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राजधानी की अमीरुद्दौला लाइब्रेरी बन रही स्मार्ट, एक लाख 60 हजार किताबें होंगी ऑनलाइन - एक लाख 60 हजार किताबें होंगी ऑनलाइन

राजधानी लखनऊ की अमीरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी अब स्मार्ट हो रही है. इस कड़ी में पुस्तकालय की करीब एक लाख 60 हजार पुस्तकें ऑनलाइन हो जाएंगी. लाइब्रेरियन शशि कला सिन्हा के अनुसार लाइब्रेरी में 1687 से लेकर 1982 तक की किताबों का डिजिटाइलेशन हो रहा है.

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Published : Apr 26, 2023, 10:28 PM IST

राजधानी की अमीरुद्दौला लाइब्रेरी बन रही स्मार्ट, एक लाख 60 हजार किताबें होंगी ऑनलाइन.

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के करीब एक शताब्दी वर्ष पुरानी व प्राचीनतम पुस्तकालयों में से एक अमीरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी अब पूरी तरह से स्मार्ट हो रही है. राजधानी के यह पुस्तकालय जितना पुराना है उतना ही जहां पर लिखी हुई किताबें व पांडुलिपि पुरानी है. इस पुस्तकालय में हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत, अरबी, फारसी और बंगला भाषा की करीब एक लाख 60 हजार पुस्तकें हैं. जो इन भाषाओं के विद्वानों के द्वारा लिखी गई हैं. यह किताबें आज की तारीख में देश के किसी भी दूसरे पुस्तकालय में मिलना आसान नहीं है. यहां तक कि यहां पर गजट में अपने ओरिजिनल फॉर्म में रखे हुए हैं.

राजधानी की अमीरुद्दौला लाइब्रेरी बन रही स्मार्ट, एक लाख 60 हजार किताबें होंगी ऑनलाइन.
राजधानी की अमीरुद्दौला लाइब्रेरी बन रही स्मार्ट, एक लाख 60 हजार किताबें होंगी ऑनलाइन.

1687 से लेकर 1982 तक की किताबें होंगी डिजिटल


अमीरुद्दौला पुस्तकालय की लाइब्रेरियन शशि कला सिन्हा ने बताया कि लखनऊ स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत इस पुस्तकालय को स्मार्ट सिटी योजना के तहत पूरी तरह से डिजिटल किया जा रहा है. इस कड़ी में 1687 से लेकर 1982 तक की किताबें डिजिटल की जाएंगी. पुस्तकालय में रखी दुर्लभ किताबों को डिजिटल करने में बड़ी सावधानी के साथ ऑनलाइन करने का काम किया जा रहा है. जो किताबें जिस भाषा में मौजूद हैं उसको उसी भाषा में ऑनलाइन किया जा रहा है. इस प्रक्रिया में डिस्टलाइजेशन का काम जिस भाषा की किताब उस भाषा के विशेषज्ञ के द्वारा ही किया जा रहा है. ऑनलाइन होने के बाद यह किताबें बिलकुल वैसे ही पढ़ा जा सकेंगी जैसे वे हाथ में लेकर किताब पढ़ रहे हों. इस काम में पूरी टीम लगी है और अब तक 24 हजार किताबों के 80 लाख पेज डिजिटल किए जा चुके हैं. डिजिटल होने के बाद कोई भी व्यक्ति या छात्र अपने मोबाइल या लैपटॉप पर लाइब्रेरी में मौजूद कोई भी दुर्लभ किताब को पढ़ सकेगा.

राजधानी की अमीरुद्दौला लाइब्रेरी बन रही स्मार्ट, एक लाख 60 हजार किताबें होंगी ऑनलाइन.
राजधानी की अमीरुद्दौला लाइब्रेरी बन रही स्मार्ट, एक लाख 60 हजार किताबें होंगी ऑनलाइन.
सबसे पुरानी टर्किश हिस्ट्री लाइब्रेरी की शान


लाइब्रेरियन शशि कला सिन्हा ने बताया कि पुस्तकालय में टर्किश हिन्दी नाम की किताब सबसे पुरानी है. यह किताब 1687 प्रकाशित हुई थी. तीन मंजिला लाइब्रेरी में कई भाग बनाए गए हैं. अवध सेक्शन में अवध से सम्बंधित किताबें हैं. यहां पर आईएएस, पीसीएस, पुलिस, बैंक, टीचर और सेना से सम्बंधित प्रतियोगिताओं की किताबें बड़ी संख्या में हैं. यहां बैठकर छात्र प्रतियोगिताओं की तैयारियां करते हैं. इतना ही नहीं इस लाइब्रेरी के भूतल में मेज कुर्सियां लगी हैं, लेकिन कोई पुस्तक नहीं है. यहां पर प्रतियोगिताओं की तैयारियां करने वाले अपनी पुस्तकें लेकर आते हैं और शांत माहौल में बैठकर पढ़ाई करते हैं.

1926 स्थापित हुआ था यह पुस्तकालय


अमीरुद्दौला पुस्तकालय का उद्घाटन छह मार्च 1926 को तत्कालीन गवर्नर हरकोर्ट बटलर ने किया था, लेकिन यह पुस्तकालय उससे भी पहले 1868 में ही बन गया था. 1887 में यह लाइब्रेरी छात्रों की पहली "पसंद बन गई. धीरे-धीरे यहां किताबें बढ़ती गईं और यहां आने वाले छात्रों की संख्या भी बढ़ती गई. 1907 में इसे लाल बारादरी के ऊपरी हिस्से में लाया गया. जहां अब राज्य ललित कला अकादमी है. 1910 में इसे छत्तर मंजिल में स्थानांतरित कर दिया गया.


यह भी पढ़ें : Atiq Ashraf Murder Case : अशरफ और आतंकी कनेक्शन वाले जीशान के संबंधों की हो सकती है जांच

राजधानी की अमीरुद्दौला लाइब्रेरी बन रही स्मार्ट, एक लाख 60 हजार किताबें होंगी ऑनलाइन.

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के करीब एक शताब्दी वर्ष पुरानी व प्राचीनतम पुस्तकालयों में से एक अमीरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी अब पूरी तरह से स्मार्ट हो रही है. राजधानी के यह पुस्तकालय जितना पुराना है उतना ही जहां पर लिखी हुई किताबें व पांडुलिपि पुरानी है. इस पुस्तकालय में हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत, अरबी, फारसी और बंगला भाषा की करीब एक लाख 60 हजार पुस्तकें हैं. जो इन भाषाओं के विद्वानों के द्वारा लिखी गई हैं. यह किताबें आज की तारीख में देश के किसी भी दूसरे पुस्तकालय में मिलना आसान नहीं है. यहां तक कि यहां पर गजट में अपने ओरिजिनल फॉर्म में रखे हुए हैं.

राजधानी की अमीरुद्दौला लाइब्रेरी बन रही स्मार्ट, एक लाख 60 हजार किताबें होंगी ऑनलाइन.
राजधानी की अमीरुद्दौला लाइब्रेरी बन रही स्मार्ट, एक लाख 60 हजार किताबें होंगी ऑनलाइन.

1687 से लेकर 1982 तक की किताबें होंगी डिजिटल


अमीरुद्दौला पुस्तकालय की लाइब्रेरियन शशि कला सिन्हा ने बताया कि लखनऊ स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत इस पुस्तकालय को स्मार्ट सिटी योजना के तहत पूरी तरह से डिजिटल किया जा रहा है. इस कड़ी में 1687 से लेकर 1982 तक की किताबें डिजिटल की जाएंगी. पुस्तकालय में रखी दुर्लभ किताबों को डिजिटल करने में बड़ी सावधानी के साथ ऑनलाइन करने का काम किया जा रहा है. जो किताबें जिस भाषा में मौजूद हैं उसको उसी भाषा में ऑनलाइन किया जा रहा है. इस प्रक्रिया में डिस्टलाइजेशन का काम जिस भाषा की किताब उस भाषा के विशेषज्ञ के द्वारा ही किया जा रहा है. ऑनलाइन होने के बाद यह किताबें बिलकुल वैसे ही पढ़ा जा सकेंगी जैसे वे हाथ में लेकर किताब पढ़ रहे हों. इस काम में पूरी टीम लगी है और अब तक 24 हजार किताबों के 80 लाख पेज डिजिटल किए जा चुके हैं. डिजिटल होने के बाद कोई भी व्यक्ति या छात्र अपने मोबाइल या लैपटॉप पर लाइब्रेरी में मौजूद कोई भी दुर्लभ किताब को पढ़ सकेगा.

राजधानी की अमीरुद्दौला लाइब्रेरी बन रही स्मार्ट, एक लाख 60 हजार किताबें होंगी ऑनलाइन.
राजधानी की अमीरुद्दौला लाइब्रेरी बन रही स्मार्ट, एक लाख 60 हजार किताबें होंगी ऑनलाइन.
सबसे पुरानी टर्किश हिस्ट्री लाइब्रेरी की शान


लाइब्रेरियन शशि कला सिन्हा ने बताया कि पुस्तकालय में टर्किश हिन्दी नाम की किताब सबसे पुरानी है. यह किताब 1687 प्रकाशित हुई थी. तीन मंजिला लाइब्रेरी में कई भाग बनाए गए हैं. अवध सेक्शन में अवध से सम्बंधित किताबें हैं. यहां पर आईएएस, पीसीएस, पुलिस, बैंक, टीचर और सेना से सम्बंधित प्रतियोगिताओं की किताबें बड़ी संख्या में हैं. यहां बैठकर छात्र प्रतियोगिताओं की तैयारियां करते हैं. इतना ही नहीं इस लाइब्रेरी के भूतल में मेज कुर्सियां लगी हैं, लेकिन कोई पुस्तक नहीं है. यहां पर प्रतियोगिताओं की तैयारियां करने वाले अपनी पुस्तकें लेकर आते हैं और शांत माहौल में बैठकर पढ़ाई करते हैं.

1926 स्थापित हुआ था यह पुस्तकालय


अमीरुद्दौला पुस्तकालय का उद्घाटन छह मार्च 1926 को तत्कालीन गवर्नर हरकोर्ट बटलर ने किया था, लेकिन यह पुस्तकालय उससे भी पहले 1868 में ही बन गया था. 1887 में यह लाइब्रेरी छात्रों की पहली "पसंद बन गई. धीरे-धीरे यहां किताबें बढ़ती गईं और यहां आने वाले छात्रों की संख्या भी बढ़ती गई. 1907 में इसे लाल बारादरी के ऊपरी हिस्से में लाया गया. जहां अब राज्य ललित कला अकादमी है. 1910 में इसे छत्तर मंजिल में स्थानांतरित कर दिया गया.


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