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इण्डियन स्टैटिस्टिकल सर्विस में चयनित हुईं लखनऊ की अंशिका वाजपेयी

राजधानी की अंशिका बाजपेई ने यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन द्वारा आयोजित इंडियन स्टैटिस्टिकल सर्विस की परीक्षा उत्तीर्ण की है. आईएसएस भारत की सेंट्रल सिविल सर्विसेज के तहत आने वाली सिविल सर्विस है.

इण्डियन स्टैटिस्टिकल सर्विस में चयनित हुईं अंशिका वाजपेयी
इण्डियन स्टैटिस्टिकल सर्विस में चयनित हुईं अंशिका वाजपेयी
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Published : Dec 16, 2021, 10:09 PM IST

लखनऊः राजधानी की अंशिका बाजपेई ने यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (Union Public Service Commission) की आयोजित इंडियन स्टैटिस्टिकल सर्विस (Indian Statistical Service ) की परीक्षा उर्तीण की है. इण्डियन स्टेटिस्टिकल सर्विस की देशभर में मात्र 11 सीटें हैं. ऐसे में इस अत्यन्त प्रतिस्पर्धी परीक्षा में चयन काफी चुनौतीपूर्ण होता है.

अंशिका ने सीएमएस कानपुर रोड कैम्पस में साल 2008 में कक्षा-6 में एडमीशन लिया और वर्ष 2015 में 91.25 प्रतिशत अंको के साथ 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके उपरांत इन्होंने गणित, स्टैटिस्टिक्स एवं कम्प्यूटर में स्नातक और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी से स्टैटिस्टिकल में परास्नातक की डिग्री ली है.

अपनी सफलता के बारे में बताते हुए अंशिका ने कहा कि स्कूल के दिनों से ही गणित मेरा प्रिय विषय रहा है. लेकिन उच्चशिक्षा के लिए मैं लखनऊ से बाहर नहीं जाना चाहती हूं. जिसको देखते हुए मैंने बीटेक के बजाय बी.एस.सी. की पढ़ाई की. अंशिका ने कहा कि मैं सेल्फ-स्टडी पर भरोसा करती हूं, इसीलिए मैंने कोचिंग इत्यादि का सहारा लेने के बजाय कड़ी मेहनत से आईएसएस की तैयारी की. अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि ग्रामीण परिवेश से होने की वजह से मैं अंग्रेजी में कमजोर थी. लेकिन मेरे शिक्षकों ने मुझे सदैव स्वयं पर भरोसा रखना सिखाया. जिसकी वजह से मुझमें आत्मविश्वास का विकास हुआ.

शिक्षाविद् डाक्टर जगदीश गांधी ने कहा कि अंशिका की यह सफलता इस मायने में बहुत महत्वपूर्ण है कि उन्होंने कठिन संघर्षो और दुष्वारियों को पीछे छोड़ते हुए अपना लक्ष्य हासिल किया है. अंशिका की मां का साल 2020 में निधन हो गया. जबकि कोविड लहर के दौरान उसके पिताजी भी नहीं रहे. ऐसे में, दो छोटे भाईयों की देखभाल करने के साथ ही उसने माता-पिता के सपनों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

इसे भी पढ़ें- बाराबंकी में पहली बार लगा कश्मीर से कन्याकुमारी तक के खिलाड़ियों का जमावड़ा

अपने जीवन का उद्देश्य बताते हुए अंशिका कहती हैं कि समाज सेवा करके मैं समाज से मिले सहयोग को वापस लौटाना चाहती हूं. छात्रों को सफलता का सूत्र बताते हुए वह कहती है कि असफलता के सिवा इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है. इसीलिए हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए. अपने लक्ष्य को पाने के लिए हर बार अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का प्रयास करना चाहिए.

लखनऊः राजधानी की अंशिका बाजपेई ने यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (Union Public Service Commission) की आयोजित इंडियन स्टैटिस्टिकल सर्विस (Indian Statistical Service ) की परीक्षा उर्तीण की है. इण्डियन स्टेटिस्टिकल सर्विस की देशभर में मात्र 11 सीटें हैं. ऐसे में इस अत्यन्त प्रतिस्पर्धी परीक्षा में चयन काफी चुनौतीपूर्ण होता है.

अंशिका ने सीएमएस कानपुर रोड कैम्पस में साल 2008 में कक्षा-6 में एडमीशन लिया और वर्ष 2015 में 91.25 प्रतिशत अंको के साथ 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके उपरांत इन्होंने गणित, स्टैटिस्टिक्स एवं कम्प्यूटर में स्नातक और बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी से स्टैटिस्टिकल में परास्नातक की डिग्री ली है.

अपनी सफलता के बारे में बताते हुए अंशिका ने कहा कि स्कूल के दिनों से ही गणित मेरा प्रिय विषय रहा है. लेकिन उच्चशिक्षा के लिए मैं लखनऊ से बाहर नहीं जाना चाहती हूं. जिसको देखते हुए मैंने बीटेक के बजाय बी.एस.सी. की पढ़ाई की. अंशिका ने कहा कि मैं सेल्फ-स्टडी पर भरोसा करती हूं, इसीलिए मैंने कोचिंग इत्यादि का सहारा लेने के बजाय कड़ी मेहनत से आईएसएस की तैयारी की. अपने स्कूल के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि ग्रामीण परिवेश से होने की वजह से मैं अंग्रेजी में कमजोर थी. लेकिन मेरे शिक्षकों ने मुझे सदैव स्वयं पर भरोसा रखना सिखाया. जिसकी वजह से मुझमें आत्मविश्वास का विकास हुआ.

शिक्षाविद् डाक्टर जगदीश गांधी ने कहा कि अंशिका की यह सफलता इस मायने में बहुत महत्वपूर्ण है कि उन्होंने कठिन संघर्षो और दुष्वारियों को पीछे छोड़ते हुए अपना लक्ष्य हासिल किया है. अंशिका की मां का साल 2020 में निधन हो गया. जबकि कोविड लहर के दौरान उसके पिताजी भी नहीं रहे. ऐसे में, दो छोटे भाईयों की देखभाल करने के साथ ही उसने माता-पिता के सपनों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

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अपने जीवन का उद्देश्य बताते हुए अंशिका कहती हैं कि समाज सेवा करके मैं समाज से मिले सहयोग को वापस लौटाना चाहती हूं. छात्रों को सफलता का सूत्र बताते हुए वह कहती है कि असफलता के सिवा इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है. इसीलिए हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए. अपने लक्ष्य को पाने के लिए हर बार अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का प्रयास करना चाहिए.

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