लखनऊ : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में लोगों ने पॉलिथीन प्रतिबंध का पालन करने की अपील की. हालांकि इस अपील का कोई असर होता दिखाई नहीं देता. प्रदेश में धड़ल्ले से पॉलिथीन की खरीद-फरोख्त और इस्तेमाल जारी है. यह पहली बार नहीं है. वर्ष 2000 से प्रदेश में पॉलिथीन प्रतिबंध की कोशिशें होती रही हैं. इस दौरान प्रदेश में भाजपा, सपा, बसपा आदि पार्टियां सत्ता में रहीं. पॉलिथीन से होने वाला नुकसान की चिंता दिखाते हुए इन सरकारों ने फैसले तो किए, लेकिन धरातल पर उनका अनुपालन करना भूल गए. पॉलिथीन पर पाबंदी की कवायद को 23 साल हो गए, पर स्थितियां जहां की तहां हैं. साफ है कि इस दिशा में किसी भी सरकार ने न तो कोई विकल्प तलाशा और न ही पाबंदी के लिए सख्ती की. बहरहाल खतरे के नतीजे सामने हैं.
15 जुलाई 2018 को योगी आदित्यनाथ की सरकार ने पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की और इसे चरणवार कैसे लागू किया जाएगा, इसका खाका भी जनता के सामने रखा. 15 जुलाई से शुरू पहले चरण में शहरी क्षेत्रों में पॉलिथीन के भंडारण, निर्माण, बिक्री और आयात-निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का निर्णय किया गया था. दूसरे चरण में 15 अगस्त 2018 से पॉलिथीन और थर्मोकोल के थाली-प्लेट आदि को प्रतिबंधित किया गया था. दो अक्टूबर 2018 से सभी प्रकार के पॉलिथीन बैग आदि को प्रतिबंधित कर दिया गया. स्वाभाविक है कि इस समय लोगों में पॉलिथीन के विकल्प तलाशने शुरू किए. कुछ दिन तक दुकानों आदि पर कार्रवाई की सूचनाएं आईं, लेकिन बाद में धीरे-धीरे सरकारी तंत्र ने इसे अनदेखा करना शुरू कर दिया. आवक पर लगाम लगी न ही बिक्री पर. स्वाभाविक है कि मुख्यमंत्री का आदेश सिर्फ किताबी साबित हुआ. दुखद यह है कि पांच साल भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है.
केंद्र सरकार की घोषणा का भी नहीं हुआ असर, पर्यावरणविद् सरकार के रवैए से नाराज |
|
उत्तर प्रदेश में दैनिक उपयोग के लिए दुकानों आदि पर इस्तेमाल होने वाली 50 माइक्रोन से पतली पॉलिथीन का व्यवसाय लगभग सवा सौ करोड़ रुपये का बताया जाता है. यह एक बड़ा व्यवसाय है, जिससे हर छोड़ा-बड़ा व्यापारी और आम जनता जुड़ी है. लोग कपड़ों के थैलों और कागज का उपयोग छोड़ चुके हैं. यही कारण है कि पॉलिथीन पर लोगों की निर्भरता कम नहीं हो रही है. यदि सरकार की ओर से सख्ती की जाए तो इसके विकल्पों पर भी काम हो. हालांकि इसे लेकर कोई भी गंभीर नहीं है. सभी जानते हैं कि पॉलिथीन आवारा पशुओं और पर्यावरण के लिए बहुत ही खतरनाक है. यह कभी नष्ट नहीं होती और फसलों की उर्वरा शक्ति को भी नष्ट करती है. पॉलिथीन पर प्रतिबंध को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी आदेश दिया था, लेकिन सरकारों ने इस पर रोक को लेकर कभी भी गंभीरता नहीं दिखाई. नियम के अनुसार किसी व्यक्ति या विक्रेता के पास यदि पॉलिथीन बैग पाया जाता है तो ऐसे लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है. इसे बनाने और बेचने पर एक लाख रुपये जुर्माने अथवा एक साल तक कैद का नियम है. निजी तौर पर भी पॉलिथीन रखने पर एक हजार से 10 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया था.
इससे पहले वर्ष 2000 में 20 माइक्रोन से पतली पॉलिथीन प्रतिबंधित की गई थी, लेकिन तब भी इसका अनुपालन ठीक से नहीं किया गया था. योगी सरकार से पहले सत्ता में रही सपा सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने भी 2015 में पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाया था. उस समय भी तत्कालीन सरकार नियमों का पालन नहीं करा पाई. जनवरी 2016 को कोर्ट के आदेश पर प्रदेश में पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाया गया. उस समय सपा सरकार ने प्रतिबंध के उल्लंघन पर पांच वर्ष की सजा अथवा एक लाख रुपये का जुर्माने का प्रावधान किया. इस बार हर प्रकार के कैरी बैग व इस प्रकार की अन्य सामग्री को प्रतिबंध में शामिल किया गया. हालांकि नतीजा इस कवायद का भी कोई नहीं निकला.
यह भी पढ़ें : त्रिपुरा : पॉलिथीन मुक्ति अभियान को लगे पंख, यहां बन रही प्लास्टिक कचरे से सड़क
बरेली: पॉलिथीन के प्रयोग पर सख्ती, बिक्री किया तो लगेगा भारी जुर्माना