लखनऊ : लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रों को आधुनिक के साथ अब प्राचीन भारतीय विज्ञान भी पढ़ने का मौका मिलेगा. उन्हें पढ़ाया जाएगा कि जिसे बाद में पाइथागोरस प्रमेय कहा जाने लगा वह वास्तव में शुल्बसूत्र है. छात्रों को ऐसे ही प्राचीन भारतीय विज्ञान से रूबरू कराने के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय के भौतिक विज्ञान के सिलेबस में बदलाव किया जा रहा है.
सभी विषयों में होना है बदलाव
नई शिक्षा नीति 2020 के प्रावधानों के मद्देनजर लखनऊ विश्वविद्यालय के स्नातक और परास्नातक पाठ्यक्रम में बदलाव करने की प्रक्रिया चल रही है. स्नातक पाठ्यक्रमों में बदलाव करते हुए बीते सत्र में चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम को लागू किया जा चुका है. इसी तरह स्नातक में 4 वर्षीय पाठ्यक्रम लाया जा रहा है. छात्रों को मल्टी एंट्री- एग्जिट का लाभ मिलेगा. इसके तहत 1 साल की पढ़ाई पूरी कर कर एग्जिट पर सर्टिफिकेट, 2 साल में डिप्लोमा, 3 साल में डिग्री और 4 साल की पढ़ाई पूरी करने पर बैचलर इन रिसर्च की डिग्री दी जाएगी.
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भौतिक विज्ञान में यह हो रहे बदलाव
भौतिक विज्ञान विभाग ने अपने पाठ्यक्रम के प्रथम प्रश्न पत्र में प्राचीन समय में उदघाटित भारतीय विज्ञान, जो आज के विज्ञान का आधार भी है और अनेक स्थानों पर यथावत खरा भी है, प्राचीन एवं आधुनिक भारतीय वैज्ञानिकों एवं ग्रन्थों का परिचय, भारतीय ज्यामिति जो विश्व में प्राचीनतम है, शुल्बसूत्र, भारत मे जन्मी प्रमेय, जिसे बाद में पाइथागोरस प्रमेय कहा जाने लगा, जैसे विषयों से परिचय को सम्मिलित करने का प्रस्ताव रखा गया है.
पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन सर्वप्रथम 'आर्यभटियम' में तथा गुरुत्व के विषय में 'सूर्य सिद्धांत' में देखने को मिलता है. ग्रहों की गति, पाई का ग्यारह दशमलव स्थान तक शुध्द मान, घात श्रेढी, द्वयंक पद्धति जिसे बाइनरी नंबर कहा जाता है, जैसे विषयों से छात्रों का परिचय संभव हो सकेगा. अति प्राचीन ऐतिहासिक निर्माण में विज्ञान' को भी प्रस्तावित किया गया है. इसके अतिरिक्त 4 नए प्रश्नपत्र, नैनोटेक्नोलॉजी, फाइबर ऑप्टिक्स, कंप्यूटर सिमुलेशन , प्लाज्मा एवं स्पेस साइंस को भी सम्मिलित किया गया है.