लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Allahabad High Court Lucknow Bench) ने बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में पांच साल पहले संविदा पर नियुक्त असिस्टेंट प्रोफसरों की संविदा बढ़ाने के एवज में पचास-पचास हजार रुपये की कथित रिश्वत लेने के आरोपी प्रोफेसर विपिन सक्सेना को कोई भी राहत देने से इंकार कर दिया है. न्यायालय ने उन पर मुकदमा चलाने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा दी गई अभियेाजन स्वीकृति को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को बुधवार को भी खारिज कर दिया.
यह आदेश न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने बीबीएयू के प्रोफेसर विपिन सक्सेना (BBAU Professor Vipin Saxena) की याचिका पर पारित किया. प्रो. सक्सेना 2011 से बीबीएयू में कार्यरत थे. 2017 में विश्वविद्यालय के एक स्टाफ व सह-अभियुक्त विजय कुमार द्विवेदी ने वहां कार्यरत संविदा पर तैनात असिस्टेंट प्रोफेसर वेद कुमार से पचास हजार रुपयों की मांग की. वेद ने 31 मई 2017 को इसकी शिकायत कर दी. इस पर सीबीआई ने विजय कुमार द्विवेदी को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया.
बाद में जांच में याची प्रो. सक्सेना की भी रिश्वत लेने में संलिप्तता सामने आई. आरोप लगाया गया कि उन्हीं के कहने पर प्रत्येक असिस्टेंट प्रोफेसर से पचास-पचास हजार रुपये वसूले जा रहे थे. उनकी अगले एक साल के लिए संविदा की समय सीमा बढ़ायी जानी थी. जांच के पश्चात मामले में आरोप पत्र दाखिल किया गया. विश्वविद्यालय ने 26 अक्टूबर 2017 को याची के खिलाफ अभियोग चलाने की अभियोजन स्वीकृति दे दी. बाद में विचारण प्रारम्भ हो गया और कुलपति की मामले में गवाही भी दर्ज हो गई.
वहीं याची ने अभियोजन स्वीकृति (Professor Vipin Saxena Corruption Case) की वैधता को चुनौती दी. इस पर रिकॉर्ड को देखने पर न्यायालय ने पाया कि अभियोजन स्वीकृति सही है. याची की ओर से तर्क दिया गया कि अभियोजन स्वीकृति कुलपति ने दी है. यह गलत है क्योंकि याची का नियोक्ता विश्वविद्यालय का बोर्ड आफ मैनेजमेंट है. न्यायालय ने इस तर्क को नकारते हुए कहा कि अभियोजन स्वीकृति तो बोर्ड आफ मैनेजमेंट ने ही दी थी, कुलपति ने मात्र उसे जारी किया था.
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