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ठंड व प्रदूषण से अस्थमा और हार्ट के मरीजों को समस्या, इन बातों का रखें ध्यान - ठंड व प्रदूषण बढ़ा रहा समस्या

उत्तर प्रदेश में कोहरे का कहर जारी है, वहीं कई जिलों में वायु प्रदूषण भी फैला हुआ है. जिसके चलते अस्थमा और हार्ट के मरीजों (asthma and heart patients) को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

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Published : Jan 10, 2023, 2:59 PM IST

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लखनऊ : प्रदेश में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. इन दिनों ठंड और प्रदूषण अस्थमा और हार्ट के मरीजों (asthma and heart patients) के लिए बेहद खतरनाक है. डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी से पीड़ित अधिकतर रोगी सालभर बिना परेशानी के रहते हैं, लेकिन सर्दियों के चार महीनों नवंबर, दिसंबर, जनवरी और फरवरी में अस्पतालों में इनकी संख्या 60 फीसदी तक बढ़ जाती है. वर्तमान में ठंड बढ़ने से ओपीडी में सांस की बीमारी से परेशान मरीजों की संख्या बढ़ी है.

सिविल अस्पताल के वरिष्ठ चेस्ट फिजिशियन डॉ. एनबी सिंह ने कहा कि 'हर साल इस मौसम में अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्‍सट्रक्टिव पल्‍मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के मरीज अस्पताल की ओपीडी में बढ़ जाते हैं. मौजूदा समय में सांस से संबंधित मरीजों को खास दिक्कत हो रही है. इसके पीछे वायु प्रदूषण और धुंध मुख्य कारण हैं. अस्थमा और सीओपीडी में कोई खास अंतर नहीं होता है. उन्होंने बताया कि लंबे समय तक अस्थमा बने रहने से वह सीओपीडी का रूप ले लेता है. ज्यादातर 45 साल से अधिक उम्र के लोग सीओपीडी से ग्रसित होते हैं और 45 साल से कम उम्र के लोग अस्थमा के शिकार होते हैं. उन्होंने कहा कि फेफड़ों के कई रोग, जो सांस के रास्ते में रुकावट पैदा कर देते हैं, जिसके कारण सांस लेना कठिन हो जाता है. फेफड़ों में हवा की थैलियों (एल्वियोली) में सूजन (वातस्‍फीति) और लंबे समय से सांस की नली में सूजन (क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस) सीओपीडी के आम लक्षण हैं. सीओपीडी से फेफड़ों को हुए नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है.



उन्होंने बताया कि 'इस समय बाकी ओपीडी की तुलना में अस्थमा के मरीजों की भीड़ ज्यादा आ रही है. सुबह 10 से 12 बजे तक मरीजों की संख्या कम होती है, लेकिन 12 से 2 बजे तक मरीजों की संख्या काफी बढ़ जाती है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि सुबह के समय काफी अधिक कोहरा रहता है. धीरे-धीरे जब कोहरा कम होता है तब अस्पताल की ओपीडी में मरीजों की संख्या बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि अस्थमा और सीओपीडी के मरीजों को कोहरे से लकड़ी व कोयला से होने वाले धुएं से बचने की आवश्यकता है. इसी के साथ जितना हो सके उतना ठंड से बचे रहें. क्योंकि सर्दियों में ही अस्थमा के मरीजों को तमाम दिक्कतें परेशानी होने लगती हैं.'

बलरामपुर अस्पताल के चेस्ट फिजिशियन आनंद कुमार गुप्ता बताते हैं कि 'विश्व स्वास्थ्य संगठन का जो डाटा है और ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज का जो डाटा है उसके अनुसार 16 लाख लोगों की मौत भारत में वायु प्रदूषण से होती है. वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव 2.5 माइक्रोन पार्टिकल दूसरा 10 माइक्रोन पार्टिकल के दुष्परिणामों से होती है. सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण से लंग्स ही प्रभावित होता है. इसके साथ-साथ बहुत सी ऐसी बीमारियां हैं. अगर हम हार्ट की बात करें तो हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर है. अगर हम ब्रेन की बात करें तो ब्रेन स्ट्रोक यानी फालिज मार जाना है, माइग्रेन, नींद न आना है और अगर हम दूसरे अंगों की बात करें तो एसिडिटी से लेकर और छोटी-छोटी समस्या जैसे बालों का जल्दी सफेद हो जाना यह सब वायु प्रदूषण से लिंक है.'

सी कार्बन संस्था के अध्यक्ष वीपी श्रीवास्तव ने बताया कि 'आधुनिक जीवन में जैसे-जैसे उपकरण बढ़ रहे हैं, यातायात बढ़ रहा है, फैक्ट्री बढ़ रही हैं. मानव पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर पेड़ को काटकर विकास करने का प्रयास कर रहा है. इसी के चलते देश में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है. तमाम तरीके की फैक्ट्रियों से निकलने वाली जहरीली गैसें या ग्रीन गैसें कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसें निकल रही हैं. इनका उत्सर्जन हो रहा है. इन गैसों से वायु प्रदूषण हो रहा है.'

अस्थमा के लक्षण : तेजी से सांस लेना, बलगम के साथ खांसी आना, सीने में इंफेक्शन होना, सीने में जकड़न, लगातार कोल्ड फ्लू रहना, कमजोरी रहना.

ऐसे दूर करें सांस की दिक्कतें : डॉक्टर से सलाह लेकर बच्चों और बुजुर्गों को फ्लू का टीका जरूर लगवाएं, हमेशा गर्म कपड़े पहनें और बाहर निकलने पर नाक और मुंह को जरूर कवर करें, अस्थमा मरीजों के कमरे में अंदर धूपबत्ती न जलाएं, एक अध्ययन के मुताबिक, एक धूपबत्ती 100 सिगरेट पीने के बराबर नुकसान कर सकती है, घरों में अंगीठी, हीटर आदि के प्रदूषण से दमा के मरीज की तबीयत बिगड़ सकती है, दमा से पीड़ित लोगों को सप्ताह में 3 से 4 बार 45-45 मिनट के लिए व्यायाम बेहद आवश्यक है, बीड़ी-सिगरेट पीने से काला दमा ज्यादा होता है.

यह भी पढ़ें : मकान का नक्शा पास कराकर चल रहा था होटल, एलडीए ने किया सील

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लखनऊ : प्रदेश में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. इन दिनों ठंड और प्रदूषण अस्थमा और हार्ट के मरीजों (asthma and heart patients) के लिए बेहद खतरनाक है. डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी से पीड़ित अधिकतर रोगी सालभर बिना परेशानी के रहते हैं, लेकिन सर्दियों के चार महीनों नवंबर, दिसंबर, जनवरी और फरवरी में अस्पतालों में इनकी संख्या 60 फीसदी तक बढ़ जाती है. वर्तमान में ठंड बढ़ने से ओपीडी में सांस की बीमारी से परेशान मरीजों की संख्या बढ़ी है.

सिविल अस्पताल के वरिष्ठ चेस्ट फिजिशियन डॉ. एनबी सिंह ने कहा कि 'हर साल इस मौसम में अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्‍सट्रक्टिव पल्‍मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के मरीज अस्पताल की ओपीडी में बढ़ जाते हैं. मौजूदा समय में सांस से संबंधित मरीजों को खास दिक्कत हो रही है. इसके पीछे वायु प्रदूषण और धुंध मुख्य कारण हैं. अस्थमा और सीओपीडी में कोई खास अंतर नहीं होता है. उन्होंने बताया कि लंबे समय तक अस्थमा बने रहने से वह सीओपीडी का रूप ले लेता है. ज्यादातर 45 साल से अधिक उम्र के लोग सीओपीडी से ग्रसित होते हैं और 45 साल से कम उम्र के लोग अस्थमा के शिकार होते हैं. उन्होंने कहा कि फेफड़ों के कई रोग, जो सांस के रास्ते में रुकावट पैदा कर देते हैं, जिसके कारण सांस लेना कठिन हो जाता है. फेफड़ों में हवा की थैलियों (एल्वियोली) में सूजन (वातस्‍फीति) और लंबे समय से सांस की नली में सूजन (क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस) सीओपीडी के आम लक्षण हैं. सीओपीडी से फेफड़ों को हुए नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है.



उन्होंने बताया कि 'इस समय बाकी ओपीडी की तुलना में अस्थमा के मरीजों की भीड़ ज्यादा आ रही है. सुबह 10 से 12 बजे तक मरीजों की संख्या कम होती है, लेकिन 12 से 2 बजे तक मरीजों की संख्या काफी बढ़ जाती है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि सुबह के समय काफी अधिक कोहरा रहता है. धीरे-धीरे जब कोहरा कम होता है तब अस्पताल की ओपीडी में मरीजों की संख्या बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि अस्थमा और सीओपीडी के मरीजों को कोहरे से लकड़ी व कोयला से होने वाले धुएं से बचने की आवश्यकता है. इसी के साथ जितना हो सके उतना ठंड से बचे रहें. क्योंकि सर्दियों में ही अस्थमा के मरीजों को तमाम दिक्कतें परेशानी होने लगती हैं.'

बलरामपुर अस्पताल के चेस्ट फिजिशियन आनंद कुमार गुप्ता बताते हैं कि 'विश्व स्वास्थ्य संगठन का जो डाटा है और ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज का जो डाटा है उसके अनुसार 16 लाख लोगों की मौत भारत में वायु प्रदूषण से होती है. वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव 2.5 माइक्रोन पार्टिकल दूसरा 10 माइक्रोन पार्टिकल के दुष्परिणामों से होती है. सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण से लंग्स ही प्रभावित होता है. इसके साथ-साथ बहुत सी ऐसी बीमारियां हैं. अगर हम हार्ट की बात करें तो हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर है. अगर हम ब्रेन की बात करें तो ब्रेन स्ट्रोक यानी फालिज मार जाना है, माइग्रेन, नींद न आना है और अगर हम दूसरे अंगों की बात करें तो एसिडिटी से लेकर और छोटी-छोटी समस्या जैसे बालों का जल्दी सफेद हो जाना यह सब वायु प्रदूषण से लिंक है.'

सी कार्बन संस्था के अध्यक्ष वीपी श्रीवास्तव ने बताया कि 'आधुनिक जीवन में जैसे-जैसे उपकरण बढ़ रहे हैं, यातायात बढ़ रहा है, फैक्ट्री बढ़ रही हैं. मानव पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर पेड़ को काटकर विकास करने का प्रयास कर रहा है. इसी के चलते देश में वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है. तमाम तरीके की फैक्ट्रियों से निकलने वाली जहरीली गैसें या ग्रीन गैसें कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसें निकल रही हैं. इनका उत्सर्जन हो रहा है. इन गैसों से वायु प्रदूषण हो रहा है.'

अस्थमा के लक्षण : तेजी से सांस लेना, बलगम के साथ खांसी आना, सीने में इंफेक्शन होना, सीने में जकड़न, लगातार कोल्ड फ्लू रहना, कमजोरी रहना.

ऐसे दूर करें सांस की दिक्कतें : डॉक्टर से सलाह लेकर बच्चों और बुजुर्गों को फ्लू का टीका जरूर लगवाएं, हमेशा गर्म कपड़े पहनें और बाहर निकलने पर नाक और मुंह को जरूर कवर करें, अस्थमा मरीजों के कमरे में अंदर धूपबत्ती न जलाएं, एक अध्ययन के मुताबिक, एक धूपबत्ती 100 सिगरेट पीने के बराबर नुकसान कर सकती है, घरों में अंगीठी, हीटर आदि के प्रदूषण से दमा के मरीज की तबीयत बिगड़ सकती है, दमा से पीड़ित लोगों को सप्ताह में 3 से 4 बार 45-45 मिनट के लिए व्यायाम बेहद आवश्यक है, बीड़ी-सिगरेट पीने से काला दमा ज्यादा होता है.

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