लखनऊ: जनपद पर कई पुस्तकों के लेखक योगेश प्रवीन का कहना है कि 'लखनऊ को जो चाहता है वह लखनऊ का हो जाता है'. लखनऊ भी उसे खूब रुतबा प्रदान करता है. उन्होंने कहा कि अमृतलाल नागर हो, शिवानी हो या यशपाल हो यह सभी बाहर से आए और लखनऊ की संस्कृति में इस कदर रच बस गए कि लखनऊ के ही होकर रह गए.
तहजीब के लिए लखनऊ को मिली पहचान
लखनऊ पुस्तक मेला में लेखक योगेश प्रवीन ने 'लेखक हमारे बीच' कार्यक्रम में विचार व्यक्त किये. यहां उन्होंने कहा कि जब दिल्ली उजड़ी तो बड़ी संख्या में शायर यहां आए और यहीं बस गए. मीर तकी मीर को तो पहले लखनऊ रास भी न आया था लेकिन बाद में वे लखनऊ के हो गए. सौदा भी यहां आए. भातखंडे ने महाराष्ट्र से आकर लखनऊ में संगीत विद्यालय की स्थापना की. उन्होंने कहा कि लखनऊ की तहजीब को पूरे विश्व में एक अलग से पहचान मिली हुई है.
'इतिहास को सत्य की कसौटी पर कसा जाना चाहिए'
लखनऊ पर नियमित लेखन करने वाले प्रसिद्ध इतिहासकार रवि भट्ट ने कहा कि इतिहास को सत्य की कसौटी पर ही कसा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए की जो बातें हमारे पक्ष में हैं हम उसे तो स्वीकार करें लेकिन जो प्रिय नहीं है उनकी आलोचना करें. उन्होंने कहा कि इतिहास के गलत लेखन से कई पीढ़ियों पर उसका बुरा असर होता है. मेले का संचालन पत्रकार आलोक पराड़कर ने किया. वहीं मेला के संयोजक मनोज सिंह चंदेल ने स्मृति चिह्न देकर लेखकों को सम्मानित किया.