हैदराबाद: आगामी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) की तैयारियों व जमीनी पहुंच को मजबूत करने के लिए समाजवादी ने अलग-अलग इलाकों व क्षेत्रों की कुल पांच सियासी पार्टियों के साथ गठबंधन किया है. साथ ही पार्टी के अध्यक्ष व प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Former Chief Minister Akhilesh Yadav) ने अब इलाकेवार रणनीति बना भाजपा को घेरना शुरू कर दिया है. लेकिन इन सब के बीच खास बात यह है कि सपा ने केवल छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन किया है. ऐसे में अगर गठबंधन के वोटों को सपा अध्यक्ष बूथ तक ले जाने में सफल होते हैं तो फिर उन्हें फायदा होगा, नहीं तो नुकसान तय है. ऐसा इसलिए क्योंकि सूबे में भाजपा का बूथ मैनेजमेंट दूसरी पार्टियों की तुलना में कहीं अधिक मजबूत है.
हालांकि, सपा के इतर भी अन्य पार्टियां कमोबेश इसी फॉर्मूले पर काम कर रही हैं और चुनावी तैयारियों में लगी हैं. इधर, सूबे के सियासी जानकारों की मानें तो अबकी मुख्य मुकाबला केवल दो पार्टियों के बीच होनी है. यही कारण है कि यूपी का चुनाव भी अब दो हिस्सों में बट गया है. एक हिस्से में वर्तमान की योगी सरकार है, तो वहीं दूसरी तरफ विपक्ष में समाजवादी पार्टी बैठी है.
![गजब है अखिलेश का गठजोड़ प्लान](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/13757101_kkkkkkkkkkkkk.jpg)
लेकिन अबकी चुनाव में छोटी पार्टियों की भूमिका अहम होगी या फिर कह सकते हैं कि कई सीटों पर ये निर्णायक की भूमिका में होंगे. यही वजह है कि भाजपा की तर्ज पर अखिलेश यादव भी अब बड़ी पार्टियों की जगह छोटी जातिगत पार्टी को अपने साथ जोड़ रहे हैं.
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यूपी में सियासत की नई बिसात बिछ गई है और अखिलेश यादव की सारी रणनीति इस बात पर निर्भर हो गई है कि किसी भी तरह से सूबे से भाजपा को उखाड़ फेंकना है. ऐसे में अखिलेश यादव 2022 के चुनाव में छोटी पार्टियों के साथ मिलकर नया चुनावी समीकरण बना रहे हैं. सपा ने फिलहाल तक अलग-अलग इलाकों की पांच छोटी पार्टियों के साथ गठजोड़ किया है.
इन पार्टियों के साथ हुआ सपा का गठबंधन
उत्तर प्रदेश में गैर-भाजपा समूह को समाजवादी पार्टी लीड कर रही है तो सूबे में एंटी-भाजपा पॉलिटिक्स के केंद्र में अखिलेश अकेले मजबूती के साथ खड़े नजर आ रहे हैं. आरएलडी मुखिया जयंत चौधरी की अखिलेश यादव के साथ गठबंधन पर मुहर लग चुकी है. भले ही फिलहाल तक सीट शेयरिंग की औपचारिक घोषणाएं न हुई हो, बावजूद इसके सभी अड़चनों को दोनों पार्टी प्रमुखों ने बैठकर सुलझा लिए हैं.
वहीं, केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल की पार्टी अपना दल ने भी अखिलेश के साथ गठबंधन का एलान कर दिया है. रालोद से गठबंधन से पूर्व अखिलेश ने केशव देव मौर्य के महान दल, डॉ. संजय सिंह चौहान की जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट), शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से गठबंधन किया है.
![गजब है अखिलेश का गठजोड़ प्लान](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/13757101_pppppppppppp.jpg)
अमूमन चुनावों में वोट कटवा की भूमिका निभाने वाली छोटी पार्टियों की अबकी बड़ी भूमिका दिख रही है. बड़ी पार्टियां छोटी पार्टियों को अपने साथ लेकर जातीय और क्षेत्रीय संतुलन बना रही हैं. वहीं, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इस बार वे किसी भी बड़ी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे.
इधर, सूबे के सियासी जानकारों की मानें तो अखिलेश अगर गठबंधन के वोट को बूथ तक ले जाकर मतदान करवाने में सफल होते हैं तो फिर उन्हें फायदा है और अगर ऐसा करने में चूकते हैं तो उन्हें भारी नुकसान होगा.
भाजपा का बूथ मैनेजमेंट बहुत बेहतर है और इसका एक बड़ा कारण पार्टी कार्यकर्ताओं की सक्रियता है. पार्टी संगठनात्मक ढांचे को बनाकर स्टेप बाई स्टेप निर्धारित रणनीति के हिसाब से चलती है. वहीं, अन्य पार्टी गठबंधन करने पर पूरा ध्यान केंद्रित कर रही हैं.
अखिलेश यादव के पास नेताओं की संख्या अधिक है और कार्यकर्ताओं की कमी है.वहीं, भाजपा के पास नेता कम है, लेकिन बूथ पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की संख्या अधिक है.
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