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जरूरत पर काम नहीं आईं कांग्रेस-बसपा, अब 2022 में अखिलेश अकेले तलाशेंगे मौका

2019 लोकसभा चुनाव में बसपा से गठबंधन टूटने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव उपचुनाव में अकेले ही मैदान में उतरे. इस उपचुनाव में सपा अपनी परंपरागत रामपुर सीट तो जीती ही, भाजपा और बसपा से भी एक-एक सीट छीन ली. नतीजे से उत्साहित अखिलेश ने अब एलान कर दिया कि 2022 विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे.

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Published : Oct 26, 2019, 11:12 PM IST

अखिलेश यादव (फाइल फोटो).

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आने के बाद बसपा ने सपा पर भारतीय जनता पार्टी से अंदर ही अंदर सहयोगी पार्टी के रूप में कार्य करने का आरोप लगाया है. वहीं दूसरी तरफ सपा ने बसपा पर भाजपा से मिले होने का दावा की है. बहुजन समाज पार्टी का उपचुनावों में उत्तर प्रदेश में खाता नहीं खुला और समाजवादी पार्टी ने 3 सीटें जीत लीं. इस जीत का श्रेय समाजवादी पार्टी को न देकर बसपा सुप्रीमो ने भारतीय जनता पार्टी को दे डाला. वहीं सपा का कहना है कि बसपा हमेशा से भाजपा की सहयोगी रही है.

2022 विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ेंगे अखिलेश यादव.

बसपा को समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने ही 2019 लोकसभा चुनाव में गठबंधन करके संजीवनी दे दी थी. लोकसभा चुनाव में बसपा फिर से जीवंत हो गई और 10 सीटों पर अपना झंडा लहरा दिया. वहीं मौका देखकर मायावती ने अखिलेश यादव से गठबंधन खत्म कर लिया. इस लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव का घाटा हुआ था. मायावती से धोखा खाने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव भी उपचुनाव में अकेले ही मैदान में उतरे और अपनी परंपरागत रामपुर सीट तो जीती ही, भाजपा और बसपा से भी एक-एक सीट छीन ली. नतीजे से उत्साहित अखिलेश ने एलान कर दिया कि अब 2022 विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. अकेले चुनाव मैदान में उतरेंगे और जीतेंगे.

बसपा का नहीं खुला खाता
2019 के उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव ने बहुजन समाज पार्टी को 2014 लोकसभा चुनाव की याद दिला दी. लाख जोर लगाने के बावजूद बसपा लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं निकाल पाई थी. यही हाल 11 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भी हुआ. यहां पर भी बसपा का खाता नहीं खुला. लोकसभा चुनाव में भी बसपा अकेले लड़ी थी और इस विधानसभा उपचुनाव में भी न किसी का साथ दिया और न लिया. उसी का नतीजा ये हुआ कि न लोकसभा चुनाव में सीट निकली और न विधानसभा उपचुनाव में.

ये भी पढ़ें- अयोध्या में दीपोत्सव के क्या हैं सियासी मायने, क्या योगी आदित्यनाथ को मिलेगा राजनीतिक लाभ...

2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से किया था गठबंधन
2017 विधानसभा चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी से गठबंधन किया था. यहां पर भी पार्टी को फायदा होने की बजाय नुकसान ही हुआ था. इसी से सबक लेते हुए अब सपा सुप्रीमो ने अकेले ही मैदान में उतरने का मन बना लिया है. सपा और बसपा के बीच अभी आरोप-प्रत्यारोप की जंग जारी है.

ये भी पढ़ें- 25 सालों से ढोलक पर एक ही थाप, समाजवादी ही माई-बाप...

सपा नेता चौधरी लौटन राम निषाद ने बसपा पर लगाया आरोप
1984 में बसपा का गठन हुआ. तब से आज तक बसपा ने कभी उपचुनाव नहीं लड़ा था. अब बसपा को उपचुनाव लड़ने की आवश्यकता क्यों पड़ी. इसका सीधा सा जवाब है. भाजपा ने उनको सीबीआई का डर दिखाकर दलित पिछड़े वर्ग के वोटों का बंटवारा करने के लिए लड़ाया. बहन मायावती लाख बहाना करें, लेकिन सच यही है कि उनकी भाजपा से मिलीभगत है. बसपा से दलित वर्ग का बुद्धिजीवी भी काफी मर्माहत है और दुखी है. उसका बसपा से मोहभंग हो रहा है और बसपा के लोग निकट भविष्य में समाजवादी पार्टी से जुड़कर 2022 में समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगा.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आने के बाद बसपा ने सपा पर भारतीय जनता पार्टी से अंदर ही अंदर सहयोगी पार्टी के रूप में कार्य करने का आरोप लगाया है. वहीं दूसरी तरफ सपा ने बसपा पर भाजपा से मिले होने का दावा की है. बहुजन समाज पार्टी का उपचुनावों में उत्तर प्रदेश में खाता नहीं खुला और समाजवादी पार्टी ने 3 सीटें जीत लीं. इस जीत का श्रेय समाजवादी पार्टी को न देकर बसपा सुप्रीमो ने भारतीय जनता पार्टी को दे डाला. वहीं सपा का कहना है कि बसपा हमेशा से भाजपा की सहयोगी रही है.

2022 विधानसभा चुनाव में अकेले लड़ेंगे अखिलेश यादव.

बसपा को समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने ही 2019 लोकसभा चुनाव में गठबंधन करके संजीवनी दे दी थी. लोकसभा चुनाव में बसपा फिर से जीवंत हो गई और 10 सीटों पर अपना झंडा लहरा दिया. वहीं मौका देखकर मायावती ने अखिलेश यादव से गठबंधन खत्म कर लिया. इस लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव का घाटा हुआ था. मायावती से धोखा खाने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव भी उपचुनाव में अकेले ही मैदान में उतरे और अपनी परंपरागत रामपुर सीट तो जीती ही, भाजपा और बसपा से भी एक-एक सीट छीन ली. नतीजे से उत्साहित अखिलेश ने एलान कर दिया कि अब 2022 विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. अकेले चुनाव मैदान में उतरेंगे और जीतेंगे.

बसपा का नहीं खुला खाता
2019 के उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव ने बहुजन समाज पार्टी को 2014 लोकसभा चुनाव की याद दिला दी. लाख जोर लगाने के बावजूद बसपा लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं निकाल पाई थी. यही हाल 11 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भी हुआ. यहां पर भी बसपा का खाता नहीं खुला. लोकसभा चुनाव में भी बसपा अकेले लड़ी थी और इस विधानसभा उपचुनाव में भी न किसी का साथ दिया और न लिया. उसी का नतीजा ये हुआ कि न लोकसभा चुनाव में सीट निकली और न विधानसभा उपचुनाव में.

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2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से किया था गठबंधन
2017 विधानसभा चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी से गठबंधन किया था. यहां पर भी पार्टी को फायदा होने की बजाय नुकसान ही हुआ था. इसी से सबक लेते हुए अब सपा सुप्रीमो ने अकेले ही मैदान में उतरने का मन बना लिया है. सपा और बसपा के बीच अभी आरोप-प्रत्यारोप की जंग जारी है.

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सपा नेता चौधरी लौटन राम निषाद ने बसपा पर लगाया आरोप
1984 में बसपा का गठन हुआ. तब से आज तक बसपा ने कभी उपचुनाव नहीं लड़ा था. अब बसपा को उपचुनाव लड़ने की आवश्यकता क्यों पड़ी. इसका सीधा सा जवाब है. भाजपा ने उनको सीबीआई का डर दिखाकर दलित पिछड़े वर्ग के वोटों का बंटवारा करने के लिए लड़ाया. बहन मायावती लाख बहाना करें, लेकिन सच यही है कि उनकी भाजपा से मिलीभगत है. बसपा से दलित वर्ग का बुद्धिजीवी भी काफी मर्माहत है और दुखी है. उसका बसपा से मोहभंग हो रहा है और बसपा के लोग निकट भविष्य में समाजवादी पार्टी से जुड़कर 2022 में समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगा.

Intro:**स्पेशल स्टोरी**

2017 में हाथ के साथ, 2019 में हाथी के साथ और अब 2022 में अकेले साइकिल पर सवार होंगे अखिलेश

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आने के बाद एक तरफ बहुजन समाज पार्टी समाजवादी पार्टी पर भारतीय जनता पार्टी से अंदर ही अंदर सहयोगी पार्टी के रूप में कार्य करने का आरोप लगा रही है, वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी बहुजन समाज पार्टी पर भारतीय जनता पार्टी से मिले होने का दावा कर रही है। बहुजन समाज पार्टी का उपचुनावों में उत्तर प्रदेश में खाता नहीं खुला और समाजवादी पार्टी ने 3 सीटें जीत लीं तो इस जीत का श्रेय समाजवादी पार्टी को न देकर बसपा सुप्रीमो ने भारतीय जनता पार्टी को दे डाला। यहां तक कह दिया कि बसपा को हराने के लिए भाजपा ने सपा की मदद की है। यह एक सुनियोजित चाल थी। इस पर समाजवादी पार्टी ने पलटवार किया और कहा कि बहन जी का इतिहास उठाकर देखने वाला है। बसपा हमेशा से भाजपा की सहयोगी रही है और सपा ने बसपा से धोखा खाया है। इसी का नतीजा है कि बसपा को एक भी सीट नहीं मिली।


Body:2019 के उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव ने बहुजन समाज पार्टी को 2014 लोकसभा चुनाव की याद दिला दी। लाख जोर लगाने के बावजूद बसपा लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं निकाल पाई थी। यही हाल 11 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भी हुआ। यहां पर भी बसपा का खाता नहीं खुला। लोकसभा चुनाव में भी बसपा अकेले लड़ी थी और इस विधानसभा उपचुनाव में भी न किसी का साथ दिया और न लिया। उसी का नतीजा ये हुआ कि न लोकसभा चुनाव में सीट निकली और न विधानसभा उपचुनाव में। मृत प्राय हो चुकी बसपा को समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने ही 2019 लोकसभा चुनाव में गठबंधन करके संजीवनी दे दी थी। इस चुनाव में बसपा फिर से जीवंत हो गई और 10 सीटों पर अपना झंडा लहरा दिया। फिर क्या था पार्टी जिंदा हुई और बहन जी ने मौका देखा और अखिलेश यादव से संबंध खत्म कर लिया। इस लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव का घाटा हुआ था। मायावती से धोखा खाने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव भी उपचुनाव में अकेले ही मैदान पर उतरे और अपनी परंपरागत रामपुर सीट तो जीती ही, भाजपा और बसपा से भी एक-एक सीट छीन ली। नतीजे से उत्साहित अखिलेश ने अब एलान कर दिया कि अब 2022 विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। अकेले चुनाव मैदान में उतरेंगे और जीतेंगे।


Conclusion:बता दें कि 2017 विधानसभा चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी से गठबंधन किया था और यहां पर भी पार्टी को फायदा होने के बजाय नुकसान ही हुआ था। इसी से सबक लेते हुए अब सपा सुप्रीमो ने अकेले ही मैदान में उतरने का मन बना लिया है। सपा और बसपा के बीच अभी आरोप-प्रत्यारोप की जंग जारी है।
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बहन मायावती का इतिहास है 1984 में बसपा का गठन हुआ और आज तक बसपा ने कभी उप चुनाव नहीं लड़ा था। अब बसपा को उप चुनाव लड़ने की आवश्यकता क्यों पड़ी। इसका सीधा सा जवाब है भाजपा ने उनको सीबीआई का डर दिखाकर दलित पिछड़े वर्ग के वोटों का बंटवारा करने के लिए लड़ाया। बहन मायावती लाख बहाना करें लेकिन सच यही है कि उनकी भाजपा से मिलीभगत है। यह जनता जान चुकी है। हम लोगों के संपर्क में हजारों बसपा के कैडर के लोग रहे, प्रशिक्षक रहे, प्रभारी रहे हैं। बहन मायावती ने भाजपा के इशारे पर गठबंधन को तोड़ा। सिर्फ गठबंधन को ही नहीं तोड़ा अखिलेश यादव ने कहा था कि गठबंधन धर्म के लिए हम 10 कदम पीछे हटने को तैयार हैं और वह मायावती ने लोकसभा में जिन सीटों को चाहा उन सीटों पर अपने उम्मीदवारों को लड़ाया, लेकिन उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष पर जो आरोप लगाया उससे दलित वर्ग का बुद्धिजीवी भी काफी मर्माहत है और दुखी है। उसका बसपा से मोहभंग हो रहा है और बसपा के लोग निकट भविष्य में समाजवादी पार्टी से जुड़ कर 2022 में समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगा।

बाइट: चौधरी लौटन राम निषाद: सपा नेता व सचिव राष्ट्रीय निषाद संघ

अखिल पांडेय, लखनऊ, 9336864096
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