लखनऊ: सोमवार को सीबीआई दिल्ली ब्रांच की एक टीम ने दिल्ली कोर्ट से 760 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में यादव सिंह को गिरफ्तार किया है. दरअसल यादव सिंह की यह गिरफ्तारी पहली नहीं है, बल्कि इससे पहले भी सीबीआई ने यादव सिंह को कई बार गिरफ्तार किया है. भ्रष्टाचार को लेकर यादव सिंह पर कई मामले दर्ज हैं, जिनमें से तीन मामलों में उनको जमानत मिली हुई है, जिसके तहत वह बाहर थे. यादव सिंह की गिरफ्तारी तब हुई जब वह नोएडा टेंडर घोटाले से जुड़े एक मामले में सुनवाई में सीबीआई कोर्ट पहुंचे थे.
जानिए कब-कब क्या हुआ
यादव सिंह पर आरोप है कि नोएडा प्राधिकरण में मुख्य अभियंता के तौर पर रहते हुए उन्होंने 2005 से लेकर 2012 के बीच 29 निजी फॉर्म को लाभ पहुंचाया और करोड़ों रुपए के टेंडर नियम विरुद्ध स्वीकृत किए. जिन 29 निजी फर्मों को यादव सिंह ने लाभ पहुंचाया, उनमें से कई फर्में उनके रिश्तेदार और दोस्तों के नाम पर थीं. जहां एक ओर सीबीआई ने यादव सिंह के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं तो वहीं ईडी भी उन पर कार्रवाई कर चुकी है. ईडी ने यादव सिंह की 25.8 करोड़ की संपत्ति जब्त की है.
वर्ष 2014 में सीबीआई ने पहली बार यादव सिंह के यहां छापेमारी की, इसके बाद फरवरी 2015 को यूपी सरकार ने कार्रवाई करते हुए यादव सिंह को निलंबित कर दिया और जांच के आदेश दिए. इस बीच यादव सिंह के नाम ने खूब सुर्खियां बटोरी. 8 जुलाई 2015 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यादव सिंह मामले की जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंप दी. मामले की जांच करते हुए सीबीआई ने अगस्त 2015 को 954 करोड़ के घोटाले के संदर्भ में एफआईआर दर्ज की.
घर से बरामद हुआ था 2 किलो सोना
सीबीआई की कार्रवाई के साथ-साथ यादव सिंह के यहां इनकम टैक्स ने भी छापेमारी की थी. इनकम टैक्स की छापेमारी में उनके घर से 2 किलो सोना, 10 करोड़ कैश, 100 करोड़ रुपए के हीरे और कई जमीन के दस्तावेज मिले थे.
सरकार की मेहरबानी से मिलते रहे प्रमोशन
जहां एक ओर यादव सिंह को सबसे भ्रष्ट कर्मचारी होने की बात सामने आती है, तो वहीं यादव सिंह के कार्यकाल के दौरान उन पर सपा-बसपा सरकार की खूब मेहरबानी रही. नोएडा अथॉरिटी के गठन के बाद उनको नोएडा अथॉरिटी में नौकरी मिली. यादव सिंह डिप्लोमा होल्डर इंजीनियर थे. नोएडा अथॉरिटी में उनको पहली नौकरी जूनियर इंजीनियर के तौर पर मिली, जिसके बाद उन्हें 1995 में प्रमोशन मिला और वह असिस्टेंट इंजीनियर बन गए. असिस्टेंट इंजीनियर से प्रोजेक्ट इंजीनियर बनने में भी यादव सिंह को ज्यादा समय नहीं मिला.
यह प्रमोशन यादव सिंह की काबिलियत पर नहीं सरकार की मेहरबानी से मिला, क्योंकि प्रोजेक्ट इंजीनियर के पद पर तैनाती के लिए इंजीनियरिंग में डिग्री होना अनिवार्य है, लेकिन यहां पर भी अनियमितताएं बरती गईं और पद पर तैनाती देने के साथ यह शर्त रखी गई की यादव सिंह आगामी 3 वर्षों में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर लेंगे.