लखनऊ: आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है. यह विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है. आयुर्वेद का अर्थ है, जीवन से सम्बन्धित ज्ञान. आयुर्वेद, भारतीय आयुर्विज्ञान है. आयुर्वेद का अपना अलग महत्व है और समय-समय पर हमें इसका उदाहरण मिलता भी रहता है. कोरोना काल के दौरान जहां दुनिया भर के लोग इस बीमारी से बचने के लिए कई दवाइयों का प्रयोग कर रहे थे, वहीं भारत में काढ़े की मदद से लोग खुद को इस बीमारी से बचा रहे थे. डब्ल्यूएचओ ने भी यह स्वीकार किया है कि काढ़ा पीने से शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है. इतना ही नहीं आयुर्वेद भी लगातार कोरोना से लड़ने में शोध कर रहा है. जल्द ही उम्मीद है कि इस पर उसे सफलता भी मिलेगी. आयुर्वेद दिवस के मौके पर ईटीवी भारत ने इसकी उपयोगिता के बारे में विशेषज्ञों की राय ली. पेश है रिपोर्ट...
कोरोना महामारी में भी कारगर साबित हुआ आयुर्वेद
लोकबंधु अस्पताल में आयुर्वेद के विशेषज्ञ डॉ आदिल रईस ने बताया कि कोरोना महामारी ने आयुर्वेद ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है. शहर में कोरोना जब पीक पर था, तब आयुर्वेद से कोरोना के इलाज के लिए 120 संक्रमित मरीजों पर स्टडी की गई थी. इसमें एक ग्रुप में मरीजों को काढ़ा दिया गया था और दूसरे ग्रुप के मरीजों को अदरक, लहसुन और सोंठ का पेस्ट. रिसर्च के मुताबिक, आयुर्वेद से इलाज करवाने वाले मरीजों की रिपोर्ट 5-7 दिनों में ही निगेटिव आ गई थी. वहीं काढ़े का इस्तेमाल करने के कारण कोविड से होने वाले निमोनिया के दुष्प्रभाव भी इन मरीजो में कम पाए गए थे. आयुर्वेद के इलाज से कोरोना से लड़ने में सपोर्ट भी मिला और जल्दी निगेटिव होने के कारण कम्युनिटी स्प्रेड का खतरा भी कम हुआ.
आयुर्वेद ने बचाई कई लोगों की जान
डॉ आदिल ने बताया कि काढ़े के रिसर्च पेपर के लिए डेटा तैयार कर अंतरराष्ट्रीय पब्लिकेशन के लिए भेजा गया है. जल्द ही उसके रिजल्ट आने की उम्मीद है. आयुर्वेद की दवाओं की मदद से कोरोना के कई मरीजों की जान बचाने में सफलता भी मिली है. इतना ही नहीं इसका सेवन करने वालों के ठीक होने की दर भी काफी अच्छी रही है. किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद डॉक्टर सुनीत कुमार मिश्र ने बताया कि आयुष की गाइडलाइंस और आयुर्वेद औषधियों का इस्तेमाल करने वालो को न के बराबर कोरोना हुआ है. इसका सेवन करने वाले जिन लोगों को कोरोना हुआ है. उन पर कोरोना का असर बहुत ज्यादा नहीं रहा है. उनकी रिपोर्ट 7-10 दिन में ही निगेटिव आ रही थी. वहीं आयुर्वेद का एम्स कहे जाने वाले ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद की एक रिर्पोट के मुताबिक, आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का प्रयोग करने वालों की रिकवरी रेट 90 प्रतिशत तक रही है.