लखनऊ: भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी (BJP State President Bhupendra Singh Chowdhary) घोसी उपचुनाव में बीजेपी की हार (BJP defeate in Ghosi bypoll) के बाद जब शुक्रवार की शाम प्रेस वार्ता कर रहे थे, तो उनके पास घोसी की हार की वजह गिनाने का कोई कारण नहीं था. वह लगातार विपक्ष को ईवीएम और प्रशासनिक मशीनरी के दुरूपयोग के आरोप का ताना देते रहे. मगर वह वास्तविक कारण नहीं बिल्कुल भी नहीं बता सके. घोसी में दारा सिंह के खिलाफ जबर्दस्त नाराजगी थी. 2022 में सपा से चुनाव लड़ाई तो उन्होंने जबर्दस्त जीत मिली थी.
वो एक साल में ही भाजपा में शामिल हो गये. इससे मतदाता उनसे नाराज थे. भाजपा का दारा सिंह को अपनी पार्टी में लेने का फैसला गलत साबित हुआ. यह चुनाव पार्टी हार रही है. इसका अंदाजा नामांकन के बाद ही हो चुका था. इसलिए प्रदेश अध्यक्ष सहित आला नेता कैंप कर रहे थे. लगातार कोशिश के बावजूद दारा सिंह को जिताया न जा सका. सपा की रणनीति कामयाब हो गयी और भारी अंतर से दारा सिंह को हार (Defeat of Dara Singh) का सामना करना पड़ा.
दारा सिंह की हार के बाद लखनऊ में प्रेस वार्ता करते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा कि घोसी विधानसभा के मतदाताओं का धन्यवाद है. विपक्ष से सवाल है क्या अब वह ईवीएम पर सवाल खड़ा करेंगे. क्या विपक्ष अब सरकारी मशीनरी पर सवाल उठाएगा. घोसी के परिणाम की हम समीक्षा करेंगे. जनसेवा के संकल्प के साथ आगे बढ़ेंगे.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी के लिए यह सीट और अधिक खास हो चुकी थी. माना जा रहा था कि दारा सिंह चौहान के पार्टी में आने को लेकर भूपेंद्र सिंह चौधरी की महत्वूपर्ण भूमिका है. ऐसे में उनके लिए यह सीट भाजपा का जीतना बहुत जरूरी हो गया था. दूसरी ओर दारा सिंह चौहान जनवरी 2022 में भाजपा छोड़ कर गए थे और जुलाई 2023 में दोबारा पार्टी में आ गए.
ऐसे में स्थानीय भाजपा संगठन में नाराजगी भी बनी हुई थी. इसलिए इस नाराजगी को दूर करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष ने पिछले 10 दिन से क्षेत्र में ही मोर्चा संभाला था. वे लगातार कैंप कर के मुख्य रूप से संगठन संबंधित मीटिंग कर रहे थे. भूपेंद्र सिंह चौधरी के कार्यकाल में पश्चिम उत्तर प्रदेश की एक महत्वपूर्ण सीट खतौली को खो चुकी है. ऐसे में अब चौधरी की खाते में उपचुनाव की दूसरी हार जुड़ गई है.
एके शर्मा भाजपा के दूसरे बड़े नेता हैं जो कि पिछले करीब एक सप्ताह से घोसी में ही डेरा डाल हुए थे. उनके पास बिजली और नगर विकास जैसे दो अहम मंत्रालय हैं. जिन दोनों के अफसरों के भरोसे छोड़कर एके शर्मा घोसी के चुनावी रण में कूद चुके थे. मऊ के रहने वाले एके शर्मा को उनके ही क्षेत्र में भाजपा ने उतार कर खासतौर पर भूमिहार वोटरों को भाजपा के लिए खींचने के वास्ते लगाया हुआ था. ऐसे में उनके लिए भी यह बड़ी चुनौती थी. सूत्रों का कहना है कि बड़ी संख्या में भूमिहार वोट समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को मिला है और एक शर्मा अपने ही जाति के वोट नहीं खींच सके. इस हार के बाद उनके लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है.