लखनऊ: उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का बुधवार को 44 वां स्थापना दिवस मनाया गया. इस अवसर पर व्याख्यान एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें वरिष्ठ कवि उदय प्रताप सिंह ने मेरी सारी विपदाओं की केवल यही कहानी है. लाभ आलाभ बुद्धि के बदले बात हृदय की मानी है कविता सुनाया तो पूरा परिसर तालियों से गूंज उठा. कार्यक्रम का आयोजन संस्थान के सभागार में किया गया. मुख्य अतिथि डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने महामना मदन मोहन मालवीय, डॉ.राजेंद्र प्रसाद और भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की स्मृति को नमन करते हुए उनके जीवन पर प्रकाश डाला.
उन्होंने कहा कि इन महान विभूतियों के चरित्र के अनेकों उज्जवल पक्ष है, जिनका अनुसरण हमें करना चाहिए, जहां मदन मोहन प्रखर वक्ता, शिक्षा शास्त्रीय, सुधारवादी समाज कल्याण के लिए समर्पित रहें. वह कुशल संपादक होने के साथ-साथ स्वनिर्मित नैतिक मापदंडों को आदर्श बनाकर उनका निर्वाह जीवन भर करते रहे. वह मकरंद नाम से ब्रज भाषा में कविता करते थे. वहीं राजेंद्र प्रसाद ने भारतीय गणतंत्र को वर्तमान रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया. उनकी ख्याति जन सेवक के रूप में थी, जबकि पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेई ने राजनीति में अपना अलग आदर्श बनाया. उन्होंने किसी दबाव में काम नहीं किया. वह सफल सांसद थे. राष्ट्रीयता की बात आने पर पहले भारतीय थे और फिर किसी पार्टी के सदस्य.
स्थापना दिवस पर कवि सम्मेलन आयोजित
44 वें स्थापना दिवस के अवसर पर काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष एवं वरिष्ठ कवि उदय प्रताप सिंह ने की. उन्होंने कविता पाठ करते हुए कहा कि मैं धन से निर्धन हूं पर मन का राजा हूं, तुम जितना चाहो प्यार तुम्हें दे सकता हूं. प्रयागराज से आए डॉ. विनम्रसेन सिंह ने चिराग आज हर एक ओर जलाने वालों, ऐसा लगता नहीं कि तुम भी कोई कम होगे कविता सुनाई. वहीं डॉ. कमलेश राय ने वो अपने वास्ते कोई तराना ढूंढ लेता है, हमेशा अपने मकसद का बहाना ढूंढ लेता है कविता सुनाई.
विजेताओं को किया गया पुरस्कृत
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा युवा रचनाकारों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से कहानी, कविता एवं निबंध प्रतियोगिता में का भी आयोजन किया गया. प्रतियोगिता में विजेता युवा रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया. कार्यक्रम का आयोजन कोविड-19 गाइडलाइन के तहत किया गया.