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राज्य संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया आजाद का अस्थि-कलश

चौरी-चौरा कांड के 100 साल बीत जाने पर शहीद हुए क्रांतिकारियों की याद में पूरा देश शताब्दी वर्ष मना रहा है. इसी क्रम में गुरुवार को राजधानी लखनऊ के राज्य संग्रहालय में अमर शहीद चंद्रशेखर का अस्थि-कलश दर्शन के लिए रखा गया, जिसे पर्यटक देखने के लिए आ रहे हैं.

आजाद का अस्थि-कलश
आजाद का अस्थि-कलश
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Published : Feb 4, 2021, 11:03 PM IST

लखनऊः चौरी-चौरा में शहीद हुए अमर शहीदों की गाथा को याद करते हुए आज पूरा देश वीर सपूतों को नमन कर रहा है. इसी क्रम में आज लखनऊ के राज्य संग्रहालय में चंद्रशेखर आजाद का अस्थि-कलश रखा गया है, जिसका पर्यटक दर्शन कर रहे हैं और शीश झुका रहे हैं.

राज्य संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया आजाद का अस्थि-कलश.

विद्यापीठ से निकली थी शोभा यात्रा
अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के अंतिम संस्कार के बाद उनके असली अवशेषों का कुछ अंश स्वर्गीय विनायक मिश्र ने अपने पास रख लिया था. काफी समय तक उनके यहां सुरक्षित रहा. इसके बाद अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के अस्थि कलश की ऐतिहासिक शोभा यात्रा 1 अगस्त 1976 को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी से प्रारंभ की गई, जो 10 अगस्त 1976 को राज्य संग्रहालय लखनऊ में आकर समाप्त हुई. तभी से आजाद का अस्थि कलश लखनऊ के राज्य संग्रहालय में रखा गया है.

दर्शन के लिए रखा गया अस्थि कलश
गुरुवार को चौरी-चौरा के अमर शहीदों को नमन करते हुए संग्रहालय में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का अस्थि-कलश आम लोगों के दर्शन के लिए रखा गया है. 27 फरवरी 1931 को स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए इस महान भारतीय सपूत ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. उनका त्याग और बलिदान प्रत्येक देशवासी के लिए अनुकरणीय है. उनकी स्मृति में हम सभी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं.

पुलिस थाने में लगाई थी आग
चौरी-चौरा में 4 फरवरी 1922 को आजादी के लिए वीर जवानों ने अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेते हुए, पुलिस थाने में आग लगा दी थी. इस घटना में 23 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी. इसके बाद कई क्रांतिकारियों को फांसी और आजीवन कारावास की सजा हुई थी. यह घटना चौरी-चौरा जनाक्रोश के रूप में जानी जाती है. अब शहीदों के इस शौर्य गाथा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा. अब विद्यार्थी इस जन क्रांति में शहीद हुए वीरों के इतिहास को भी पढ़ सकेंगे.

19 क्रांतिकारियों की हुई थी फांसी
इस प्रकरण में 225 लोगों को आरोपी बनाकर 172 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. पंडित मदन मोहन मालवीय ने मुकदमा लड़ा और 151 लोगों को फांसी की सजा से बचा लिया. इसके बावजूद 19 लोगों को 1923 में फांसी दे दी गई. आंदोलन को आज 100 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं. इसी के उपलक्ष में आज शहीदों की याद में पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है.

लखनऊः चौरी-चौरा में शहीद हुए अमर शहीदों की गाथा को याद करते हुए आज पूरा देश वीर सपूतों को नमन कर रहा है. इसी क्रम में आज लखनऊ के राज्य संग्रहालय में चंद्रशेखर आजाद का अस्थि-कलश रखा गया है, जिसका पर्यटक दर्शन कर रहे हैं और शीश झुका रहे हैं.

राज्य संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया आजाद का अस्थि-कलश.

विद्यापीठ से निकली थी शोभा यात्रा
अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के अंतिम संस्कार के बाद उनके असली अवशेषों का कुछ अंश स्वर्गीय विनायक मिश्र ने अपने पास रख लिया था. काफी समय तक उनके यहां सुरक्षित रहा. इसके बाद अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के अस्थि कलश की ऐतिहासिक शोभा यात्रा 1 अगस्त 1976 को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी से प्रारंभ की गई, जो 10 अगस्त 1976 को राज्य संग्रहालय लखनऊ में आकर समाप्त हुई. तभी से आजाद का अस्थि कलश लखनऊ के राज्य संग्रहालय में रखा गया है.

दर्शन के लिए रखा गया अस्थि कलश
गुरुवार को चौरी-चौरा के अमर शहीदों को नमन करते हुए संग्रहालय में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का अस्थि-कलश आम लोगों के दर्शन के लिए रखा गया है. 27 फरवरी 1931 को स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए इस महान भारतीय सपूत ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. उनका त्याग और बलिदान प्रत्येक देशवासी के लिए अनुकरणीय है. उनकी स्मृति में हम सभी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं.

पुलिस थाने में लगाई थी आग
चौरी-चौरा में 4 फरवरी 1922 को आजादी के लिए वीर जवानों ने अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेते हुए, पुलिस थाने में आग लगा दी थी. इस घटना में 23 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी. इसके बाद कई क्रांतिकारियों को फांसी और आजीवन कारावास की सजा हुई थी. यह घटना चौरी-चौरा जनाक्रोश के रूप में जानी जाती है. अब शहीदों के इस शौर्य गाथा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा. अब विद्यार्थी इस जन क्रांति में शहीद हुए वीरों के इतिहास को भी पढ़ सकेंगे.

19 क्रांतिकारियों की हुई थी फांसी
इस प्रकरण में 225 लोगों को आरोपी बनाकर 172 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. पंडित मदन मोहन मालवीय ने मुकदमा लड़ा और 151 लोगों को फांसी की सजा से बचा लिया. इसके बावजूद 19 लोगों को 1923 में फांसी दे दी गई. आंदोलन को आज 100 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं. इसी के उपलक्ष में आज शहीदों की याद में पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है.

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