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24 साल बाद मायावती ने खेला 'मुलायम' दांव - यूपी में टूटा महागठबंधन

बसपा प्रमुख मायावती ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव को करारा झटका दिया है. मायावती ने आरोप लगाया कि सपा का यादव वोट बैंक उनकी पार्टी को नहीं मिला. मायावती का यह नया रवैया नहीं है, इससे पहले भी मायावती यह फॉर्मूला अपना चुकी हैं.

24 साल बाद मायावती ने लिया बदला.
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Published : Jun 3, 2019, 7:51 PM IST

Updated : Jun 3, 2019, 8:13 PM IST

लखनऊ: बसपा सुप्रीमो मायावती ने गठबंधन की राजनीति में एक बार फिर पलटी मारी है. सपा और भाजपा के सहारे सत्ता सुख भोग चुकीं मायावती अपनी साख बचाने के लिए 2019 के लोकसभा में फिर गठबंधन की तरफ बढ़ीं, लेकिन चुनाव बाद वही हुआ जिसका लोगों को पहले से अंदेशा था. आज यानि 3 जून को मायावती ने सपा के साथ हुए चुनावी गठबंधन को तोड़ते हुए यूपी विधानसभा उपचुनाव में अकेले उतरने का फैसला कर लिया.

कहते हैं राजनीति में मुर्दे कभी दफनाये नहीं जाते, इसकी एक बानगी भी आज देखने को मिली. 24 साल पहले 3 जून 1995 में मायावती ने सपा प्रमुख अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव को किनारे लगाकर बीजेपी के समर्थन से यूपी की सीएम बनी थीं, लेकिन इस बार मायावती सीएम तो नहीं बनने जा रही हैं, लेकिन मुलायम के बेटे अखिलेश को अपनी पुरानी सियासत से मात दी है. ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है कि 2019 के चुनाव में अगर बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा फायदा किसी पार्टी को हुआ है तो वो बसपा ही है.

लोकसभा 2019 में हार के बाद आज दिल्ली में बसपा प्रमुख मायावती ने एक समीक्षा बैठक की. बैठक में मौजूद सूत्रों के मुताबिक सपा-बसपा गठबंधन के नतीजों से नाखुश बसपा प्रमुख ने ऐलान किया कि आगामी कुछ महीनों में होने वाले 11 सीटों के उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी सभी सीटों पर अपने प्रत्य़ाशी उतारेगी. मायावती के इस फैसले से यह तय हो गया कि यूपी में सपा-बसपा के गठबंधन खत्म होने के कगार पर पहुंच चुका है. साथ ही मायावती ने ताना देते हुए कहा कि अखिलेश अपनी पत्नी को भी नहीं जिता पाए.


बसपा सुप्रीमो ने समीक्षा बैठक में माना कि गठबंधन के बावजूद सपा के वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं हुए साथ ही उन्होंने इस रिजल्ट के लिए इवीएम को भी दोषी ठहराया. मायावती ने कहा कि समाजवादी पार्टी की आपसी फूट के कारण शिवपाल यादव ने यादव समुदाय का वोट बीजेपी को ट्रांसफर कराया. जिसकी वजह से बीएसपी 10 सीटों पर सिमट कर रह गई.


गौरतलब है कि चुनाव में जीत के बाद अखिलेश यादव पहली बार सोमवार को आजमगढ़ पहुंचे हैं. और वह पहले ही बीएसपी पर हार ठीकरा फोड़ सकते थे. इससे पहले ही मायावती ने एकतरफा गठबंधन की समाप्ति की घोषणा कर उनको झटका दे दिया है.

लखनऊ: बसपा सुप्रीमो मायावती ने गठबंधन की राजनीति में एक बार फिर पलटी मारी है. सपा और भाजपा के सहारे सत्ता सुख भोग चुकीं मायावती अपनी साख बचाने के लिए 2019 के लोकसभा में फिर गठबंधन की तरफ बढ़ीं, लेकिन चुनाव बाद वही हुआ जिसका लोगों को पहले से अंदेशा था. आज यानि 3 जून को मायावती ने सपा के साथ हुए चुनावी गठबंधन को तोड़ते हुए यूपी विधानसभा उपचुनाव में अकेले उतरने का फैसला कर लिया.

कहते हैं राजनीति में मुर्दे कभी दफनाये नहीं जाते, इसकी एक बानगी भी आज देखने को मिली. 24 साल पहले 3 जून 1995 में मायावती ने सपा प्रमुख अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव को किनारे लगाकर बीजेपी के समर्थन से यूपी की सीएम बनी थीं, लेकिन इस बार मायावती सीएम तो नहीं बनने जा रही हैं, लेकिन मुलायम के बेटे अखिलेश को अपनी पुरानी सियासत से मात दी है. ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है कि 2019 के चुनाव में अगर बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा फायदा किसी पार्टी को हुआ है तो वो बसपा ही है.

लोकसभा 2019 में हार के बाद आज दिल्ली में बसपा प्रमुख मायावती ने एक समीक्षा बैठक की. बैठक में मौजूद सूत्रों के मुताबिक सपा-बसपा गठबंधन के नतीजों से नाखुश बसपा प्रमुख ने ऐलान किया कि आगामी कुछ महीनों में होने वाले 11 सीटों के उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी सभी सीटों पर अपने प्रत्य़ाशी उतारेगी. मायावती के इस फैसले से यह तय हो गया कि यूपी में सपा-बसपा के गठबंधन खत्म होने के कगार पर पहुंच चुका है. साथ ही मायावती ने ताना देते हुए कहा कि अखिलेश अपनी पत्नी को भी नहीं जिता पाए.


बसपा सुप्रीमो ने समीक्षा बैठक में माना कि गठबंधन के बावजूद सपा के वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं हुए साथ ही उन्होंने इस रिजल्ट के लिए इवीएम को भी दोषी ठहराया. मायावती ने कहा कि समाजवादी पार्टी की आपसी फूट के कारण शिवपाल यादव ने यादव समुदाय का वोट बीजेपी को ट्रांसफर कराया. जिसकी वजह से बीएसपी 10 सीटों पर सिमट कर रह गई.


गौरतलब है कि चुनाव में जीत के बाद अखिलेश यादव पहली बार सोमवार को आजमगढ़ पहुंचे हैं. और वह पहले ही बीएसपी पर हार ठीकरा फोड़ सकते थे. इससे पहले ही मायावती ने एकतरफा गठबंधन की समाप्ति की घोषणा कर उनको झटका दे दिया है.

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बसपा सुप्रीमो मायावती ने गठबंधन की राजनीति में एक बार फिर पलटी मारी है. सपा और भाजपा के सहारे सत्ता सुख भोग चुकीं मायावती अपनी साख बचाने के लिए 2019 के लोकसभा में फिर गठबंधन की तरफ बढ़ी, लेकिन चुनाव बाद वहीं हुआ जिसका लोगों को पहले से अंदेशा था. आज यानि 3 जून को मायावती ने सपा के साथ हुए चुनावी गठबंधन को तोड़ते हुए यूपी विधानसभा उपचुनाव में अकेले उतरने का फैसला कर लिया.







कहते हैं राजनीति में मुर्दे कभी दफनाये नहीं जाते, इसकी एक बानगी भी आज देखने को मिली. दरअसल 2 जून 1995  सपा के समर्थन वापस लेने के बाद मायावती की सरकार गिर गई थी. उस वक्त दोनों की पार्टियों की दोस्ती में इस कदर दरार पड़ी की उसे भरने में 2019 तक का इंतजार करना पड़ा. समय बदला, स्थिति बदली और 11 जनवरी को माया और अखिलेश ने साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान किया. चुनाव में बीजेपी के हाथों करारी हार मिली, लेकिन मायावती इस बार 00 से बढ़कर अपने 10 सांसद लोकसभा भेजने में कामयाब रही.











अब बारी थी मायावती की 3 जून 2019 यानी 24 साल बाद मायावती ने अखिलेश को झटका देते हुए यूपी विधानसभा उपचुनाव अकेले लड़ने का एलान कर दिया.






Conclusion:
Last Updated : Jun 3, 2019, 8:13 PM IST
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