ETV Bharat / state

सम्मान तो बहुत मिला साहब... पर उससे पेट तो नहीं भरता ! - सीएम योगी

लखनऊ में वीरता पुरस्कार से पुरस्कृत रियाज अहमद ने 2003 में एक बच्ची की जान बचाते वक्त अपने दोनों हाथ और एक पैर गंवा दिए. उस वक्त तमाम नेताओं ने उसकी बहादुरी को सलाम किया और उसे सरकारी नौकरी दिलाने का भरोसा दिलाया. लेकिन आज हालात यह है कि रियाज चाय का ठेला लगाकर किसी तरह अपने परिवार का पेट पालने को मजबूर है.

2003 में रियाज को 8 साल की उम्र में वीरता पुरस्कार से नवाजा गया.
author img

By

Published : Mar 29, 2019, 12:06 PM IST

लखनऊ : बहादुरी को अब रोजगार की दरकार है, क्योंकि साहब खाली सम्मान से पेट नहीं भरता है और न ही परिवार चलता है. ऐसा ही कुछ कहना है राजधानी लखनऊ के इस बहादुर रियाज का जिसने महज 8 साल की उम्र में एक छोटी बच्ची को बचाते वक्त अपने दोनों हाथ और एक पैर गंवा दिया था. इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने इस बहादुर बच्चे को वीरता पुरस्कार से सम्मानित भी किया था.

2003 में रियाज को 8 साल की उम्र में वीरता पुरस्कार से नवाजा गया.


सड़क किनारे चाय के ठेले पर दोनों हाथ और एक पैर से वंचित युवक जब चाय के भगौने को अंगीठी पर रखता है तो लोग बरबस ही उसकी और देखने लगते हैं. लेकिन जब उससे बात करते हैं तो वह कौतूहल दुखद आश्चर्य में बदल जाता है. पहली नजर में उसे देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि किसी की जान बचाने में दिव्यांग हो जाने वाला मोहम्मद रियाज राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से नवाजा गया था.


वहीं तमाम राजनेताओं ने इस बहादुर बच्चे से वादा किया था कि तुम्हारी अच्छी पढ़ाई के साथ-साथ अच्छी नौकरी भी दिलाई जाएगी. लेकिन आज वही 8 साल का बहादुर बच्चा अब 21 साल का हो चुका है, लेकिन हालात जस के तस हैं. जिसके चलते बेचारा रियाज एक चाय का ठेला लगाकर किसी तरह अपना परिवार चलाने को मजबूर है.


पैसे की तंगी होने की वजह से अब तो इंटर के बाद पढ़ाई भी छूट गई है. लखनऊ के वृंदावन कॉलोनी के सेक्टर 6 स्थित अपने मकान से कुछ दूरी पर रियाज चाय की दुकान चला रहा है. पिता मोहम्मद अहमद मानसिक बीमारी के कारण घर पर ही रहते हैं तो वहीं मां किस्मतुन्निसा चौका बर्तन करती हैं. परिवार में तीन छोटी बहनें इकरा, अजरा और रूबी के अलावा एक भाई अमन है.


मां का कहना है कि दिसंबर 2003 में 8 साल की उम्र में एक छोटी बच्ची सादिया को डालीगंज रेलवे क्रॉसिंग पर ट्रेन से बचाते वक्त चपेट में आने से बेटे रियाज ने अपने हाथ पैर गवां दिए थे. जिसके बाद पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया था.


रियाज आज हालात की ठोकरें खा रहा है. नौकरी के वादे तो कई हमदर्दों ने किए लेकिन वह वादों तक ही सिमट कर रह गए. कोई पूछता है तो रियाज के मुंह से बस इतना ही निकलता है, सम्मान तो बहुत मिला साहब ! पर उस से पेट तो नहीं भरता.

लखनऊ : बहादुरी को अब रोजगार की दरकार है, क्योंकि साहब खाली सम्मान से पेट नहीं भरता है और न ही परिवार चलता है. ऐसा ही कुछ कहना है राजधानी लखनऊ के इस बहादुर रियाज का जिसने महज 8 साल की उम्र में एक छोटी बच्ची को बचाते वक्त अपने दोनों हाथ और एक पैर गंवा दिया था. इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने इस बहादुर बच्चे को वीरता पुरस्कार से सम्मानित भी किया था.

2003 में रियाज को 8 साल की उम्र में वीरता पुरस्कार से नवाजा गया.


सड़क किनारे चाय के ठेले पर दोनों हाथ और एक पैर से वंचित युवक जब चाय के भगौने को अंगीठी पर रखता है तो लोग बरबस ही उसकी और देखने लगते हैं. लेकिन जब उससे बात करते हैं तो वह कौतूहल दुखद आश्चर्य में बदल जाता है. पहली नजर में उसे देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि किसी की जान बचाने में दिव्यांग हो जाने वाला मोहम्मद रियाज राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से नवाजा गया था.


वहीं तमाम राजनेताओं ने इस बहादुर बच्चे से वादा किया था कि तुम्हारी अच्छी पढ़ाई के साथ-साथ अच्छी नौकरी भी दिलाई जाएगी. लेकिन आज वही 8 साल का बहादुर बच्चा अब 21 साल का हो चुका है, लेकिन हालात जस के तस हैं. जिसके चलते बेचारा रियाज एक चाय का ठेला लगाकर किसी तरह अपना परिवार चलाने को मजबूर है.


पैसे की तंगी होने की वजह से अब तो इंटर के बाद पढ़ाई भी छूट गई है. लखनऊ के वृंदावन कॉलोनी के सेक्टर 6 स्थित अपने मकान से कुछ दूरी पर रियाज चाय की दुकान चला रहा है. पिता मोहम्मद अहमद मानसिक बीमारी के कारण घर पर ही रहते हैं तो वहीं मां किस्मतुन्निसा चौका बर्तन करती हैं. परिवार में तीन छोटी बहनें इकरा, अजरा और रूबी के अलावा एक भाई अमन है.


मां का कहना है कि दिसंबर 2003 में 8 साल की उम्र में एक छोटी बच्ची सादिया को डालीगंज रेलवे क्रॉसिंग पर ट्रेन से बचाते वक्त चपेट में आने से बेटे रियाज ने अपने हाथ पैर गवां दिए थे. जिसके बाद पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया था.


रियाज आज हालात की ठोकरें खा रहा है. नौकरी के वादे तो कई हमदर्दों ने किए लेकिन वह वादों तक ही सिमट कर रह गए. कोई पूछता है तो रियाज के मुंह से बस इतना ही निकलता है, सम्मान तो बहुत मिला साहब ! पर उस से पेट तो नहीं भरता.

Intro:बहादुरी को अब रोजगार की दरकार है क्योंकि साहब खाली सम्मान से पेट नहीं भरता ना ही परिवार चलता है। ऐसा ही कुछ कहना है राजधानी लखनऊ के इस बहादुर रियाज का जिसने महज 8 साल की उम्र में एक छोटी बच्ची को ट्रेन की चपेट में आने से बचाते वक्त अपने दोनों हाथ और एक पैर गवा दिए थे।जिसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने इस बहादुर बच्चे को वीरता पुरस्कार से सम्मानित भी किया था।


Body:सड़क किनारे चाय के ठेले पर दोनों हाथ और एक पैर से वंचित युवक जब चाय के भगोने को अंगीठी पर रखा रखता है तो लोग बरबस ही उसकी और देखने लगते हैं। लेकिन जब उससे बात करते हैं तो वह कौतूहल दुखद आश्चर्य में बदल जाता है। पहली नजर में उसे देख कर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि किसी की जान बचाने में दिव्यांग हो जाने वाला या मोहम्मद रियाज नाम का युवक राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से नवाजा गया था। वहीं तमाम राजनेताओं ने इस बहादुर बच्चे से वादा किया था कि तुम्हारी अच्छी पढ़ाई के साथ-साथ अच्छी नौकरी भी दिलाई जाएगी। लेकिन आज वह 8 साल का बहादुर बच्चा अब 21 साल का हो चुका है। हालात यह कि एक चाय का ठेला लगाकर किसी तरह अपना परिवार चला रहा है पैसे की तंगी होने की वजह से अब तो इंटर के बाद पढ़ाई भी छूट गई। लखनऊ के वृंदावन कॉलोनी के सेक्टर 6 स्थित अपने मकान से कुछ दूरी पर रियाज चाय की दुकान चला रहा है। पिता मोहम्मद अहमद मानसिक बीमारी के कारण घर पर ही रहते हैं। मां किस्मतुन्निसा चौका बर्तन करती है। परिवार में तीन छोटी बहन इकरा, अजरा और रूबी के अलावा एक भाई अमन है। मां ने बताया कि दिसंबर 2003 में 8 साल की उम्र में एक छोटी बच्ची सादिया को डालीगंज रेलवे क्रॉसिंग पर ट्रेन से बचाते वक्त उसकी चपेट में आने से बेटे रियाज ने अपने हाथ पैर गवा दिए थे। जिसके बाद पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया था। बाइट- रियाज अहमद ( बहादुरी के लिए राष्ट्रपति सम्मान से नवाजा गया बच्चा) बाइट- किस्मतुन्निसा (बच्चे रियाज़ की माँ) पीटीसी योगेश मिश्रा


Conclusion:आज फिर याद इस गौरवमई अतीत को पीठ पर लादे वर्तमान की किरचें आंखों में लिए हालात की ठोकरे खा रहा है नौकरी के वादे तो कई हमदर्द ने किया लेकिन वे वादे ही रह गए कोई पूरे देता है तो रियाज के मुंह से बस इतना ही निकलता है- सम्मान तो बहुत मिला साहब! पर उस से पेट तो नहीं भरता। योगेश मिश्रा लखनऊ 7054179998
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.