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अपने फैसलों पर हमेशा अड़े रहे मुलायम, अयोध्या गोलीकांड के लिए भी नहीं मांगी माफी

समाजवादी पार्टी के संरक्षक पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (big decisions of mulayam Singh yadav) के राजनीतिक जीवन और उनके मुख्यमंत्री काल के दौरान कई ऐसे फैसले हुए जिनकी चर्चा लोग आज भी करते हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में जो फैसले लिए, उस पर आखिरी समय तक डटे भी रहे. मुलायम सिंह यादव ने कभी अयोध्या गोलीकांड (ayodhya golikand) के लिए माफी नहीं मांगी. जानिए क्या थे मुलायम के फैसले, जिसने समय-समय पर राजनीति की दशा और दिशा तय की.

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Published : Oct 10, 2022, 12:36 PM IST

Updated : Oct 10, 2022, 1:03 PM IST

लखनऊ : पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने जब कोई फैसला किया तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. राजनीतिक आलोचनाओं के बावजूद वह अपनी नीतियों पर डटे रहे. अपने फैसले की शुरुआत उन्होंने सबसे पहले अपने कैरियर से शुरू की. मुलायम सिंह यादव के पिता चाहते थे कि वह पहलवानी करें लेकिन उनका मन इसमें लगता नहीं था. उनका मन राजनीति में रमता था. मास्टरी और पहलवानी को छोड़कर जब राजनीति में आए तो अपना एक अलग मुकाम हासिल किया. अपने पहले विधानसभा चुनाव में उन्होंने जीत हासिल कर राजनीति में मजबूत नींव रखी. डॉ राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित मुलायम सिंह यादव ने 1967 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर पहली बार विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे.

राजनीतिक फैसला, जनता दल को तोड़ा : जनता दल में जब फूट हुई तो मुलायम सिंह यादव का सबसे बड़ा और पहला फैसला 1992 में लिया. जनता दल से अलग होकर समाजवादी पार्टी (politics of samajwadi party ) का गठन किया. पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुके मुलायम सिंह यादव का 1992 में यह बड़ा कदम था. इस फैसले की बदौलत उन्होंने यूपी और देश की राजनीति में अलग पहचान बनाई. हालांकि 1989 में ही वह कई दलों के सहयोग से सरकार बनाने में सफल रहे थे. मगर समाजवादी पार्टी के जरिये उन्होंने यूपी और केंद्र की राजनीति को साधे रखा.

वरिष्ठ सपा नेता व विधायक रविदास मेहरोत्रा

अयोध्या में गोलीकांड के लिए कभी माफी नहीं मांगी : 1990 के समय राम मंदिर आंदोलन के दौरान उनके मुख्यमंत्री रहते हुए कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश (ayodhya golikand ) दिया था. यह फैसला काफी विवादित रहा. मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहने के दौरान मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि अयोध्या में जो विवादित जमीन है, उस पर कारसेवा नहीं की जाएगी. विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं और रामभक्तों ने जब कार सेवा शुरू की और उस विवादित जमीन पर कारसेवा का ऐलान किया तो नाराज मुलायम सिंह यादव ने एक बड़ा बयान दिया था कि अयोध्या के विवादित क्षेत्र में 'परिंदा भी पर नहीं मार सकता'. उनके इस बयान का रिएक्शन हुआ और हिंदू संगठन कारसेवा पर अड़ गए. फिर 1990 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान मुलायम सिंह ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था. इस पूरे घटनाक्रम के बाद उन्हें राजनीतिक लाभ हुआ और देश के मुस्लिम समाजवादी पार्टी के समर्थन में आ गई. मगर विरोधी दलों ने उन्हें मुल्ला मुलायम का तगमा दे दिया. अपने राजनीतिक सफर के दौरान मुलायम सिंह ने गोलीकांड के लिए कभी माफी नहीं मांगी.

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1990 में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर विवाद चरम पर था, तब हिंदू संगठन के लोग विवादित क्षेत्र में कारसेवा पर अड़े थे. उस दौरान मुलायम सिंह यादव ने गोली चलाने का आदेश दिया था.

कांग्रेस को न्यूक्लियर डील पर किया था सपोर्ट : साल 2008 में केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार के समय अमेरिका के साथ परमाणु करार को लेकर यूपीए सरकार संकट में आ गई थी. जब वामपंथी दलों ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. ऐसे समय पर मुलायम सिंह यादव यूपीए सरकार के लिए संकटमोचक बने. उन्होंने मनमोहन सिंह सरकार को बाहर से समर्थन देने का फैसला किया और यूपीए सरकार बच गई. राजनीति के जानकार कहते हैं कि उनका यह कदम समाजवादी सोच से अलग था (politics of samajwadi party ). न्यूक्लियर डील के समर्थन के कारण भाजपा, कम्युनिस्ट समेत तत्कालीन विपक्षी दलों ने मुलायम सिंह की आलोचना की मगर वह अपने फैसले पर अड़े रहे.

मुख्यमंत्री के पद पर अखिलेश की ताजपोशी : 2012 में मुलायम सिंह ने सबसे बड़ा फैसला लिया. 2012 के विधानसभा चुनाव हुए तो 403 सीटों में से 226 सीटें समाजवादी पार्टी जीतने में सफल रही थी. पूर्ण बहुमत मिलने के बाद समर्थकों को उम्मीद थी कि मुलायम सिंह यादव चौथी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन उन्होंने बेटे अखिलेश यादव को सीएम बनाकर उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. उनका यह फैसला छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव और चचेरे भाई रामगोपाल यादव को अच्छा नहीं लगा. अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनते ही शिवपाल और समाजवादी पार्टी के बीच दूरियां बढ़ती चली गईं. इस तल्खी का नतीजा यह रहा कि अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव को मंत्रिमंडल से हटा दिया. शिवपाल यादव ने अपनी नई पार्टी का गठन भी कर दिया और तब से लेकर अब तक शिवपाल और अखिलेश यादव एक दूसरे से नाराज ही चल रहे हैं.

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पारिवारिक विरोध के बाद भी मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को सीएम बनाया था.

मुलायम सिंह यादव के काफी करीब रहे वरिष्ठ पत्रकार राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव के पूरे राजनीतिक जीवन में कई फैसले लिए मगर अयोध्या में गोलीकांड (ayodhya golikand ) उनका सबसे बड़ा विवादित फैसला था. हालांकि मुलायम सिंह यादव ने यह फैसला किन परिस्थितियों में लिया था, वह सच भी लोगों के सामने आया नहीं है. बकौल योगेश मिश्र मंदिर आंदोलन से जुड़े लोगों की मुलायम सिंह यादव से बातचीत हुई थी. बातचीत में मुलायम सिंह ने राम मंदिर आंदोलन कर रहे संगठनों को विवादित क्षेत्र के अलावा कही भी कारसेवा करने का प्रस्ताव दिया था. मगर विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोग विवादित जमीन पर ही कारसेवा के लिए अड़े रहे. इससे नाराज मुलायम सिंह ने कहा था कि विवादित जमीन पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता है.

पढ़ें : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का निधन, गृह मंत्री अमित शाह और अखिलेश यादव पहुंचे मेदांता अस्पताल

पढ़ें : मुलायम सिंह यादव: राजनीति में हमेशा कायम रहा मुलायम सिंह का जलवा

लखनऊ : पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने जब कोई फैसला किया तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. राजनीतिक आलोचनाओं के बावजूद वह अपनी नीतियों पर डटे रहे. अपने फैसले की शुरुआत उन्होंने सबसे पहले अपने कैरियर से शुरू की. मुलायम सिंह यादव के पिता चाहते थे कि वह पहलवानी करें लेकिन उनका मन इसमें लगता नहीं था. उनका मन राजनीति में रमता था. मास्टरी और पहलवानी को छोड़कर जब राजनीति में आए तो अपना एक अलग मुकाम हासिल किया. अपने पहले विधानसभा चुनाव में उन्होंने जीत हासिल कर राजनीति में मजबूत नींव रखी. डॉ राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित मुलायम सिंह यादव ने 1967 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर पहली बार विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे.

राजनीतिक फैसला, जनता दल को तोड़ा : जनता दल में जब फूट हुई तो मुलायम सिंह यादव का सबसे बड़ा और पहला फैसला 1992 में लिया. जनता दल से अलग होकर समाजवादी पार्टी (politics of samajwadi party ) का गठन किया. पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुके मुलायम सिंह यादव का 1992 में यह बड़ा कदम था. इस फैसले की बदौलत उन्होंने यूपी और देश की राजनीति में अलग पहचान बनाई. हालांकि 1989 में ही वह कई दलों के सहयोग से सरकार बनाने में सफल रहे थे. मगर समाजवादी पार्टी के जरिये उन्होंने यूपी और केंद्र की राजनीति को साधे रखा.

वरिष्ठ सपा नेता व विधायक रविदास मेहरोत्रा

अयोध्या में गोलीकांड के लिए कभी माफी नहीं मांगी : 1990 के समय राम मंदिर आंदोलन के दौरान उनके मुख्यमंत्री रहते हुए कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश (ayodhya golikand ) दिया था. यह फैसला काफी विवादित रहा. मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहने के दौरान मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि अयोध्या में जो विवादित जमीन है, उस पर कारसेवा नहीं की जाएगी. विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं और रामभक्तों ने जब कार सेवा शुरू की और उस विवादित जमीन पर कारसेवा का ऐलान किया तो नाराज मुलायम सिंह यादव ने एक बड़ा बयान दिया था कि अयोध्या के विवादित क्षेत्र में 'परिंदा भी पर नहीं मार सकता'. उनके इस बयान का रिएक्शन हुआ और हिंदू संगठन कारसेवा पर अड़ गए. फिर 1990 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान मुलायम सिंह ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था. इस पूरे घटनाक्रम के बाद उन्हें राजनीतिक लाभ हुआ और देश के मुस्लिम समाजवादी पार्टी के समर्थन में आ गई. मगर विरोधी दलों ने उन्हें मुल्ला मुलायम का तगमा दे दिया. अपने राजनीतिक सफर के दौरान मुलायम सिंह ने गोलीकांड के लिए कभी माफी नहीं मांगी.

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1990 में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर विवाद चरम पर था, तब हिंदू संगठन के लोग विवादित क्षेत्र में कारसेवा पर अड़े थे. उस दौरान मुलायम सिंह यादव ने गोली चलाने का आदेश दिया था.

कांग्रेस को न्यूक्लियर डील पर किया था सपोर्ट : साल 2008 में केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार के समय अमेरिका के साथ परमाणु करार को लेकर यूपीए सरकार संकट में आ गई थी. जब वामपंथी दलों ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. ऐसे समय पर मुलायम सिंह यादव यूपीए सरकार के लिए संकटमोचक बने. उन्होंने मनमोहन सिंह सरकार को बाहर से समर्थन देने का फैसला किया और यूपीए सरकार बच गई. राजनीति के जानकार कहते हैं कि उनका यह कदम समाजवादी सोच से अलग था (politics of samajwadi party ). न्यूक्लियर डील के समर्थन के कारण भाजपा, कम्युनिस्ट समेत तत्कालीन विपक्षी दलों ने मुलायम सिंह की आलोचना की मगर वह अपने फैसले पर अड़े रहे.

मुख्यमंत्री के पद पर अखिलेश की ताजपोशी : 2012 में मुलायम सिंह ने सबसे बड़ा फैसला लिया. 2012 के विधानसभा चुनाव हुए तो 403 सीटों में से 226 सीटें समाजवादी पार्टी जीतने में सफल रही थी. पूर्ण बहुमत मिलने के बाद समर्थकों को उम्मीद थी कि मुलायम सिंह यादव चौथी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन उन्होंने बेटे अखिलेश यादव को सीएम बनाकर उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. उनका यह फैसला छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव और चचेरे भाई रामगोपाल यादव को अच्छा नहीं लगा. अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनते ही शिवपाल और समाजवादी पार्टी के बीच दूरियां बढ़ती चली गईं. इस तल्खी का नतीजा यह रहा कि अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव को मंत्रिमंडल से हटा दिया. शिवपाल यादव ने अपनी नई पार्टी का गठन भी कर दिया और तब से लेकर अब तक शिवपाल और अखिलेश यादव एक दूसरे से नाराज ही चल रहे हैं.

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पारिवारिक विरोध के बाद भी मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को सीएम बनाया था.

मुलायम सिंह यादव के काफी करीब रहे वरिष्ठ पत्रकार राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव के पूरे राजनीतिक जीवन में कई फैसले लिए मगर अयोध्या में गोलीकांड (ayodhya golikand ) उनका सबसे बड़ा विवादित फैसला था. हालांकि मुलायम सिंह यादव ने यह फैसला किन परिस्थितियों में लिया था, वह सच भी लोगों के सामने आया नहीं है. बकौल योगेश मिश्र मंदिर आंदोलन से जुड़े लोगों की मुलायम सिंह यादव से बातचीत हुई थी. बातचीत में मुलायम सिंह ने राम मंदिर आंदोलन कर रहे संगठनों को विवादित क्षेत्र के अलावा कही भी कारसेवा करने का प्रस्ताव दिया था. मगर विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोग विवादित जमीन पर ही कारसेवा के लिए अड़े रहे. इससे नाराज मुलायम सिंह ने कहा था कि विवादित जमीन पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता है.

पढ़ें : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का निधन, गृह मंत्री अमित शाह और अखिलेश यादव पहुंचे मेदांता अस्पताल

पढ़ें : मुलायम सिंह यादव: राजनीति में हमेशा कायम रहा मुलायम सिंह का जलवा

Last Updated : Oct 10, 2022, 1:03 PM IST
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