लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आने के बाद बसपा ने सपा पर भारतीय जनता पार्टी से अंदर ही अंदर सहयोगी पार्टी के रूप में कार्य करने का आरोप लगाया है. वहीं दूसरी तरफ सपा ने बसपा पर भाजपा से मिले होने का दावा की है. बहुजन समाज पार्टी का उपचुनावों में उत्तर प्रदेश में खाता नहीं खुला और समाजवादी पार्टी ने 3 सीटें जीत लीं. इस जीत का श्रेय समाजवादी पार्टी को न देकर बसपा सुप्रीमो ने भारतीय जनता पार्टी को दे डाला. वहीं सपा का कहना है कि बसपा हमेशा से भाजपा की सहयोगी रही है.
बसपा को समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने ही 2019 लोकसभा चुनाव में गठबंधन करके संजीवनी दे दी थी. लोकसभा चुनाव में बसपा फिर से जीवंत हो गई और 10 सीटों पर अपना झंडा लहरा दिया. वहीं मौका देखकर मायावती ने अखिलेश यादव से गठबंधन खत्म कर लिया. इस लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव का घाटा हुआ था. मायावती से धोखा खाने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव भी उपचुनाव में अकेले ही मैदान में उतरे और अपनी परंपरागत रामपुर सीट तो जीती ही, भाजपा और बसपा से भी एक-एक सीट छीन ली. नतीजे से उत्साहित अखिलेश ने एलान कर दिया कि अब 2022 विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. अकेले चुनाव मैदान में उतरेंगे और जीतेंगे.
बसपा का नहीं खुला खाता
2019 के उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनाव ने बहुजन समाज पार्टी को 2014 लोकसभा चुनाव की याद दिला दी. लाख जोर लगाने के बावजूद बसपा लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं निकाल पाई थी. यही हाल 11 सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भी हुआ. यहां पर भी बसपा का खाता नहीं खुला. लोकसभा चुनाव में भी बसपा अकेले लड़ी थी और इस विधानसभा उपचुनाव में भी न किसी का साथ दिया और न लिया. उसी का नतीजा ये हुआ कि न लोकसभा चुनाव में सीट निकली और न विधानसभा उपचुनाव में.
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2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से किया था गठबंधन
2017 विधानसभा चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी से गठबंधन किया था. यहां पर भी पार्टी को फायदा होने की बजाय नुकसान ही हुआ था. इसी से सबक लेते हुए अब सपा सुप्रीमो ने अकेले ही मैदान में उतरने का मन बना लिया है. सपा और बसपा के बीच अभी आरोप-प्रत्यारोप की जंग जारी है.
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सपा नेता चौधरी लौटन राम निषाद ने बसपा पर लगाया आरोप
1984 में बसपा का गठन हुआ. तब से आज तक बसपा ने कभी उपचुनाव नहीं लड़ा था. अब बसपा को उपचुनाव लड़ने की आवश्यकता क्यों पड़ी. इसका सीधा सा जवाब है. भाजपा ने उनको सीबीआई का डर दिखाकर दलित पिछड़े वर्ग के वोटों का बंटवारा करने के लिए लड़ाया. बहन मायावती लाख बहाना करें, लेकिन सच यही है कि उनकी भाजपा से मिलीभगत है. बसपा से दलित वर्ग का बुद्धिजीवी भी काफी मर्माहत है और दुखी है. उसका बसपा से मोहभंग हो रहा है और बसपा के लोग निकट भविष्य में समाजवादी पार्टी से जुड़कर 2022 में समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत से सरकार बनाएगा.