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Global Investors Summit 2023 : रस्म अदायगी तक ही सीमित न रहे शहरों की साफ-सफाई और सजावट

जी 20 सम्मेलन और ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (Global Investors Summit 2023) को लेकर शहर को सजाया जा रहा है. सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. सुरक्षा व्यवस्था के भी पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण...

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Published : Feb 6, 2023, 9:47 AM IST

लखनऊ : जी 20 सम्मेलन और इन्वेस्टर्स समिट को लेकर प्रदेश को संवारने के लिए सरकार करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा रही है. कई शहरों में धरोहरों को सजाया जा रहा है, सड़कों के किनारे गमलों और फूल-पत्तियों की व्यवस्था हो रही है, साफ-सफाई के विशेष प्रबंध किए जा रहे हैं. ‌एक तरह से शहर की सूरत बदलने की कोशिश है. सरकार चाहती है कि विदेश से जो मेहमान सम्मेलन में हिस्सा लेने इन शहरों में आएं वह एक अच्छे और बदले हुए भारत की तस्वीर लेकर ही लौटें. निस्संदेह यह एक अच्छी पहल है. स्वच्छता और सुंदरता किसे अच्छी नहीं लगती, लेकिन यह स्थाई व्यवस्था होनी चाहिए. सिर्फ इवेंट के समय साफ-सफाई और सजावट तो खुद को धोखा देने जैसा है. हमारे नगर निगम और नगर पंचायतें पुराने ढर्रे पर ही काम कर रही हैं, लोगों की फितरत भी नहीं बदलती.

हजरतगंज (फाइल फोटो)
हजरतगंज (फाइल फोटो)




पूर्व में ऐसे कई अनुभव रहे हैं, जब सरकारों ने किसी बड़े कार्यक्रम अथवा इवेंट को लेकर शहरों के सजावट पर बड़ी धनराशि खर्च की, लेकिन बाद में उसका रख-रखाव नहीं किया गया और चीजें नष्ट होती चली गईं. 2007 में मायावती की सरकार बनी तो उन्होंने राजधानी लखनऊ सहित कई शहरों को चमकाने का काम किया. उन्होंने शहर के कई पार्क और स्मारक दिए जिनमें सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च हुए. यह स्मारक आज भी लखनऊ की शान ओ शौकत और खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. यह बात और है कि धीरे-धीरे कई निर्माण बिगड़ने लगे. पत्थरों की कई स्थानों पर चोरियां हो रही हैं. राजधानी लखनऊ के हृदय स्थल माने जाने वाले हजरतगंज का कायाकल्प भी मायावती के समय हुआ था. इस दौरान गंज की सभी इमारतें एक रंग में रंगी गई थीं. सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के बाहर लगे बोर्ड ब्लैक एंड वाइट एक जैसे लगाए गए थे. लोगों के घूमने और बैठने के लिए बेहतरीन लाइटें और बेंचें लगाई गई थीं. आज यह सजावट, बेंचें और लाइटें देखरेख के अभाव में धीरे-धीरे खराब हो रही हैं. इनके नियमित रूप से रख-रखाव की ओर किसी का ध्यान नहीं है. होना यह चाहिए कि आगे आने वाली सरकार भी सिर्फ अपनी योजनाओं तक ही सीमित न रहें, बल्कि जिन योजनाओं पर पहले पैसा खर्च किया गया है, उनकी भी देखभाल करें.

हजरतगंज (फाइल फोटो)
हजरतगंज (फाइल फोटो)




इससे पहले भी प्रदेश में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और लालजी टंडन नगर विकास मंत्री हुआ करते थे, तब भी पुराने लखनऊ और खास तौर पर कुड़िया घाट क्षेत्र में काफी काम हुआ था. आज कुड़िया घाट से तमाम पत्थर चोरी हो रहे हैं. लाइटें तक उखाड़ ले गए हैं लोग. टंडन जी के समय हुए कार्यों का हाल देखरेख के अभाव में बुरा है. 2012 में मुख्यमंत्री बने अखिलेश यादव ने साइकिल पथ बनवाए थे, जिस पर सैकड़ों करोड़ की लागत आई थी. 10 साल में ही यह साइकिल पथ इतिहास की बात हो गए हैं. ‌ एक-दो स्थानों को छोड़ दें तो कहीं भी साइकिल पद का नामोनिशान नहीं रह गया है. अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री रहते पुराने लखनऊ में भी काफी काम किया था. आज घंटाघर के आसपास लगाई गई तमाम लाइटें चोरी हो चुकी हैं. यदि वर्तमान सरकार इस ओर ध्यान देती और सरकारी संपत्ति की सुरक्षा के पर्याप्त प्रबंध करती, तो शायद यह चोरियां रुकतीं और दोबारा सजावट की जरूरत नहीं पड़ती. खेद है कि सरकार इस ओर लगातार उदासीन बनी हुई है. स्वाभाविक है कि जो पैसा आज खर्च हो रहा है यदि उसकी देखरेख नहीं हुई तो वह भी बर्बाद और बे मकसद ही साबित होगा.

हजरतगंज (फाइल फोटो)
हजरतगंज (फाइल फोटो)



इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक और समाजसेवी डॉ आलोक राय कहते हैं 'सरकार कोई भी हो पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा खर्च किए गए सरकारी धन और निर्माणों की देखरेख और रखरखाव का जिम्मा वर्तमान सरकार का होता है. यदि सरकार यह काम नहीं करती तो समझिए कि वह जनता के पैसे को बर्बाद कर रही है, हालांकि सब कुछ सरकार पर ही नहीं छोड़ा जाना चाहिए. लोगों को भी यह समझना चाहिए कि सरकारी धन यह संपत्ति उनकी अपनी ही संपत्ति है. आखिर चोरियां और इन संपत्तियों में तोड़-फोड़ हमारे समाज के ही लोग तो करते हैं. ऐसे लोगों में आखिर जागरूकता कब आएगी. नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों को भी अपनी शैली बदलने की जरूरत है. साफ-सफाई नियमित रूप से हो. कूड़ा निस्तारण का प्रबंध बेहतर बने, इस पर नियमित रूप से काम करने की जरूरत है.' डॉक्टर राय कहते हैं 'यदि सरकारें अपना दायित्व समझें और नागरिक अपना तो समस्या का निराकरण बहुत आसान हो जाता है. फिर शहरों को साफ-सुथरा और सुंदर बनाना आसान हो जाएगा.'

यह भी पढ़ें : Ramcharit Manas की प्रतियां जलाने वाले दो आरोपियों पर लगा NSA

लखनऊ : जी 20 सम्मेलन और इन्वेस्टर्स समिट को लेकर प्रदेश को संवारने के लिए सरकार करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा रही है. कई शहरों में धरोहरों को सजाया जा रहा है, सड़कों के किनारे गमलों और फूल-पत्तियों की व्यवस्था हो रही है, साफ-सफाई के विशेष प्रबंध किए जा रहे हैं. ‌एक तरह से शहर की सूरत बदलने की कोशिश है. सरकार चाहती है कि विदेश से जो मेहमान सम्मेलन में हिस्सा लेने इन शहरों में आएं वह एक अच्छे और बदले हुए भारत की तस्वीर लेकर ही लौटें. निस्संदेह यह एक अच्छी पहल है. स्वच्छता और सुंदरता किसे अच्छी नहीं लगती, लेकिन यह स्थाई व्यवस्था होनी चाहिए. सिर्फ इवेंट के समय साफ-सफाई और सजावट तो खुद को धोखा देने जैसा है. हमारे नगर निगम और नगर पंचायतें पुराने ढर्रे पर ही काम कर रही हैं, लोगों की फितरत भी नहीं बदलती.

हजरतगंज (फाइल फोटो)
हजरतगंज (फाइल फोटो)




पूर्व में ऐसे कई अनुभव रहे हैं, जब सरकारों ने किसी बड़े कार्यक्रम अथवा इवेंट को लेकर शहरों के सजावट पर बड़ी धनराशि खर्च की, लेकिन बाद में उसका रख-रखाव नहीं किया गया और चीजें नष्ट होती चली गईं. 2007 में मायावती की सरकार बनी तो उन्होंने राजधानी लखनऊ सहित कई शहरों को चमकाने का काम किया. उन्होंने शहर के कई पार्क और स्मारक दिए जिनमें सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च हुए. यह स्मारक आज भी लखनऊ की शान ओ शौकत और खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. यह बात और है कि धीरे-धीरे कई निर्माण बिगड़ने लगे. पत्थरों की कई स्थानों पर चोरियां हो रही हैं. राजधानी लखनऊ के हृदय स्थल माने जाने वाले हजरतगंज का कायाकल्प भी मायावती के समय हुआ था. इस दौरान गंज की सभी इमारतें एक रंग में रंगी गई थीं. सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के बाहर लगे बोर्ड ब्लैक एंड वाइट एक जैसे लगाए गए थे. लोगों के घूमने और बैठने के लिए बेहतरीन लाइटें और बेंचें लगाई गई थीं. आज यह सजावट, बेंचें और लाइटें देखरेख के अभाव में धीरे-धीरे खराब हो रही हैं. इनके नियमित रूप से रख-रखाव की ओर किसी का ध्यान नहीं है. होना यह चाहिए कि आगे आने वाली सरकार भी सिर्फ अपनी योजनाओं तक ही सीमित न रहें, बल्कि जिन योजनाओं पर पहले पैसा खर्च किया गया है, उनकी भी देखभाल करें.

हजरतगंज (फाइल फोटो)
हजरतगंज (फाइल फोटो)




इससे पहले भी प्रदेश में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और लालजी टंडन नगर विकास मंत्री हुआ करते थे, तब भी पुराने लखनऊ और खास तौर पर कुड़िया घाट क्षेत्र में काफी काम हुआ था. आज कुड़िया घाट से तमाम पत्थर चोरी हो रहे हैं. लाइटें तक उखाड़ ले गए हैं लोग. टंडन जी के समय हुए कार्यों का हाल देखरेख के अभाव में बुरा है. 2012 में मुख्यमंत्री बने अखिलेश यादव ने साइकिल पथ बनवाए थे, जिस पर सैकड़ों करोड़ की लागत आई थी. 10 साल में ही यह साइकिल पथ इतिहास की बात हो गए हैं. ‌ एक-दो स्थानों को छोड़ दें तो कहीं भी साइकिल पद का नामोनिशान नहीं रह गया है. अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री रहते पुराने लखनऊ में भी काफी काम किया था. आज घंटाघर के आसपास लगाई गई तमाम लाइटें चोरी हो चुकी हैं. यदि वर्तमान सरकार इस ओर ध्यान देती और सरकारी संपत्ति की सुरक्षा के पर्याप्त प्रबंध करती, तो शायद यह चोरियां रुकतीं और दोबारा सजावट की जरूरत नहीं पड़ती. खेद है कि सरकार इस ओर लगातार उदासीन बनी हुई है. स्वाभाविक है कि जो पैसा आज खर्च हो रहा है यदि उसकी देखरेख नहीं हुई तो वह भी बर्बाद और बे मकसद ही साबित होगा.

हजरतगंज (फाइल फोटो)
हजरतगंज (फाइल फोटो)



इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक और समाजसेवी डॉ आलोक राय कहते हैं 'सरकार कोई भी हो पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा खर्च किए गए सरकारी धन और निर्माणों की देखरेख और रखरखाव का जिम्मा वर्तमान सरकार का होता है. यदि सरकार यह काम नहीं करती तो समझिए कि वह जनता के पैसे को बर्बाद कर रही है, हालांकि सब कुछ सरकार पर ही नहीं छोड़ा जाना चाहिए. लोगों को भी यह समझना चाहिए कि सरकारी धन यह संपत्ति उनकी अपनी ही संपत्ति है. आखिर चोरियां और इन संपत्तियों में तोड़-फोड़ हमारे समाज के ही लोग तो करते हैं. ऐसे लोगों में आखिर जागरूकता कब आएगी. नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों को भी अपनी शैली बदलने की जरूरत है. साफ-सफाई नियमित रूप से हो. कूड़ा निस्तारण का प्रबंध बेहतर बने, इस पर नियमित रूप से काम करने की जरूरत है.' डॉक्टर राय कहते हैं 'यदि सरकारें अपना दायित्व समझें और नागरिक अपना तो समस्या का निराकरण बहुत आसान हो जाता है. फिर शहरों को साफ-सुथरा और सुंदर बनाना आसान हो जाएगा.'

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