लखनऊ : राजनीति में आपसी लड़ाई से संबंधों में पड़ी खाईं की भरपाई के उदाहरण देखने को मिलते रहे हैं. उत्तर प्रदेश की वर्तमान राजनीति में दो दलों के बीच ऐसा ही कुछ घटित हो रहा है. यह दोनों दल है समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल. आगामी चुनावों के मद्देनजर ये दोनों पार्टियां और इसके नेता न केवल आपसी संबंध सुधारने में लगे हैं बल्कि चुनावी समर में भी एक दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं.
दरअसल, समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे स्वर्गीय चौधरी अजीत सिंह के बीच संबंधों में दरार पड़ गई थी. ये खाई इतनी बड़ी हो गई कि इसकी भरपाई चौधरी अजीत सिंह के जीवित रहते होना मुश्किल हो गया.
हालांकि अब चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी और मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव एक साथ मैदान में उतरकर पिता की आपसी लड़ाई की भरपाई कर रहे हैं. अखिलेश और जयंत मिलकर दोनों पार्टियों के बीच संबंधों को पहले की तरह बनाने में जुट गए हैं.
साल 1989 का वह दौर जब जनता दल की तरफ से चौधरी अजीत सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की पूरी तैयारी कर चुके थे. मुलायम सिंह यादव को उपमुख्यमंत्री बनाने की तैयारी थी. सारी तैयारियां भी लगभग पूरी हो गई थीं लेकिन इसी बीच दूसरे पक्ष ने मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश कर दी.
यहीं शुरू हो गई जनता दल के ये दोनों नेताओं मुलायम और चौधरी अजीत सिंह के रिश्तों में दरार. चौधरी अजीत सिंह दिल्ली की राजनीति कर रहे थे लेकिन नेताओं के बहकावे के चलते उनकी बातों में आ गए और मुख्यमंत्री पद का दावा करने लखनऊ पहुंच गए थे.
इधर, मुलायम सिंह यादव की पीठ पर भी नेताओं ने हाथ रख दिया. इसके बाद चौधरी अजित सिंह का मुख्यमंत्री बनने का सपना मुलायम सिंह यादव ने चकनाचूर कर दिया. मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए और मजबूरन चौधरी अजीत सिंह को खाली हाथ दिल्ली लौटना पड़ा. इसके बाद इन दोनों नेताओं के बीच बड़ी दरार पड़ गई.
पांच वोट से बनते-बनते रह गए थे मुख्यमंत्री
चौधरी अजीत सिंह की मुख्यमंत्री की ताजपोशी लगभग तय थी. लेकिन मुलायम सिंह यादव के अचानक सक्रिय हो जाने से उनका यह ख्वाब टूट गया. जनता दल के विधायकों की बैठक में हुए मतदान में चौधरी अजीत सिंह मुलायम के मुकाबले महज पांच वोट से पीछे रह गए और यही पांच वोट उनके मुख्यमंत्री बनने में सबसे बड़ी बाधा बने.
दोनों नेता थे चौधरी चरण सिंह के वारिस
चौधरी अजीत सिंह तो किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह के बेटे थे. वहीं मुलायम सिंह यादव भी चौधरी चरण सिंह को अपने पिता से कम नहीं मानते थे. चौधरी चरण सिंह भी मुलायम सिंह को बेटे की ही तरह समझते थे. दोनों की विचारधारा चौधरी साहबकी विचारधारा थी लेकिन राजनीति ने चौधरी चरण सिंह के इन दोनों वारिसों के बीच ऐसी दरार डाली जिसकी आखिरी समय तक राजनीतिक दृष्टि से भरपाई नहीं हो पाई.
रिश्तों में पड़ी दरार का अजीत सिंह को हुआ घाटा
मुलायम सिंह यादव के चौधरी अजीत सिंह के बीच रिश्तों में पड़ी दरार का घाटा चौधरी अजीत सिंह को ही उठाना पड़ा. 1991 के विधानसभा चुनावों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहली बार भारतीय जनता पार्टी को जाटों के बीच पैठ बनाने का मौका मिल गया.
उत्तर प्रदेश में 1993 के विधानसभा चुनावों में सपा-बसपा गठबंधन के सामने जनता दल को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी. मुलायम सिंह यादव राजनीति में बड़े नेता के रूप में उभरने लगे. इधर, चौधरी अजीत सिंह ने भी परेशान होकर जनता दल से नाता तोड़कर लोकदल के साथ राजनीतिक पारी प्रारंभ कर दी.
यह भी पढ़ें : कभी बूढ़ी नहीं होगी सपा, युवाओं को इसे आगे लेकर जाना है: मुलायम सिंह यादव
मुलायम को बताया था सबसे बड़ा बेईमान
चौधरी अजीत सिंह और मुलायम सिंह यादव के रिश्तो में पड़ी गहरी खाई का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि चौधरी अजीत सिंह ने मुलायम सिंह यादव को सबसे बड़ा बेईमान और लुटेरा तक बता डाला था. यह तक कहा था कि प्रदेश में सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री बना है जो बिना पैसे लिए एक भी काम नहीं करता.
खटास को मिठास में बदल रहे हैं अखिलेश और जयंत
राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे चौधरी अजीत सिंह का अब निधन हो चुका है. सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव अब राजनीति में उतने सक्रिय नहीं हैं. लिहाजा, अब दोनों पार्टियों के मुखिया दोनों धुरंधर नेताओं के बेटे बन गए हैं. अब यह दोनों युवा साथ मिलकर पिता की आपसी लड़ाई से जो रिश्तों में खटास पैदा हुई थी, उसे मिठास में बदल रहे हैं.
हालिया पंचायत चुनाव में अखिलेश और जयंत साथ मिलकर लड़े और इसका परिणाम भी उनके पक्ष में आया. अब 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के लिए भी यह दोनों नेता हाथ में हाथ डालकर साथ मैदान में उतरेंगे. इससे दोनों दलों के नेताओं के दिलों की दूरियां खत्म होने की उम्मीदें लगाई जा रहीं हैं.
क्या कहते हैं रालोद के वरिष्ठ नेता
राष्ट्रीय लोक दल के वरिष्ठ नेता सुरेंद्र नाथ त्रिवेदी कहते हैं कि चौधरी अजीत सिंह स्वभाव से बेहद सहज थे. उनमें जरा सी भी कुटिलता नहीं थी. नेताजी मुलायम सिंह यादव राजनीति के महारथी थे. उन्हें हर तरह की पैंतरेबाजी आती थी. इसीलिए चौधरी अजीत सिंह ठगे गए. मुलायम मुख्यमंत्री बन गए. उस समय जयंत चौधरी और अखिलेश यादव बच्चे रहे होंगे, उन्हें तो याद भी नहीं होगा कि क्या हुआ था. अब यह दोनों युवा साथ चलकर पार्टियों को मजबूत करेंगे. सबसे खास बात है कि इन दोनों युवाओं में राजनीतिक कुर्बानी देने का भी साहस है.
क्या कहते हैं सपा नेता
समाजवादी पार्टी के एमएलसी सुनील सिंह यादव का कहना है कि चाहे चौधरी अजीत सिंह हों या नेताजी मुलायम सिंह यादव. दोनों ही चौधरी चरण सिंह की विचारधारा के हैं और कभी भी राष्ट्रीय लोकदल के नेताओं में दरार नहीं पड़ी. उनके रिश्ते मधुर थे. अब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी साथ मिलकर चल रहे हैं तो रिश्तो में खटास जैसी कोई बात नहीं बची है.