लखनऊ: देश में साइबर फ्रॉड के शिकार की संख्या हर दिन बढ़ रही है. सबसे अधिक उत्तर प्रदेश के लोग साइबर क्राइम का शिकार होते हैं. साइबर क्रिमिनल न केवल लोगों को आर्थिक नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि लोगों की छवि भी धूमिल कर रहे हैं. ऐसे में साइबर क्राइम से हुए वित्तीय नुकसान की भरपाई साइबर इंश्योरेंस करता है. जी हां बढ़ते साइबर क्राइम को देखते हुए आज साइबर इंश्योरेंस पॉलिसी बेहद जरूरी हो गई है. ऐसी पॉलिसी में पॉलिसी धारक को विभिन्न प्रकार के साइबर क्राइम और फ्रॉड के खिलाफ कवर दिया जाता है.
साइबर ठगी में वित्तीय हानि का कवर देती हैं इंश्योरेंस कंपनियां
इंश्योरेंस सेक्टर के विशेषज्ञ शुभम दीक्षित ने बताया कि मौजूदा समय साइबर क्राइम से जूझ रहा है. हर रोज ग्राहक बैंकों में शिकायत लेकर पहुंचते हैं कि उनके एकाउंट से बिना उनकी जानकारी के पैसे निकल गए या उनके साथ धोखाधड़ी कर खाता खाली कर दिया है. ऐसे में लोगों को बचाने के लिए कई इंश्योरेंस कंपनी साइबर इंश्योरेंस करती है. जैसे कि एक बैंक साइबर सिक्योर नाम की पॉलिसी करती है, जिसमें वो ये दावा करती है कि कस्टमर के एकाउंट में जमा 10 लाख रुपये तक यदि साइबर फ्रॉड के चलते चले जाते हैं, तो कंपनी उसका कवर देगी.
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सोशल मीडिया एकाउंट हैक होने पर भी इंश्योरेंस से मिलेगी मदद
शुभम का कहना है कि कंपनियां न सिर्फ एकाउंट में रुपये का कवर देती है बल्कि सोशल मीडिया एकाउंट जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्ट्राग्राम और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट हैक हो जाते हैं तो उसे सही करवाने के लिए आईटी एक्सपर्ट की मदद लेने में 70 हजार तक की फीस भी कंपनी ही निर्वहन करती है. इतना ही नहीं किसी आईटी कंपनी या फिर किसी भी प्रकार की कंपनी में साइबर अटैक होता है तो उनका सारा डाटा करप्ट हो जाता है. इसके चलते कंपनी न ही कोई काम कर सकती है, जिससे उसे आर्थिक नुकसान भी होता है. ऐसे में साइबर इंश्योरेंस बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो आर्थिक नुकसान की भरपाई करती है.
साइबर इंश्योरेंस लेते वक्त क्या रखें ध्यान
शुभम दीक्षित के मुताबिक साइबर इंश्योरेंस लेते वक्त कंपनी द्वारा दिए जा रहे प्लान को अच्छी तरह समझना चाहिए. यह पता होना चाहिए की पॉलिसी में क्या-क्या कवर है. आमतौर पर साइबर इंश्योरेंस पॉलिसी 10 से 15 तरह के साइबर खतरों से सुरक्षा प्रदान करते हैं. वो कहते है कि कई कंपनियां डिडक्टिबल की शर्तें लागू करती हैं. इसमें पॉलिसीधारक को नुकसान की भरपाई पहले स्वयं करनी पड़ती है. उसके बाद बीमा कंपनियां भुगतान करती हैं. जबकि कई कंपनियों का प्रीमियम कम होता है, लेकिन डिडक्टिबल ज्यादा.
किस तरह होती है साइबर ठगी?
फिशिंग या स्पूफिंगः साइबर क्रिमनल्स मौजूदा समय ठगी करने के लिए फिशिंग या स्पूफिंग का काफी प्रयोग कर रहे हैं. इसमें साइबर ठग शिकार को असली वेबसाइट जैसी ही एक फेक वेबसाइट का लिंक भेजते है. उसे खोलने पर ठग आपकी गोपनीय जानकारी को चुरा लेते हैं, जैसे बैंक खाता डिटेल और पहचान.
मालवेयरः यह एक प्रकार का virus होता है, जो कंप्यूटर, मोबाइल और टेबलेट से निजी जानकारियां चुराकर साइबर क्रिमनल्स को भेज देता है.
सिम स्वैप ः साइबर क्रिमनल्स तकनीक की मदद से असली सिम की जगह डुप्लिकेट सिम बना लेते है. इस डुप्लीकेट सिम की मदद से बैंक खाते से ऑनलाइन धनराशि ट्रांसफर कर ली जाती है.
क्रेडेंशियल स्टफिंगः इसके जरिये ठग शिकार की निजी जानकारियों को इकट्ठा कर लेते हैं, जिसमें आमतौर पर उपयोगकर्ता का नाम, ईमेल आइडी या अकाउंट पासवर्ड होता है. उसके बाद उसका प्रयोग कर वित्तीय नुकसान पहुंचा देते है.
यूपी में दर्ज होते हैं सबसे अधिक साइबर क्राइम
बता दें देश में सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में साइबर क्रिमनल्स लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में 6280, 2019 में 11416 और 2020 में 11097 मामलें साइबर क्राइम से जुड़े दर्ज हुए थे. साल 2020 में एटीएम से जुड़े 203, ऑनलाइन बैंकिंग फ्रॉड के 358, ओटीपी फ्रॉड के 89 मामलें दर्ज हुए थे. वहीं कंप्यूटर हैक के 1878 , प्राइवेसी वॉइलेंस के 533 व ऑनलाइन धोखाधड़ी के 371 मामले दर्ज हुए थे. ये सभी मामलें देश के अन्य राज्यों से अधिक थे.
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