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बस्तियों में रहने वाले बच्चे स्कूल से हो रहे दूर, लोहिया विश्वविद्यालय के छात्रों ने तैयार की रिपोर्ट

कोरोना के बाद राजधानी के गरीब बस्तियों में रहने वाले बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. इन बस्तियों में रह रहे परिवारों अपने बच्चों को बढ़ाई से दूर कर उन्हें किसी न किसी छोटे-मोटे कामों में लगा दिया है. इन गरीब बस्तियों में रहने वाले 12 से 14 वर्ष के बच्चों को उनके अभिभावक स्कूल भेजने के बजाय काम पर भेजने को प्राथमिकता देते हैं.

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Published : Nov 30, 2022, 9:28 AM IST

लखनऊ: कोरोना के बाद राजधानी के गरीब बस्तियों में रहने वाले बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. इन बस्तियों में रह रहे परिवारों अपने बच्चों को बढ़ाई से दूर कर उन्हें किसी न किसी छोटे-मोटे कामों में लगा दिया है. इन गरीब बस्तियों में रहने वाले 12 से 14 वर्ष के बच्चों को उनके अभिभावक स्कूल भेजने के बजाय काम पर भेजने को प्राथमिकता देते हैं. जिससे तंगहाल परिवार को आर्थिक सहयोग मिल सके, इसलिए बड़ी संख्या में अभिभावक बच्चों को स्कूल नहीं भेजते. ऐसे बच्चे शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं. वहीं ऐसे भी परिवार हैं जो बच्चे का प्रवेश तो सरकारी स्कूल में करा देते हैं, लेकिन स्कूल भेजते नहीं. ऐसे कई तथ्य डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के मिलेनियम फेलोज द्वारा तैयार की गई शिक्षणम रिपोर्ट में सामने आए हैं.

यूनाइटेड नेशंस मिलेनियम कैंपस नेटवर्क (United Nations Millennium Campus Network) एवं ग्लोबल एकेडमिक इंपैक्ट (Global Academic Impact) की ओर से विधि विश्वविद्यालय के 25 छात्रों का चयन फेलोशिप के लिए किया गया था. जिसके तहत इन छात्र-छात्राओं को क्वालिटी एजुकेशन के लिए विश्वविद्यालय के पांच किलोमीटर में आने वाले प्राथमिक स्कूलों की गुणवत्ता परखने के साथ ही गरीब बस्तियों में रहने वाले बच्चों के शिक्षा के स्तर को भी जांचकर रिपोर्ट तैयार करनी थी. विश्वविद्यालय की शिक्षिका डॉ. अलका मिश्रा (University teacher Dr. Alka Mishra) के निर्देशन में रिपोर्ट तैयार की गई है.

डॉ. अलका मिश्रा (Dr. Alka Mishra) ने बताया कि रिपोर्ट में सामने आया कि दो से तीन किलोमीटर की रेंज में बसी रिक्शा कॉलोनी समेत अन्य आसपास के क्षेत्रों में रह रहे गरीब बच्चे अपेक्षित संसाधनों के कारण सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में दाखिला लेने के बावजूद भी स्कूल नहीं जाते. करीब 40 से 50 बच्चों द्वारा सामूहिक चर्चा में यह बात सामने आयी कि ज्यादातर प्राथमिक विद्यालय जिनमें इन बच्चों के दाखिले हैं. वह या तो मलिहाबाद या उन्नाव या अन्य सुदूर क्षेत्रों में स्थित हैं. माना जा सकता है कि अपेक्षित आर्थिक सहायता एवं स्थानीय ट्रांसपोर्ट न उपलब्ध होने के कारण यह बच्चे स्कूल नहीं जाते.

मिलेनियम फैलोशिप (Millennium Fellowship) प्राप्त करने वाले प्रोजेक्ट के कैम्पस निदेशक हेरंब वर्मा ने बताया कि यह गरीब बच्चे आशियाना स्थित आसपास के चर्च, घरों आदि में झाड़ू, पोछा, बर्तन, साफ-सफाई आदि के काम करते हैं एवं अपने परिवार को आर्थिक मदद करते हैं. इनके परिवार 13 से 14 साल की उम्र तक इनसे आर्थिक सहायता की अपेक्षा करता है. फेलोशिप पाने वाले छात्रों ने प्राथमिक स्कूल और गरीब बस्तियों में 60 पाठशालाएं चलायीं. इनमें उन बच्चों को लाया गया जो स्कूली शिक्षा से दूर हैं. उनसे विधि विवि के मिलेनियम फेलोज ने शिक्षा शिक्षण संबंधी संवाद, चर्चा और कक्षाओं की पाठशाला लगाई. फेलोशिप छात्र सत्यम शिवम ने बताया कि उन्होंने कक्षा 5 तक में पढ़ने वाले इन बच्चों के लिए एक आवश्यक पाठ्यक्रम भी तैयार किया है.

यह भी पढ़ें : यूके के साथ मिलकर होगा इनवेस्टिगेटिव ट्रीटमेंट, केजीएमयू में शोध के जरिए हो रहा इलाज

लखनऊ: कोरोना के बाद राजधानी के गरीब बस्तियों में रहने वाले बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. इन बस्तियों में रह रहे परिवारों अपने बच्चों को बढ़ाई से दूर कर उन्हें किसी न किसी छोटे-मोटे कामों में लगा दिया है. इन गरीब बस्तियों में रहने वाले 12 से 14 वर्ष के बच्चों को उनके अभिभावक स्कूल भेजने के बजाय काम पर भेजने को प्राथमिकता देते हैं. जिससे तंगहाल परिवार को आर्थिक सहयोग मिल सके, इसलिए बड़ी संख्या में अभिभावक बच्चों को स्कूल नहीं भेजते. ऐसे बच्चे शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं. वहीं ऐसे भी परिवार हैं जो बच्चे का प्रवेश तो सरकारी स्कूल में करा देते हैं, लेकिन स्कूल भेजते नहीं. ऐसे कई तथ्य डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के मिलेनियम फेलोज द्वारा तैयार की गई शिक्षणम रिपोर्ट में सामने आए हैं.

यूनाइटेड नेशंस मिलेनियम कैंपस नेटवर्क (United Nations Millennium Campus Network) एवं ग्लोबल एकेडमिक इंपैक्ट (Global Academic Impact) की ओर से विधि विश्वविद्यालय के 25 छात्रों का चयन फेलोशिप के लिए किया गया था. जिसके तहत इन छात्र-छात्राओं को क्वालिटी एजुकेशन के लिए विश्वविद्यालय के पांच किलोमीटर में आने वाले प्राथमिक स्कूलों की गुणवत्ता परखने के साथ ही गरीब बस्तियों में रहने वाले बच्चों के शिक्षा के स्तर को भी जांचकर रिपोर्ट तैयार करनी थी. विश्वविद्यालय की शिक्षिका डॉ. अलका मिश्रा (University teacher Dr. Alka Mishra) के निर्देशन में रिपोर्ट तैयार की गई है.

डॉ. अलका मिश्रा (Dr. Alka Mishra) ने बताया कि रिपोर्ट में सामने आया कि दो से तीन किलोमीटर की रेंज में बसी रिक्शा कॉलोनी समेत अन्य आसपास के क्षेत्रों में रह रहे गरीब बच्चे अपेक्षित संसाधनों के कारण सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में दाखिला लेने के बावजूद भी स्कूल नहीं जाते. करीब 40 से 50 बच्चों द्वारा सामूहिक चर्चा में यह बात सामने आयी कि ज्यादातर प्राथमिक विद्यालय जिनमें इन बच्चों के दाखिले हैं. वह या तो मलिहाबाद या उन्नाव या अन्य सुदूर क्षेत्रों में स्थित हैं. माना जा सकता है कि अपेक्षित आर्थिक सहायता एवं स्थानीय ट्रांसपोर्ट न उपलब्ध होने के कारण यह बच्चे स्कूल नहीं जाते.

मिलेनियम फैलोशिप (Millennium Fellowship) प्राप्त करने वाले प्रोजेक्ट के कैम्पस निदेशक हेरंब वर्मा ने बताया कि यह गरीब बच्चे आशियाना स्थित आसपास के चर्च, घरों आदि में झाड़ू, पोछा, बर्तन, साफ-सफाई आदि के काम करते हैं एवं अपने परिवार को आर्थिक मदद करते हैं. इनके परिवार 13 से 14 साल की उम्र तक इनसे आर्थिक सहायता की अपेक्षा करता है. फेलोशिप पाने वाले छात्रों ने प्राथमिक स्कूल और गरीब बस्तियों में 60 पाठशालाएं चलायीं. इनमें उन बच्चों को लाया गया जो स्कूली शिक्षा से दूर हैं. उनसे विधि विवि के मिलेनियम फेलोज ने शिक्षा शिक्षण संबंधी संवाद, चर्चा और कक्षाओं की पाठशाला लगाई. फेलोशिप छात्र सत्यम शिवम ने बताया कि उन्होंने कक्षा 5 तक में पढ़ने वाले इन बच्चों के लिए एक आवश्यक पाठ्यक्रम भी तैयार किया है.

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