लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती का 15 जनवरी को जन्मदिन होता है. 1956 में दिल्ली में पैदा हुईं मायावती की माता गृहिणी थीं तो पिता डाकघर में सरकारी कर्मचारी. मायावती से माता-पिता को बहुत उम्मीद थीं. पिता मायावती को कलक्टर बनाना चाहते थे. मायावती ने इसके लिए प्रशासनिक सेवा की तैयारी भी की थी. उन्होंने इसके लिए जी तोड़ मेहनत की. पढ़ाई के दौरान ही मायावती ने शिक्षिका की भी भूमिका निभाई, हालांकि प्रशासनिक सेवा में जाने में उनको सफलता नहीं मिली.
मायावती के पिता का नाम प्रभुदेव और माता का नाम रामरती था. पिता गौतमबुद्ध नगर में एक डाकघर कर्मचारी थे और मां एक गृहिणी थीं. मायावती के छह भाई और दो बहनें थीं. दिल्ली के कालिंदी कॉलेज से मायावती ने साल 1975 में स्नातक की डिग्री (बीए) प्राप्त की और उसके बाद 1976 में उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद के वीएमएलजी कॉलेज से बीएड की डिग्री हासिल की. इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी (LLB) की पढ़ाई पूरी की. पिता प्रभुदेव बेटी मायावती को कलेक्टर बनाना चाहते थे. पिता के कहने पर मायावती ने प्रशासनिक सेवा की तैयारी भी शुरू कर दी. पढ़ाई के साथ ही उन्होंने शिक्षिका के रूप में भी अध्यापन किया. शिक्षिका के रूप में कार्य करने के दौरान ही मायावती की मुलाकात बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम से हो गई. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि 'कांशीराम के प्रभाव को देखकर मायावती के पिता बिल्कुल प्रसन्न नहीं थे. पिता ने बेटी को काशीराम के पद चिन्हों पर आगे बढ़ने से मना किया, लेकिन मायावती ने उनकी बात मानने से इंकार कर दिया. मायावती बसपा के संस्थापक कांशीराम के रास्ते पर आगे बढ़ती चली गईं. मायावती की जिन्दगी बिल्कुल ही बदल गई.'
मायावती के इस एक कदम ने राजनीति में उनके लिए रास्ते खोल दिए. धीरे-धीरे उनके राजनीति का ग्राफ चढ़ना शुरू हो गया. मंच पर उनके भाषण को लोग ध्यान से सुनने लगे. मायावती लोगों की पसंद बनने लगीं. काशीराम की सच्ची शिष्या के रूप में मायावती ने जी तोड़ मेहनत की. इसका नतीजा यह हुआ कि मंच पर जब कांशीराम और मायावती होते थे तो सिर्फ भीड़ से आवाज 'कांशीराम जिंदाबाद' की ही नहीं, बल्कि 'मायावती जिंदाबाद' की भी आने लगी. नारे भी लगते थे तो 'कांशीराम तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं, मायावती तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं.'
साल 1984 में जब मायावती शिक्षिका के रूप में कार्य कर रहीं थीं. इसी बीच उनकी मुलाकात कांशीराम से हुई. उस समय कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था. तब मायावती ने शिक्षिका का प्रोफेशन छोड़कर बसपा का साथ पकड़ लिया. उसी साल मायावती ने मुज्जफरनगर जिले के कैराना लोकसभा से पहली बार चुनावी मैदान में कदम रखा. 1985 से 1987 तक लोकसभा चुनाव के लिए मायावती ने कड़ी मेहनत की. 1989 में बहुजन समाज पार्टी ने 13 सीटों पर चुनाव जीता. मायावती बिजनौर से पहली बार सांसद चुनी गईं.
इसके बाद बसपा में दलितों और पिछड़े वर्गों की संख्या बढ़ती गई. बीएसपी की पैठ लगातार मजबूत होती गई. साल 1995 में उत्तर प्रदेश की गठबंधन सरकार में पहली बार मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गईं. साल 2003 में कांशीराम ने मायावती को बहुजन समाज पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया. साल 2002-2003 के दौरान भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन से मायावती फिर से उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी. साल 2007 में दोबारा सत्ता में आने के बाद देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के पद को संभाला. कुल मिलाकर मायावती मुख्यमंत्री के रूप में चार बार उत्तर प्रदेश की सत्ता संभाल चुकी हैं.
ये हैं मायावती पर लिखीं पुस्तकें : मायावती के ऊपर अब तक कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. इनमें पहली पुस्तक लेखक व पत्रकार मोहम्मद जमील अख्तर की “आयरन लेडी कुमारी मायावती“ हैं. मायावती ने स्वयं भी अपनी कई पुस्तकें लिखी हैं जो हिन्दी में हैं. इनमें “मेरा संघर्षमयी जीवन“ और “बहुजन मूवमेंट का सफरनामा“ 18 भागों में लिखा है. ये दोनों ही पुस्तकें बहुत प्रसिद्ध हैं. वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस ने मायावती के ऊपर “बहनजी : अ पॉलिटिकल बायोग्राफी ऑफ मायावती” नाम की पुस्तक लिखी है, जो काफी चर्चित है.