लखनऊ : भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) में उम्मीदवारों को उतारने से पहले अपने सीटिंग विधायकों के बारे में सर्वे करवा रही है. सूत्रों के मुताबिक पार्टी यह सर्वे पांच माध्यमों से करा रही है जिनमें से एक सर्वे कराया जा चुका है. सभी जिलों में संगठन, पार्टी कार्यकर्ताओं, एजेंसी, संघ और जनता से मिलने वाले फीडबैक के आधार पर टिकटों का बंटवारा किया जाएगा. करीब सवा सौ विधायकों की रिपोर्ट खराब बतायी गयी है. इसके बाद पार्टी ने इन सभी विधायकों को सचेत कर दिया है. उन्हें चेतावनी दी गयी है कि 2022 विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) में उनका टिकट कट सकता है. लिहाजा, वह पूरे मनोयोग से पार्टी और सरकार के पक्ष में बोलते हुए जनता के बीच काम करें.
भारतीय जनता पार्टी के सर्वे से विधायकों की नींद उड़ी हुई है. खासकर उन विधायकों में बेचैनी है जो दूसरे दलों से आकर भाजपा के टिकट पर 2017 का चुनाव लड़ कर विधानसभा पहुंचे थे. उनके बारे में शिकायत आ रही है कि वह पार्टी कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं दे रही है. इतना ही नहीं, ऐसे विधायक अपनी पुरानी वाली पार्टी के कार्यकर्ताओं को जोड़कर रखे हुए हैं. विधायकों के लिए कई बिंदु निर्धारित किये गये हैं. पार्टी के मानकों पर खरा नहीं उतरने वाले विधायकों को इस बार टिकट नहीं मिलेगा.
टिकट के लिए इन मानकों पर खरा उतरना जरूरी
- पार्टी के विधायक संगठन के साथ सामंजस्य बनाकर चलते हैं या नहीं.
- नरेंद्र मोदी और योगी सरकार के खिलाफ तो नहीं बोल रहे हैं. जो विधायक पार्टी या सरकार के खिलाफ बोलते रहे हैं, उनका टिकट काटा जा सकता है.
- दोनों सरकारों के कामकाज को जमीन तक पहुंचाने में विधायक के योगदान को देखा जा रहा है.
- मौजूदा विधायक की जनता के बीच स्थिति कैसी है. मसलन जनता में विधायक लोकप्रिय हैं या अलोकप्रिय.
- कार्यकर्ताओं के बीच विधायक की छवि को भी टिकट देने में आधार बनाया जाएगा.
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हीरो बाजपेयी ने कहा कि उन्हें सर्वे के बारे में जानकारी नहीं है. लेकिन, एक बात तो तय है कि हमारे यहां उन्हीं को चुनाव लड़ाया जाता है जो जनता की सेवा करते हैं. भाजपा का सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास नारे को साकार करने के लिए काम करते हैं. प्रदेश में यूपी भाजपा के दो करोड़ से अधिक सदस्य हैं. लाखों सक्रिय कार्यकर्ता हैं. पार्टी के पास फीडबैक के बहुत से माध्यम हैं. उसी आधार पर लोगों का टिकट और उनका दायित्व तय किया जाता है. इसलिए मुझे नहीं लगता कि किसी एजेंसी से सर्वे कराने की जरूरत है.
राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय कहते हैं कि 20 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश और देश के विभिन्न हिस्सों में राजनीतिक पार्टियों ने इस प्रकार से सर्वे शुरू किया था. आज भी पार्टियां सर्वे करा रही हैं. इस सर्वे में लोग विधायक के बारे में या फिर भावी उम्मीदवार के बारे में पूरी जानकारी एकत्र करते हैं. इसके रिजल्ट भी आम तौर पर काफी बेहतर आए हैं. पार्टी ने कई क्षेत्रों में सर्वे करा भी लिया है. विधायक के कामकाज, उनका व्यवहार, भाषण देने की शैली, उनके क्षेत्र में हुए कार्यों, उनके रवैया के बारे में जानकारी एकत्र करके प्रोफाइल तैयार की जा रही है. मुझे भी इस बात की सूचना है कि भारतीय जनता पार्टी इस तरह के सर्वे करा रही है. अगर यह सर्वे ठीक से हुआ तो भाजपा के कई विधायकों का टिकट काटा जा सकता है. पिछले साढे चार सालों में पार्टी के कई विधायकों ने अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा किया है. उन पर सवाल खड़े किए हैं. निश्चित तौर पर पार्टी ऐसे विधायकों को तो कतई टिकट नहीं देगी.
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