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चार राज्यों में सिर्फ दो कदम ही चल पाया बसपा का 'हाथी', 2018 के मुकाबले गिरा वोट प्रतिशत का ग्राफ

देश के पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव नतीजे आ चुके हैं. रविवार को चार राज्यों के आए चुनावी परिणाम (assembly elections of four states) में बीजेपी ने तीन राज्यों में जीत हासिल की है, वहीं बसपा को केवल राजस्थान में ही दो सीटें मिली हैं. लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर क्या बसपा को रणनीति में बदलाव करना होगा? पढ़ें पूरी खबर.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 4, 2023, 7:56 PM IST

लखनऊ : देश के पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव नतीजे बहुजन समाज पार्टी के लिए बेहद मायने रखते हैं. इन पांच में से चार राज्यों में बसपा सुप्रीमो ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. मायावती ने इन राज्यों से जो उम्मीद पाल रखी थी उस पर फिलहाल पानी फिर गया है. विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं जिनमें बसपा को निराशा ही हाथ लगी है. बसपा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में तो खाता भी नहीं खोल पाई है, उसे राजस्थान में ही दो सीटों पर जीत का स्वाद चखने को मिल पाया है. ऐसे में अब इन राज्यों के चुनावी नतीजे से तस्वीर साफ हो गई है कि बसपा को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ सकता है. अकेले दम चुनाव लड़ने का शिगूफा छोड़ने वाली बसपा सुप्रीमो को यू टर्न भी लेना पड़ सकता है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर ऐसा नहीं होता है तो मायावती को लोकसभा चुनाव में भी तगड़ा झटका लगना तय है. जानकार ये भी मानते हैं कि बहुजन समाज पार्टी देश के अन्य राज्यों में इसलिए भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारती है जिससे उसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा सुरक्षित रहे. धीरे-धीरे पार्टी का मत प्रतिशत कम ही होता जा रहा है, ऐसे में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनने के भी आसार नजर आने लगे हैं.

बसपा सुप्रीमो मायावती (फाइल फोटो)
बसपा सुप्रीमो मायावती (फाइल फोटो)




मायावती की उम्मीदों को झटका : देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में से चार राज्यों के नतीजे आ चुके हैं. बसपा का हाथी इन राज्यों में उस रफ्तार से नहीं दौड़ सका जिस रफ्तार की बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने आस लगा रखी थी. हाथी सिर्फ राजस्थान में ही दो कदम चल पाया, बाकी जगह थककर बैठ गया. यही वजह है कि पार्टी तीन राज्यों में अपना खाता तक नहीं खोल पाई. राजस्थान में ही दो सीट जीतकर कुछ हद तक इज्जत बचाने में पार्टी सफल रही.

बसपा कार्यालय
बसपा कार्यालय

हासिल किया था बेहतर मत प्रतिशत : सिर्फ सीटों का ही घाटा मायावती की पार्टी को नहीं उठाना पड़ा है बल्कि मत प्रतिशत भी धीरे-धीरे धड़ाम होता जा रहा है. इस बार बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की पार्टी को छत्तीसगढ़ में 2.09 फीसद, राजस्थान में 1.82 फीसद, मध्य प्रदेश में 3.32 फीसद और तेलंगाना में 1.38 फीसद ही वोट मिले, जिसकी 2018 के विधानसभा चुनाव की तुलना की जाए तो बेहद खराब हैं. बहुजन समाज पार्टी को साल 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में 4.53 फीसद, मध्य प्रदेश में 5.01% छत्तीसगढ़ में 3.87 फीसद वोट मिले थे. तेलंगाना विधानसभा चुनाव में पिछली बार पार्टी का खाता नहीं खुला था और मत प्रतिशत भी न के बराबर ही रहा था.

पिछली बार जीती थीं खूब सीटें : इस बार जहां बहुजन समाज पार्टी को राजस्थान की सादुलपुर और बारी विधानसभा सीटों को जीतने में सफलता मिली है. यही एक राज्य ऐसा है जहां पार्टी दो सीट जीतने में सफल रही है. बाकी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में पार्टी को मायूसी हाथ लगी है. अगर पिछले विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो साल 2018 में राजस्थान में पार्टी छह विधानसभा सीटें जीतने में सफल हुई थी. मध्य प्रदेश में पार्टी को दो विधानसभा सीटें जीतने में सफलता मिली थी. छत्तीसगढ़ में भी पार्टी ने दो सीटें जीती थीं. हालांकि तेलंगाना में पिछली बार भी पार्टी का खाता नहीं खुल पाया था, जबकि 2014 के विधानसभा चुनाव में तेलंगाना में भी पार्टी ने दो सीटों पर जीत हासिल की थी. फिलहाल देश के विभिन्न राज्यों में बसपा का ग्राफ गिरता ही जा रहा है.

ज्यादातर सीटों पर जमानत हुई जब्त : बहुजन समाज पार्टी ने चार राज्यों में विधानसभा चुनाव तो जरूर लड़ा, लेकिन एक राज्य में दो सीट ही पार्टी के हिस्से आईं. ज्यादातर राज्यों में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. अधिकतर प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई है. दूसरे या तीसरे नंबर पर भी प्रत्याशी दूर-दूर तक नजर नहीं आए. ऐसे में बसपा सुप्रीमो के लिए पार्टी का प्रदर्शन चिंता का सबब बन रहा है. राजनीतिक जानकार जरूर मानते हैं कि अगर मायावती ने अपने रवैये में बदलाव नहीं किया तो निश्चित तौर पर लोकसभा चुनाव में पार्टी को बड़ा झटका लगेगा.

10 सीटें जीतने में हुई थी कामयाब : पिछली बार समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव लड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी 10 सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी, लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में अकेले लड़कर देख लिया तो 403 विधानसभा सीटों में एक ही सीट जीत पाई, जिससे अब मायावती के वोट बैंक में सेंध लगती हुई साफ नजर आ रही है. यही वजह है कि अब लगातार बसपा सुप्रीमो अपने पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं से कोर वोटर के बीच जाकर मीटिंग करने को कह रही हैं जिससे उनका कोर वोटर पार्टी के साथ रहे. इधर-उधर बिखरने न पाए.

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10 को बुलाई बड़ी बैठक : चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में पार्टी के हिस्से हार आने के बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने 10 दिसंबर को ऑल इंडिया बहुजन समाज पार्टी की लखनऊ स्थित पार्टी कार्यालय पर बड़ी बैठक बुलाई है. इसमें देश के सभी राज्यों के सीनियर पदाधिकारी आएंगे और मायावती उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए दिशा निर्देश देंगी. रणनीति में बदलाव करते हुए उन्हें किस तरह से काम करना है इसके बारे में भी बताएंगी. चार राज्यों में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन पर भी मंथन करेंगी.

प्रभात रंजन दीन, राजनीतिक विश्लेषक, वरिष्ठ पत्रकार
प्रभात रंजन दीन, राजनीतिक विश्लेषक, वरिष्ठ पत्रकार

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राजनीतिक विश्लेषक, वरिष्ठ पत्रकार प्रभात रंजन दीन का मानना है कि 'मायावती को अपनी रणनीति में अब बदलाव करना ही पड़ेगा. अगर ऐसा नहीं करती हैं तो चुनाव के नतीजे उनके सामने हैं. लगातार उनका अपने ही मतदाताओं पर असर कम होता जा रहा है. इन्हीं चार राज्यों में पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने सीटें भी जीती थीं और अच्छा मत प्रतिशत भी हासिल किया था, लेकिन इस बार पार्टी गर्त में समा गई. अब लोकसभा चुनाव भी करीब है. मायावती अगर कोई सही फैसला नहीं लेती हैं तो पार्टी का खाता भी खुलना मुश्किल हो सकता है.'

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लखनऊ : देश के पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव नतीजे बहुजन समाज पार्टी के लिए बेहद मायने रखते हैं. इन पांच में से चार राज्यों में बसपा सुप्रीमो ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. मायावती ने इन राज्यों से जो उम्मीद पाल रखी थी उस पर फिलहाल पानी फिर गया है. विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं जिनमें बसपा को निराशा ही हाथ लगी है. बसपा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में तो खाता भी नहीं खोल पाई है, उसे राजस्थान में ही दो सीटों पर जीत का स्वाद चखने को मिल पाया है. ऐसे में अब इन राज्यों के चुनावी नतीजे से तस्वीर साफ हो गई है कि बसपा को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ सकता है. अकेले दम चुनाव लड़ने का शिगूफा छोड़ने वाली बसपा सुप्रीमो को यू टर्न भी लेना पड़ सकता है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर ऐसा नहीं होता है तो मायावती को लोकसभा चुनाव में भी तगड़ा झटका लगना तय है. जानकार ये भी मानते हैं कि बहुजन समाज पार्टी देश के अन्य राज्यों में इसलिए भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारती है जिससे उसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा सुरक्षित रहे. धीरे-धीरे पार्टी का मत प्रतिशत कम ही होता जा रहा है, ऐसे में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनने के भी आसार नजर आने लगे हैं.

बसपा सुप्रीमो मायावती (फाइल फोटो)
बसपा सुप्रीमो मायावती (फाइल फोटो)




मायावती की उम्मीदों को झटका : देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में से चार राज्यों के नतीजे आ चुके हैं. बसपा का हाथी इन राज्यों में उस रफ्तार से नहीं दौड़ सका जिस रफ्तार की बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने आस लगा रखी थी. हाथी सिर्फ राजस्थान में ही दो कदम चल पाया, बाकी जगह थककर बैठ गया. यही वजह है कि पार्टी तीन राज्यों में अपना खाता तक नहीं खोल पाई. राजस्थान में ही दो सीट जीतकर कुछ हद तक इज्जत बचाने में पार्टी सफल रही.

बसपा कार्यालय
बसपा कार्यालय

हासिल किया था बेहतर मत प्रतिशत : सिर्फ सीटों का ही घाटा मायावती की पार्टी को नहीं उठाना पड़ा है बल्कि मत प्रतिशत भी धीरे-धीरे धड़ाम होता जा रहा है. इस बार बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की पार्टी को छत्तीसगढ़ में 2.09 फीसद, राजस्थान में 1.82 फीसद, मध्य प्रदेश में 3.32 फीसद और तेलंगाना में 1.38 फीसद ही वोट मिले, जिसकी 2018 के विधानसभा चुनाव की तुलना की जाए तो बेहद खराब हैं. बहुजन समाज पार्टी को साल 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में 4.53 फीसद, मध्य प्रदेश में 5.01% छत्तीसगढ़ में 3.87 फीसद वोट मिले थे. तेलंगाना विधानसभा चुनाव में पिछली बार पार्टी का खाता नहीं खुला था और मत प्रतिशत भी न के बराबर ही रहा था.

पिछली बार जीती थीं खूब सीटें : इस बार जहां बहुजन समाज पार्टी को राजस्थान की सादुलपुर और बारी विधानसभा सीटों को जीतने में सफलता मिली है. यही एक राज्य ऐसा है जहां पार्टी दो सीट जीतने में सफल रही है. बाकी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में पार्टी को मायूसी हाथ लगी है. अगर पिछले विधानसभा चुनाव की बात की जाए तो साल 2018 में राजस्थान में पार्टी छह विधानसभा सीटें जीतने में सफल हुई थी. मध्य प्रदेश में पार्टी को दो विधानसभा सीटें जीतने में सफलता मिली थी. छत्तीसगढ़ में भी पार्टी ने दो सीटें जीती थीं. हालांकि तेलंगाना में पिछली बार भी पार्टी का खाता नहीं खुल पाया था, जबकि 2014 के विधानसभा चुनाव में तेलंगाना में भी पार्टी ने दो सीटों पर जीत हासिल की थी. फिलहाल देश के विभिन्न राज्यों में बसपा का ग्राफ गिरता ही जा रहा है.

ज्यादातर सीटों पर जमानत हुई जब्त : बहुजन समाज पार्टी ने चार राज्यों में विधानसभा चुनाव तो जरूर लड़ा, लेकिन एक राज्य में दो सीट ही पार्टी के हिस्से आईं. ज्यादातर राज्यों में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. अधिकतर प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई है. दूसरे या तीसरे नंबर पर भी प्रत्याशी दूर-दूर तक नजर नहीं आए. ऐसे में बसपा सुप्रीमो के लिए पार्टी का प्रदर्शन चिंता का सबब बन रहा है. राजनीतिक जानकार जरूर मानते हैं कि अगर मायावती ने अपने रवैये में बदलाव नहीं किया तो निश्चित तौर पर लोकसभा चुनाव में पार्टी को बड़ा झटका लगेगा.

10 सीटें जीतने में हुई थी कामयाब : पिछली बार समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव लड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी 10 सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी, लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में अकेले लड़कर देख लिया तो 403 विधानसभा सीटों में एक ही सीट जीत पाई, जिससे अब मायावती के वोट बैंक में सेंध लगती हुई साफ नजर आ रही है. यही वजह है कि अब लगातार बसपा सुप्रीमो अपने पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं से कोर वोटर के बीच जाकर मीटिंग करने को कह रही हैं जिससे उनका कोर वोटर पार्टी के साथ रहे. इधर-उधर बिखरने न पाए.

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10 को बुलाई बड़ी बैठक : चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में पार्टी के हिस्से हार आने के बाद बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने 10 दिसंबर को ऑल इंडिया बहुजन समाज पार्टी की लखनऊ स्थित पार्टी कार्यालय पर बड़ी बैठक बुलाई है. इसमें देश के सभी राज्यों के सीनियर पदाधिकारी आएंगे और मायावती उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए दिशा निर्देश देंगी. रणनीति में बदलाव करते हुए उन्हें किस तरह से काम करना है इसके बारे में भी बताएंगी. चार राज्यों में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन पर भी मंथन करेंगी.

प्रभात रंजन दीन, राजनीतिक विश्लेषक, वरिष्ठ पत्रकार
प्रभात रंजन दीन, राजनीतिक विश्लेषक, वरिष्ठ पत्रकार

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