लखनऊ: अटल यानि प्रखर राजनेता, अटल यानि मुखर वक्ता, अटल यानि लोकप्रिय जननेता, अटल यानि राष्ट्रवादी कवि, अटल होना अपने आप में एक अध्याय है. एक ऐसा राजनेता जो सभी को साथ लेकर चलता था, जिसने कभी पार्टी की राजनीति नहीं की, दलों से उपर उठकर राष्ट्र को सर्वोपरि रखा. शायद इसीलिए ऐसा कोई राजनीतिक दल नहीं है, जिसमें उनके चाहने वाले न हों. वो हमेशा कहते थे कि 'बाधाएं आती हैं आएं, घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं, निज हाथों में हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा'.
देश के नौवें नेता जो गैर-कांग्रेसी होकर भी बने तीन बार प्रधानमंत्री
अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद को पारदर्शी बनाए रखा, विचारधाराओं की भिन्नता के बावजूद दूसरी पार्टियों को साथ गठबंधन सरकार बना कर कार्यकाल पूरा किया. अटल, एक ऐसा नायाब व्यक्तित्व जो विपक्षियों से अपनी आलोचना सुनने में रत्ती भर गुरेज नहीं करते बल्कि उनकी बात को बड़ी तल्लीनता से सुनते. अपने प्रधानमंत्री काल के दौरान कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश को एक धागे में जोड़ते रहे. उन्होंने 'स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना' और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 'प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना' की शुरुआत की. राजनीतिक स्तर पर भी अलगाववादी नेताओं को साथ लाने का भरकस प्रयास किया. मिसाल के तौर पर उन्होंने अलगाववादियों से बात करने की तरजीह दी तो दक्षिण में हर बड़े नेता को सुना और अपने साथ जोड़ा. कहते हैं कि अलगाववादियों से बातचीत को लेकर सवाल उठा के क्या बातचीत संविधान के दायरे में होगी तो उनका जवाब था, नहीं, इंसानियत के दायरे में होगी. तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी जब तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो वह देश के ऐसे नौवें नेता थे जो गैर-कांग्रेसी होकर भी इस पद पर पहुंचे और पूरे पांच साल तक सरकार चलाई. जब वाजपेयी को भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान हुआ तो हर एक नेता और शख्सियत ने उनको इस सम्मान के लिए सबसे योग्य व्यक्ति माना.
लखनऊ को बनाई कर्मभूमि
साल था 1952, जब अटल ने लखनऊ लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव लड़ा और हार गए, मगर 1957 में तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ा और बलरामपुर संसदीय सीट जीतकर वह लोकसभा पहुंचे. 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ सीट के साथ-साथ गांधीनगर से चुनाव लड़ा और दोनों ही जगहों से जीत हासिल की. इसके बाद वाजपेयी ने लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बना ली.
हिन्दी पर अटल जी ने बहुत काम किया. उन्होंने हिंदी को विश्वपटल पर मान दिलाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण दिया, जो चर्चा का विषय बना रहा. उन्होंने शब्दों का एसा सटीक चयन किया कि यूएन के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर तालियां बजाईं.
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विरोधी भी मानते थे वाकपटुता और तर्कों का लोहा
शब्दों में ऐसा जादू कि विरोधी भी उनकी वाकपटुता और तर्कों का लोहा मानते थे. 1994 में जब कांग्रेस ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारतीय पक्ष रखने वाले प्रतिनिधिमंडल की नुमाइंदगी अटल जी को सौंपी तो किसी विपक्षी नेता पर सरकार का एसा भरोसा आश्चर्य से देखा गया.
दुनिया को दिया संदेश
पोखरण में परमाणु परीक्षण कर उन्होंने भारत को दुनिया के सामने मजबूती से पेश किया साथ ही ये संदेश भी दिया कि भारत वैश्विक स्तर पर मजबूती से खड़ा है. वैसे अटल जी के दिल में राजधर्म का पालन करने वाला राजनेता तो था ही साथ ही एक कवि भी बसता था. ये उनको दूसरे नेताओं से अलग और खास बनाता था. स्वतंत्रता प्राप्ति के ठीक 16वें दिन राष्ट्रधर्म का पहला अंक निकला, जिसमें उनकी कविता 'हिंदू तन मन हिंदू जीवन, हिन्दू रग-रग, हिन्दू मेरा परिचय' राजधर्म के पहले अंक में प्रथम पृष्ठ पर छपी थी.
'मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं'
वाजपेयी ने नई नीतियों और विचारों के दम पर भारतीय अर्थव्यवस्था को विकास के नए आयाम दिए. पाकिस्तान के साथ ही अमेरिका के साथ मित्रवत रिश्ते बनाए रखने के लिए द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत किया. 16 अगस्त 2018 को राजनीति का ये पुरोधा हम सबको छोड़ कर चला गया. 'मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, जिन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं, मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?' ये कहने वाले अटल थे और वो हमेशा अटल रहेंगे क्योंकि अटल कभी मरते नहीं हैं. कर्म से राजनेता और मन से कवि अटल बिहारी वाजपेयी ने 'काल के कपाल पर' जो लिखा उसे मिटाया नहीं जा सकता. दलगत राजनीति से उठकर राष्ट्रभावना के जो गीत उन्होंने लिखे उसे देश हमेशा गुनगुनाता रहेगा.