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छतर मंजिल को नहीं मिल रही निर्माण की राह - लखनऊ हिंदी खबरें

यूं ही नहीं लखनऊ नवाबों का शहर कहलाता है, यहां की इमारतों ने आज भी इसकी विरासत को बचाकर रखा है. पुराने लखनऊ में कदम रखते हैं तो यहां की ऐतिहासिक इमारतें और उनकी कहानियां आपको सालों पीछे ले जाती हैं. यहां आने वाले लोग यहां के इतिहास में कहीं गुम हो जाते हैं. चाहे रूमी दरवाजा हो या फिर बड़ा इमामबाड़ा सबकी अपनी अलग ही कहानियां हैं. पेश है इन इमारतों पर एक खास रिपोर्ट...

लखनऊ की छत्तर मंजिल
लखनऊ की छत्तर मंजिल
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Published : Feb 26, 2021, 5:57 PM IST

लखनऊ: राजधानी में नवाबों की ऐतिहासिक इमारतें आज भी अपने अंदर कई राज छिपाए हुए हैं. इनमें से कुछ इमारतें तो लखनऊ की पहचान बन गई हैं. रूमी दरवाजा, भूलभुलैया ऐसी ही इमारत हैं जो लखनऊ की कहानी बताती हैं. वहीं, कुछ इमारतें ऐसी भी हैं जिनका इतिहास तो बहुत बड़ा है, लेकिन पुरातत्व विभाग और संस्कृति विभाग ने इन इमारतों को भुला दिया है. इसके कारण अब वो धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो रही हैं. छतर मंजिल भवन का निर्माण कार्य नवाब सआदत अली खान ने अपनी हिंदू मां छतर कंवर की याद में शुरू करवाया था, लेकिन निर्माण कार्य उनके पुत्र गाजीउद्दीन हैदर शाह ने पूरा करवाया.

लखनऊ की कहानी कहती इमारतें

रहस्यों से भरी है छतर मंजिल की इमारत

शहादत खान द्वारा अपनी मां छतरपुर के नाम से बनवाई गई छतर मंजिल भले ही खंडहर में तब्दील होती जा रही हो, लेकिन इमारत आज भी रहस्य से भरी हुई है. छतर मंजिल के नीचे एक तहखाना था. इसका रास्ता गोमती नदी में निकलता था. इस तहखाने में पानी भरा रहता था. इससे नाव के जरिए गोमती नदी से बाहर शहरों में जाया जाता था. करीब दो साल पहले जब इस इमारत के पीछे खुदाई हुई, तो यह बात सच साबित हुई. तहखाने में गोमती से जुड़ती हुई सुरंग और उसमें लगे बड़े-बड़े लोहे के कुंडे दिखाई देते हैं. नाव के सहारे नवाब और उनकी बेगम आया-जाया करती थीं.

इमारत में फैला है सुरंगों का जाल

नवाबों की राजधानी लखनऊ छतर मंजिल में अब तक तीन सुरंगों का पता चल चुका है. यह सुरंगे नवाबों के महलों को आपस में जोड़ने के लिए बनाई गई थीं. गोमती नदी के तट पर 220 साल पुराने छतर मंजिल पैलेस के स्थान पर खुदाई चल रही थी. तभी वहां 42 फीट लंबी और 11 फीट चौड़ी सुरंगे मिलीं, तो वहीं गोंडेला नाव भी मिली जो नवाबों के समय की है.

अभी दरवाजें हैं बंद

इतिहासकार योगेश प्रवीन बताते हैं कि राजधानी में सुंरगों का जाल फैला हुआ है. नवाबों के समय में यह सुरंगे बनाई गईं. इन सुरंगों से ही उनकी बेगम एक महल से दूसरे महल जाया करती थीं. छतर मंजिल, कोठी दर्शन विलास, बारादरी समेत कई ऐतिहासिक इमारतों तक यहां से सुरंग जाती है. मौजूदा समय में सभी सुरंगों के दरवाजे बंद हैं.



क्या है नाम का रहस्य

इतिहासकार योगेश प्रवीन बताते हैं कि सहादत खान ने अपनी मां छतर कुंवर के लिए इस इमारत का निर्माण शुरू कराया था. इसे पूरा कराने का काम उनके पुत्र गाजीपुर हैदर ने किया. यह इमारत 1810 में बनकर तैयार हुई. इमारत की छत पर एक गुंबदनुमा भवन है. जिस पर छतरी बनी हुई है. जो काफी सुसज्जित है. छतरी की वजह से ही इसका नाम छतर मंजिल पड़ा.




खंडहर में तब्दील हो गई है छतर मंजिल

छतर मंजिल का इतिहास चाहे जितना भी स्वर्णिम हो, लेकिन यह इमारत अब पुरातत्व विभाग के लिए एक ऐतिहासिक इमारत बनके रह गई है, जबकि इस इमारत को संरक्षित करके पर्यटकों को इसके इतिहास को जानने का अवसर देना चाहिए था, लेकिन कुछ दिन पहले सीडीआरआई का कार्यालय इसमें खोल दिया गया था. जिस तरीके से इस इमारत में कुछ सुरंगे और रहस्यमई चीजें सामने आईं तो फिर कार्यालय को खाली करा दिया गया. फिलहाल आज यह इमारत वीरान पड़ी हुई है. संरक्षण के अभाव में अब यह इमारत अपने स्वर्णिम दौर की इतिहास को आज भी समेटे हुए है. समय के साथ-साथ अब यह खंडहर में तब्दील हो रही है.

लखनऊ: राजधानी में नवाबों की ऐतिहासिक इमारतें आज भी अपने अंदर कई राज छिपाए हुए हैं. इनमें से कुछ इमारतें तो लखनऊ की पहचान बन गई हैं. रूमी दरवाजा, भूलभुलैया ऐसी ही इमारत हैं जो लखनऊ की कहानी बताती हैं. वहीं, कुछ इमारतें ऐसी भी हैं जिनका इतिहास तो बहुत बड़ा है, लेकिन पुरातत्व विभाग और संस्कृति विभाग ने इन इमारतों को भुला दिया है. इसके कारण अब वो धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो रही हैं. छतर मंजिल भवन का निर्माण कार्य नवाब सआदत अली खान ने अपनी हिंदू मां छतर कंवर की याद में शुरू करवाया था, लेकिन निर्माण कार्य उनके पुत्र गाजीउद्दीन हैदर शाह ने पूरा करवाया.

लखनऊ की कहानी कहती इमारतें

रहस्यों से भरी है छतर मंजिल की इमारत

शहादत खान द्वारा अपनी मां छतरपुर के नाम से बनवाई गई छतर मंजिल भले ही खंडहर में तब्दील होती जा रही हो, लेकिन इमारत आज भी रहस्य से भरी हुई है. छतर मंजिल के नीचे एक तहखाना था. इसका रास्ता गोमती नदी में निकलता था. इस तहखाने में पानी भरा रहता था. इससे नाव के जरिए गोमती नदी से बाहर शहरों में जाया जाता था. करीब दो साल पहले जब इस इमारत के पीछे खुदाई हुई, तो यह बात सच साबित हुई. तहखाने में गोमती से जुड़ती हुई सुरंग और उसमें लगे बड़े-बड़े लोहे के कुंडे दिखाई देते हैं. नाव के सहारे नवाब और उनकी बेगम आया-जाया करती थीं.

इमारत में फैला है सुरंगों का जाल

नवाबों की राजधानी लखनऊ छतर मंजिल में अब तक तीन सुरंगों का पता चल चुका है. यह सुरंगे नवाबों के महलों को आपस में जोड़ने के लिए बनाई गई थीं. गोमती नदी के तट पर 220 साल पुराने छतर मंजिल पैलेस के स्थान पर खुदाई चल रही थी. तभी वहां 42 फीट लंबी और 11 फीट चौड़ी सुरंगे मिलीं, तो वहीं गोंडेला नाव भी मिली जो नवाबों के समय की है.

अभी दरवाजें हैं बंद

इतिहासकार योगेश प्रवीन बताते हैं कि राजधानी में सुंरगों का जाल फैला हुआ है. नवाबों के समय में यह सुरंगे बनाई गईं. इन सुरंगों से ही उनकी बेगम एक महल से दूसरे महल जाया करती थीं. छतर मंजिल, कोठी दर्शन विलास, बारादरी समेत कई ऐतिहासिक इमारतों तक यहां से सुरंग जाती है. मौजूदा समय में सभी सुरंगों के दरवाजे बंद हैं.



क्या है नाम का रहस्य

इतिहासकार योगेश प्रवीन बताते हैं कि सहादत खान ने अपनी मां छतर कुंवर के लिए इस इमारत का निर्माण शुरू कराया था. इसे पूरा कराने का काम उनके पुत्र गाजीपुर हैदर ने किया. यह इमारत 1810 में बनकर तैयार हुई. इमारत की छत पर एक गुंबदनुमा भवन है. जिस पर छतरी बनी हुई है. जो काफी सुसज्जित है. छतरी की वजह से ही इसका नाम छतर मंजिल पड़ा.




खंडहर में तब्दील हो गई है छतर मंजिल

छतर मंजिल का इतिहास चाहे जितना भी स्वर्णिम हो, लेकिन यह इमारत अब पुरातत्व विभाग के लिए एक ऐतिहासिक इमारत बनके रह गई है, जबकि इस इमारत को संरक्षित करके पर्यटकों को इसके इतिहास को जानने का अवसर देना चाहिए था, लेकिन कुछ दिन पहले सीडीआरआई का कार्यालय इसमें खोल दिया गया था. जिस तरीके से इस इमारत में कुछ सुरंगे और रहस्यमई चीजें सामने आईं तो फिर कार्यालय को खाली करा दिया गया. फिलहाल आज यह इमारत वीरान पड़ी हुई है. संरक्षण के अभाव में अब यह इमारत अपने स्वर्णिम दौर की इतिहास को आज भी समेटे हुए है. समय के साथ-साथ अब यह खंडहर में तब्दील हो रही है.

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