लखनऊ : यूपी संगीत नाटक अकादमी की ओर से बसंत पंचमी पर पदमविभूषण बिरजू महाराज की स्मृति में नृत्यांजलि कार्यक्रम का आयोजन हुआ. जिसमें अकादमी के कलाकारों ने कथक नृत्य कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. अकादमी के संत गाडगे जी महाराज सभागार में कार्यक्रम का आयोजन हुआ. कार्यक्रम में बतौर अतिथि अकादमी की पूर्व अध्यक्ष डॉ. पूर्णिमा पांडेय, अल्पिका संस्था की मुखिया उमा त्रिगुनायत व पं बिरजू महाराज की शिष्या रेनू शर्मा उपस्थित हुईं. अकादमी सचिव तरुण राज ने दीप जलाकर कार्यक्रम का उद्घाटन किया.
इस मौके पर अकादमी सचिव तरूण राज ने कहा कि पं बिरजू महाराज का जन्म बसंत पंचमी को हुआ था. हम आज बसंत पंचमी पर उनके जन्मदिवस पर उन्हें याद कर रहे हैं. तरूण राज ने उनकी स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि मद्रास में वर्ष 1985 के दौरान उनसे पहली भेंट हुई थी.
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इसके बाद रंगमंच यात्रा के दौरान उनसे नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा नई दिल्ली में भेंट हुई. उन्होंने मुझे खुद के साथ शामिल कर कथक सीखने की सलाह दी थी. उन्होंने कहा कि पं बिरजू महाराज का व्यक्तित्व विशाल था. तरुण राज ने 4 फरवरी को जन्में पंडित भीमसेन जोशी को भी श्रद्धासुमन अर्पित की.
डॉ. पूर्णिमा पांडेय ने कहा कि जिस श्रेणी के पं बिरजू महाराज थे. उस श्रेणी के कलाकार बार-बार नहीं, सदियों में जन्म लेते हैं. अकादमी के कथक केंद्र की स्थापना उन्हीं के प्रयासों से हुई थी. कार्यक्रम में उमा त्रिगुनायत और रेनू शर्मा ने भी कथक सम्राट बिरजू महाराज को श्रद्धासुमन अर्पित किया.
कार्यक्रम की शुरुआत कलाकारों ने पदम विभूषण पं बिरजू महाराज की लिखी रचना गुरू वंदना की मनमोहक प्रस्तुति से की. राग भूपाली और ताल कहरवा में ढली वंदना में कलाकारों ने गुरू के बताए मार्ग पर चलकर लक्ष्य तक पहुंचने की संदेश को बखूबी प्रदर्शित किया. लखनऊ घराने के पारंपरिक कथक की शानदार झलक पेश करते हुए कथक नृत्यांगना नीता जोशी व श्रुति शर्मा ने तीन ताल के विलंबित व मध्य लय में लखनऊ घराने की खास उठान, आमद, तिहाई, परमेलू, टुकड़े व परनों की मनमोहक प्रस्तुति दी.
पंं. बिन्दादीन महाराज की रची ठुमरी पर कलाकारों ने प्रभावी प्रस्तुति दी. राग-श्याम कल्याण व ताल-दादरा में निबद्ध ठुमरी काहे रोकत डगर प्यारे, नंदलाल मेरी... पर नीता जोशी व श्रुति शर्मा ने मनमोहक प्रस्तुति देकर पूरा वातावरण कत्थकमय कर दिया. लखनऊ घराने के कथक नृत्य के साहित्य को पं. बिन्दादीन महाराज ने समृद्ध बनाया. उन्होंने लगभग 1500 ठुमरियों की रचना की. बिन्दादीन महाराज के रचे भजन, ठुमरी व तरानों को पं बिरजू महाराज ने संगीतबद्ध किया.
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