर कड़ी निगरानी के जाने के बाद अब प्रचार सामग्री की दुकाने सूनी पड़ी हुई है. राजधानी लखनऊ में राजनीतिक दलों के कार्यालयों के बाहर इस तरह की दुकानें हालांकि पूरे साल भर खुली रहती हैं लेकिन इनका असली कारोबार चुनाव के माहौल में ही हुआ करता था दुकानदारों का कहना है कि पहले हुए चुनाव के मुकाबले उन का कारोबार इतना कम हो गया है कि सामान्य खर्च भी निकलना मुश्किल है इसकी वजह चुनाव आयोग की सख्ती है.

बाइट/ संजय श्रीवास्तव प्रचार सामग्री विक्रेता


राजधानी लखनऊ की सड़कों से भी चुनाव प्रचार संबंधित पोस्टर बैनर और झंडे लगभग नदारद से हैं राजनीतिक दल भी यह कह रहे हैं कि चुनाव का प्रचार संबंधित खर्च डिजिटल इंडिया ने कम कर दिया है प्रचार अब सोशल मीडिया के माध्यम से हो रहा है ऐसे में पारंपरिक तरीकों की जरूरत कम हो गई है।

बाइट हरीश चंद्र श्रीवास्तव प्रवक्ता भारतीय जनता पार्टी




Conclusion: सड़कों पर पोस्टर बैनर नहीं दिख रहे लेकिन इसके बजाय शहर के होटल के कमरे पूरी तरह भरे हुए हैं इसकी वजह राजधानी लखनऊ में विभिन्न राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं की मौजूदगी भी है तो दूसरी वजह बाहर से आए प्रत्याशियों और उनके समर्थकों की भीड़ भी है यह अलग बात है की होटल संचालक इस मसले पर बोलने के लिए तैयार नहीं हैं और यह बात भी नहीं मान रहे हैं कि उनके होटलों में राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने डेरा डाल रखा है इसी के साथ ही राजधानी में ट्रैवल एजेंसियों की पौ- बारह हो रखी है। टैक्सी संचालक बढी दरों का किराया वसूल रहे हैं।

पीटीसी अखिलेश तिवारी
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