लखनऊ : साल 2012 से साल 2023 तक भारतीय जनता पार्टी के मुसलमान को आकर्षित करने के अनेक प्रयास विफल हो चुके हैं. भारतीय जनता पार्टी ने 2012 में भी इसी तरह के अभियान चलाए थे इसके बाद लगातार भाजपा मुसलमान को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास बीजेपी करती रहीं मगर कभी भी भाजपा को मुसलमान के 5% से अधिक वोट नहीं मिल सके. सूफी सम्मेलन से लेकर पसमांदा सम्मेलन तक भाजपा कर रही है मगर विशेषज्ञ मानते हैं कि उसकी कोई खास लाभ नहीं होने जा रहा. भारतीय जनता पार्टी के इंटरनल सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि मुसलमान को अधिक मनाने के प्रयास भाजपा को पलटवार भी कर सकते हैं.
भाजपा से नहीं जुड़ रहा मुस्लिम वर्ग : मुसलमान अभी भारतीय जनता पार्टी की ओर नहीं आ रहे हैं. केवल उन्हीं इलाकों में मुसलमान कुछ वोट बीजेपी को दे रहे हैं जहां कोई सशक्त भाजपा नेता मुस्लिम है. वह अपने बूथों और वार्डों में भाजपा को वोट दिला देता है. इसके अलावा नगर निकाय और ग्राम पंचायत में भी मजबूत प्रत्याशियों के दम पर भाजपा को जीत जरूर मिली है, मगर उसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि मुसलमान ने भाजपा को वोट देना शुरू कर दिया है. माना अभी यही जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी मुसलमान से अभी दूर है और उसको नजदीक पहुंचने के लिए जो प्रयास करने होंगे. उनकी वज़ह फिर उसका काडर वोट भाजपा से दूर होने लगेगा.
राम लहर में बनी थी पूर्ण बहुमत की सरकार : भारतीय जनता पार्टी ने सबसे पहले उत्तर प्रदेश में 1991 में जब पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी तो उसके पीछे राम लहर थी. 1990 में राम मंदिर आंदोलन की छाया में भाजपा को जमकर समर्थन मिला था. इसके बाद में पार्टी ने पूर्ण बहुमत से सफलता अर्जित की थी. साल 1992 में जब बाबरी विवादित ढांचा ध्वंस किया गया उसके बाद में उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार गिर गई थी. उसके बाद जब चुनाव हुए तो सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा जातिगत समीकरणों के आगे भाजपा पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बना सकी. इस वजह से मायावती और मुलायम सिंह यादव की मिली जुली सरकार बनी थी. इसके बाद लगातार भाजपा कभी सरकार में आई तो कभी नहीं आई. भारतीय जनता पार्टी को मुख्य रूप से हिंदुओं की पार्टी मना जाने लगा. मगर 2004 से 2017 के बीच जब भाजपा की सरकार नहीं बनी तो अतिरिक्त वोटो की जगत में पार्टी ने मुसलमानों को भी अपनी ओर खींचने का प्रयास शुरू किया. 2012 में भाजपा ने इस तरह के प्रयास किया जब अल्पसंख्यकों का सम्मेलन भाजपा के प्रदेश मुख्यालय तक में आयोजित कराया गया था.
भाजपा कर रही यह प्रयास : 2014 में प्रधानमंत्री की जीत के बाद 2017 में भी मुसलमानों से जुड़े कई मुद्दों पर अल्पसंख्यकों को नजदीक लाने का प्रयास किया गया, मगर चुनाव के बाद सामने आए रिकॉर्ड में या बात स्पष्ट हुई की अधिकतम 5% तक ही वोट बीजेपी को मिले, जिनको मुस्लिम वोट कहा जा सकता था. वर्ष 2022 की चुनावी जीत के बाद लगातार भारतीय जनता पार्टी पसमांदा सम्मेलन, सूफी सम्मेलन और ऐसे ही कई अन्य आयोजन करके अल्पसंख्यक मोर्चा के माध्यम से मुसलमान को नजदीक लाने का प्रयास कर रही है. मगर भाजपा को फिलहाल कोई बड़ी कामयाबी मिलती हुई नहीं दिखाई दे रही अंदर खाने जितने भी सर्व भाजपा ने करवाए हैं उसे यह बात स्पष्ट है कि मुसलमानों को भाजपा को वोट देने में फिलहाल कोई रुचि नहीं है. जैसा मुसलमान बीजेपी से चाहते हैं. अगर वैसे प्रयास ज्यादा किए गए तो भाजपा को हिंदू वोटों का बड़ा नुकसान हो सकता है.
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